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शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

मॉर्निंग वाक के साइड इफेक्ट

मॉर्निंग वाक के साइड इफेक्ट


साधारणतः लोगों की मॉर्निंग वाक 45 वर्ष की आयु के बाद या फिर 50 की आयु के    आसपास शुरु होती है। यह वह उम्र है जहाँ  व्यक्ति सामान्यतः किसी न किसी तरह  की लंबी चलने वाली बीमारी की गिरफ्त में आता है। यह बी पी, डायाबिटीज, हार्ट की  समस्या , थायरॉयड, पेट का बाहर निकलना या बढ़ना - जैसे कुछ भी हो सकते हैं। बड़ीबीमारियों की बात न ही करें तो अच्छा है। यह बीमारी खुद को आए या साथियों-रिश्तेदारों को , पर व्यक्ति यहाँ सजग हो जाता है। कुछ लोग ठंडी ताजी हवा के लिए भी मॉर्निंग वाक पर निकलते हैं।

हालातों के अनुसार चाहे निवारण के लिए हो या बचाव के लिए हो उसका मन, सबसे पहले तो मॉर्निंग वाक और योग- आसन की तरफ झुकता है। इनमें से भी मॉर्निंग वाक आसान साधन है इसलिए वह सबसे पहले इसी पर ध्यान देता है।

छोटी उम्र में इस तरफ झुकाव होना कई सवालों का जवाब माँगता है। उनमें से कुछ उदाहरण के लिए – क्या वह शरीर सौष्ठव के प्रति इतना जागरूक है?  यदि हाँ तो अब तक जो ध्यान नहीं आया, वह अब क्यों ? हो सकता है कि उसके यार दोस्त- रिश्तेदारों में किसी को ऐसी समस्या आई है और साथ में यह भी जागरूक हो गए हैं। किंतु ऐसा बहुत ही कम होता है।

कुछ युवा इसलिए मॉर्निंग वाक पर जाते हैं क्योंकि उसके गर्ल / बॉय फ्रेंड वाक पर जाते हैं। सुबह के समय ठंडी हवा में, मोहल्ले से दूर एकांत में बतियाने और समय बिताने की संभावना बढ़ जाती है। यह हास्यास्पद लग सकता है पर इसमें बहुत कुछ सच्चाई है। एक यह भी कि उधर बगीचे (पार्क) में बहुत सारे रंगबिरंगे फूल खिले हैं जिनको देखने के लिए बहुत सारी खूबसूरत लड़कियाँ आती हैं। सारांश में कहना यह है कि शरीर सौष्ठव के लिए जागरूक होकर मॉर्निंग वाक में जाना तो छोटी उम्र के लिए असाधारण बात है। हालाँकि कुछ युवा जिम जॉइन करते हैं।

अब चलिए जो भी कारण हो मान लेते हैं कि मॉर्निंग वाक शुरू हुआ है। देखिए अब क्या होता है। सुबह उठते हैं तो पूरे घर को जगा देते हैं। सबकी नींद खराब होती है। बाथरूम – वाशरूम के बाद चाय चाहिए। किसी बनाने वाले को जगाना पड़ता है, उनकी नींद खराब करते हैं। यदि खुद में चाय बनाने की काबिलियत हो तो भी चाय-चीनी के डिब्बे किचन स्लैब पर ही छोड़ जाते हैं। चाय बनाते समय कभी चाय-दूध-पत्ती-शक्कर बिखर गए हों तो वैसे ही रहेगी जिसे ठीक करना घरवालों की जिम्मेदारी होगी। चाय-छलनी, बर्तन भी प्लेटफार्म पर या गैस स्टोव पर ही रहते है। दूध का बर्तन फ्रिज में गया हो तो मेहरबानी समझें।

बिस्तर सही तह करके जाना तो कभी सीखा ही नहीं। तकिया कहीं तो चादर कंबल कहीं और बिछौना बिखरा हुआ छोड़ जाते हैं.

जब घर से निकलते हैं तो कोई दरवाजा बंद करने वाला चाहिए और बाहर का गेट खुला ही छोड़ जाते हैं। वापसी तक कोई बकरी बगीचे के पौधों का स्वाद लेती मिलती है। यदि इस बीच घर वाला कोई आकर देख गया तो लौटने पर महामंत्र सुनने की नौबत आती रहती है।

घर से निकलने के बाद किधर जाना है वाक करने, यह भी कभी-कभी एक समस्या रहती है। निर्णय करना और भी मुश्किल भरा हो जाता है जब दो दोस्तों की गर्ल फ्रेंड्स दो दिशाओं में जा रही होती हैं। फिर तय होता है कि दोनों अपनी फ्रेंड को बोलें कि रास्ता एक करो या यह दोनों अपने रास्ते फ्रेंड्स के हिसाब से अलग करें। यदि फ्रेंड नहीं है तो रास्ते में किसी का पसंद आ जाना एक अलग कहानी गढ़ता है। वह कितने बजे घर से निकलती है ? किस रास्ते जाती है ? किस रास्ते लौटती है ? उसे कहाँ से साथ लिया जाए या कहाँ तक छोड़कर आया जाए ? इन सब पर निर्णय लेना भी एक खास समस्या होती है। खास ख्याल रखना पड़ता है कि घर लौटकर कालेज या नौकरी में जानें में देरी न हो जाए। यदि वह शाम को भी वाक पर जाती है, तो शाम को भी वाक शुरु करना पड़ता है जिससे और सब काम में खलल पड़ता है। सबको मेनेज करना पड़ता है।

अगली समस्या आती है मौसम की। अब बरसात ठंड और गर्मी सब सहनीय हो जाते हैं। ठंड के लिए स्वेटर-जेकेट आ जाते हैं, बरसात के लिए छतरी भी आ जाती है, जो दो लोगों के लिए उचित है। सुबह-सुबह चाय या कोल्ड ड्रिंक के लिए पैसे भी ख्याल से पाकेट में रखे जाते हैं। कालेज जाते वक्त बस टिकट के पैसे भूल सकते हैं, पर सुबह की चाय के पैसे भूले नहीं जाते। यह मॉर्निंग वाक की खासियत होती है।

रास्ते चलते आस पास में नजर तो पड़ती ही है। ध्यान आता है कि कल इस मकान का रंग तो गुलाबी था, आज देखो पीला हो गया। किसी को घर से निकलते या घर में जाते देखकर मन कहता है - अच्छा तो यह यहाँ रहती या रहता है। रास्ते में कोई नया मकान बनते दिखा या  किसी पार्क में कोई नया फूल खिला हो तो नजर उस पर टिक जाती है।

रास्ते में कोई जानकार मिल जाए तो उनसे गपशप होने लगती है। पुरानी यादें ताजा कर ली जाती हैं। सही मायने में यह आदतें मॉर्निंग वाक के मकसद को खराब करती हैं। शायद अच्छा होता कि आप पुराने परिचय का नवीनीकरण करने के बाद बाकी बातें बाद में उनके घर या अपने घर पर करें। जिससे परिचय भी नवीनीकृत हो जाए और मॉर्निंगवाक का मकसद भी बना रहे। कोई रोजाना मिलने वाला नहीं मिले तो उनके और साथियों से पूछते रहते हैं कि उनको हुआ क्या? उसकी पूरी खबर वहीं रास्ते में खड़े होकर ले लेते हैं। तबीयत सही न हो तो क्या हुआ, किस डॉक्टर को दिखा रहे हैं? डॉ ने क्या कहा ? घर पर हैं या अस्पताल में हैं- सारी खबर वहीं तुरंत लेने की कोशिश रहती है।

सुबह सवेरे घर से निकलने पर चाय मिलने की संभावना कम ही रहती है। ज्यादातर लोग गुनगुना पानी या नीबू पानी पीकर घर से निकलते हैं। इसलिए चाय की दुकान देखते ही तलब लग जाती है। घर से कुछ दूरी पर सुविधानुसार चाय पीने की आदत पड़ जाती है और यह मॉर्निंग वाक में बाधक बनता है। यदि लौटते वक्त चाय का दौर चले तो साथ में बन रहे नाश्ता पर भी मन डोलता है और सुबह वाकिंग के तुरंत बाद समेसा, दोसा , इडली जैसे नाश्ता दिखे तो सेवन हो ही जाता है। इस तरह की आदत मॉर्निंग वाक के उद्देश्य को क्षति पहुँचाती है। पश्चिम भारत के लोग मॉर्निंग वाक के बाद खीरा, करेला, लौकी , जामुन जैसे फलों का रस पीना पसंद करते हैं जो लोंगों को कुछ पैसों पर या मुफ्त भी उपलब्ध कराए जाते हैं। कुछ शहरों में नगरपालिका द्वारा मॉर्निंग वाक के लिए कुछ सड़के वाहनों के लिए पूरी या आधी बंद कर दी जाती हैं।

कुछ शहरों में सुबह 0630 पर दुकानें खुल जाती हैं जहाँ दूध के पेकेट, ब्रेड बटर से लेकर राशन का पूरा सामान मिल जाता है। बहुत से मॉर्निंग वाक करने वाले लौटते वक्त दूध, ब्रेड, अंडे और राशन का सामान ले आते है ताकि दिन की धूप में फिर न आना पड़े।

ज्यादातर मॉर्निंग वाकर लौटते वक्त पूजा के लिए फूल तोड़कर लाते हैं। सुबह-भोर के वक्त घरवाले भी सोते रहते हैं तो कोई ऐतराज करने वाला भी नहीं मिलता । यह बात और है कि जागने पर फूल नहीं दिखे तो तोड़ने वाले के लिए अपशब्द कहते हैं, जिसे सुनने के लिए तोड़ने वाला सामने नहीं रहता।  इन सबके अलावा रास्ते में दिखने वाले फल-फूल- क्रोटन के पौधे और मनी प्लाँट भी वाकर जनता उठाकर या मांगकर ले आती है।

कुछ लोग सुबह स्ट्रीट लाइट बुझाना और शाम को जलाना भी मॉर्निंग वाक के दौरान कर लेना भी उचित समझते हैँ।

कुछ लोग प्रभात बेला के पहले ही वाकिंग पर निकलते हैं जिससे जल्दी घर लौट सकें। ऐसे में उन्हें रास्ते के कुत्तों का भय रहता है। इसके लिए अक्सर लोग 2 से ढाई फीट की छड़ी साथ रख लेते हैं। ऐसों को देखते ही गिरिधर की कुंडली याद आती है।

 

लाठी में गुन बहुत हैं सदा राखिए संग,

गहरे नद नाले जहाँ तहाँ बचावे अंग,

तहाँ बचावे अंग, झपटि कुत्ता को मारे,

दुश्मन दावागीर ताउ को मस्तक झाड़े

कह गिरिधर कविराय, सुनो हो दूर के बाठी,

सब हथियारन छाँडि के,  हाथ में लीजो लाठी।

 

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