रचना
किसने रचाया संसार,
किसने रचा जीव,
किसने जीवन बनाया
किसने इंसान को दिल,
और दिल को स्पंदन दिया.
किसने मन रचा और
मन को भावनाएँ दीं,
आज यह इंसान,
प्रकृति पर जीत चाहता है
यद वह सत्यापित करना चाहता है कि
रचनाकार की रचना से बढ़कर,
वह रच सकता है.
आज,
वह अपने रचयिता की रचना को,
ललकार रहा है.
मेंढ़क कुएं की दीवार को,
हर तरफ जाकर छू रहा है,
और समझता है कि,
मैं अब समुंदर की सीमाएं,
जान चुका हूँ.
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एम.आर.अयंगर.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (31-05-2013) के "जिन्दादिली का प्रमाण दो" (चर्चा मंचःअंक-1261) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी,
चर्चा कसे लिए रचना का चुनाव एवं उसकी सूचना हेतु सादर धन्.वाद एवं आभार.
अयंगर.