रंगबिरंगी सृष्टि
ब्रह्मा
ने बीज सृष्टिके लाए थे छाँटकर,
पर
मिल गए अंजाने में वे सारे एक संग,
बो
तो दिए थे बीज सारे सोच-सोच कर,
देखें
ये चमत्कार भी होगा किस तरह ?
कारण
यही के चल पड़े हैं सुख-दुख भी संग-संग,
काँटे
औ’ फूल लग गए हैं एक डाल पर,
छाया,
बिना उजाला होती कभी नहीं,
अच्छे
बुरे को देखते हैं संग-संग सभी.
नारी
पुरुष हैं जान में सभी के, जान तू,
यह
जिंदगी अजीब है इसको सँभाल तू,
सृष्टा
के इस प्रयोग का तू ना विनाश कर,
भोग
जिंदगी को हरेक श्वास पर.
विज्ञान
है विनाश तो वरदान भी यही,
इंसान
है शैतान तो भगवान भी यही,
है
श्वास हवा से तो आँधी से तबाही,
लौ
से है रोशनी तो लौ से ही राख भी.
जीवन
मरण है चक्र इस अविरत जहान का,
जीने
के बाद क्या पता नाम औ’ निशान का,
जो
जी रहा है उसका कोई खैरियत नहीं,
कौन
जाने अंत शब्द इस जुबान का.
भूख
पेट के लिए सब कुछ है बिक रहा,
मिल
जाएगी हर चीज जरा ढ़ूंढ़ लो मंडी,
इंसानियत
कहीं तो कहीं ईमान की मंडी,
ये
सृष्टि बन पडी है कितनी रंगबिरंगी.
ठठठठठठठठठठठठठठठठठठठठठठठठठठठठ
एम.आर.अयंगर.
09425279174