मेरा प्यार.
मैंने एक शख्सियत से
प्यार किया.
लेकिन इजहार करने से
डरता हूं
इसलिए नहीं कि इस
जमाने में,
प्यार करना जुर्म
है,
बल्कि इसलिए कि मेरा
प्यार
जमाने के प्यार की
परिभाषा से अलग है.
इसमें रोमांस नहीं
है,
लेश मात्र भी सेक्स
नहीं है,
और जो है,
वह आज की परिभाषा
में,
शायद प्यार ही नहीं है.
जब बिटिया थी,
नहला –खिला कर,
स्कूल भेजता था,
फिर बड़ी होती गई,
घुमाने ले जाता रहा,
पढ़ाता रहा,
खिलाता रहा,
और बड़ी हो गई,
उसके शौक पूरे करने
में,
मदद करता रहा,
तकलाफें आईँ,
पर शिकन न हुई,
प्यार में कभी तकलीफ
नहीं हुआ करती,
प्यार में दीवानापन
सर चढ़कर बोलता है,
इसका गम नहीं होता
कि मैंने क्या खोया,
पर इसकी दूनी खुशी
होती है,
कि मेरे प्यार ने
क्या पाया.
और बड़ी हो गई,
पढ़ाई पूरी हो गई,
रिश्तों की बातें चल
पड़ी,
उसने अपने प्यारे से
भी मुझे मिलाया,
बड़ों के चयन से भी
परिचय कराया,
मेरा फैसला माँगा,
और चुपचाप उस पर अमल
कर लिया.
उस दिन मैंने समझ
लिया,
मेरा प्यार कितना
सच्चा है,
इस बड़े से शरीर में
कितना छोटा बच्चा है,
जो मासूमियत को अब
भी पहचानता है,
और दिल को गहराईयों
तक जानता है,
दिल को दिल से समझने
में कितनी महानता है.
आज भी मेरा प्यार
मेरा ही है,
शायद यह इंसान की
स्वार्थता है,
मैंने अब भी कोई खून
का रिश्ता नहीं जोड़ा,
रिश्ता दिल से दिल
का है,
यही मेरे प्यार की
परिभाषा है,
मेरा प्यार पाने में
नहीं देने में है,
जीवन की वो घड़ियाँ,
जिन्हें लोग,
अपनों के लिए सँजोए
रखते हैं,
मैनें प्यार पर सजा
दिए,
आज की परिभाषा में,
प्यार-और-रोमांस
अभिन्न अंग हैं,
जहाँ देखो दोनो संग
संग हैं,
ममता, ममता है प्यार
नहीं है,
भाई बहन से राखी
बँधवाता है,
पर प्यार नहीं करता,
ममता मातृत्व का मर्म है,
वात्सल्य जननी का
धर्म है,
और प्यार ...
जवाँ दिलों के संग
संग धड़कने,
से उत्पन्न मनमोहक
साज हैं.
एम.आर.अयंगर.
9425279174;8462021340