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मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS
शुक्रवार, 25 नवंबर 2016
चिड़िया, राक्षस और फरिश्ता.
चिड़िया, राक्षस और फरिश्ता.
एक थी चिड़िया,
जैसे गुड़िया,
चूँ-चूँ, चीं-चीं करने वाली,
गाने और फुदकने वाली,
यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ,
डाल-डाल, अंगना, बगिया...
एक थी चिड़िया...
कहीं से इक दिन राक्षस आया,
चिड़िया को उसने धमकाया,
बस !!! बस!!!बस!!!
बस, बहुत हुआ ये गाना-वाना
बंद करो अपना चिल्लाना
अब से मेरा मानो कहना,
जैसा बोलूँ वैसा करना !
लाल-लाल आँखें दिखलाई,
चिड़िया सहमी, काँपी, घबराई ...
गुड़िया जैसे जान गँवाई
क्या कर पाऊँ समझ न पाई।।
.
पकड़ के उसको फिर राक्षस ने
बंद कर दिया एक महल में ,
जब मन चाहे उसे निकाले,
जो जी चाहे वह कर डाले,
कभी लाल आँखें दिखलाकर,
और कभी बहला-फुसलाकर,
उसका गाना बंद कराया
चूँ-चूँ करना बंद कराया...
जो मन चाहा वही कराया
खूब डराया और धमकाया।।
गुड़िया से छिन गया बचपना,
चिड़िया से छिन गया चहकना...
भूल गई वह गाना - वाना
कारण ? राक्षस का चिल्लाना.
इक दिन एक फरिश्ता आया,
उसने चिड़िया को छुड़वाया,
आखिर कैद से छूटी चिड़िया,
अपने घर को लौटी चिड़िया...
जीवन तो जीना ही था,
जख्मों को सीना ही था,
हिम्मत करके बड़ी हुई,
अपने पैरों खड़ी हुई....
वे अतीत के काले साए,
चिड़िया के दिल को दहलाएँ,
लाल-लाल आँखें राक्षस की,
याद करे गुड़िया घबराए
अब तो वे दिन बीत गए हैं,
दुख के साए रीत गए हैं,
बीतों से अब क्यों घबराएँ ,
आगे क्यों ना बढ़ते जाएँ.
पिछली बातों से क्यों परेशां हो,
बीती बातों से दिल उदास न हो,
भले ही जिंदगी में आस न हो,
बीते कल की सड़ी भड़ास लिए,
आता कल तो कभी खराब न हो।
बीती बातों से दिल उदास न हो।
रात काली हो, स्याह हो कितनी,
एक स्वर्णिम सुबह तो आएगी,
रात को कोसती रही तुम जो,
सुबह की स्वर्णिम छटा भी जाएगी।
स्याह रातों से यूँ हताश न हो,
बीती बातों से दिल उदास न हो।
मनको मत बनाओ डिब्बा कचरे का,
उसे भी रोज़ खाली करती हो,
धोती हो रोज नहीं तो दूसरे दिन,
मन को खाली नहीं क्यों करती हो।
इन तुच्छ बातों से निराश न हो
बीती बातों से दिल उदास न हो।
गर नहीं खाली करोगी, महकेगा,
पूरा आहाता बदबू-मय होगा,
एक मन को खाली करने से,
खुद के संग सारा घर भी चहकेगा।
मन को तू मार के संत्रास न हो,
बीती बातों से दिल उदास न हो
सोचती हो हमेशा दूजे का, कुछ
तो अपने लिए भी सोचो तुम,
त्यागकर 'स्व' को तुम स्वजन के लिए,
सोच किसको जताना चाहो तुम।
भूलो जाओ खुद अपनी प्यास न हो,
बीती बातों से दिल उदास न हो।
आज का यह जमाना गैर सा है,
पंछी खाकर के दाना उड़ जाएं,
बूढ़े मां बाप की फिकर है कहां,
हसीं रात की बाहों में वो सुकूं पाएं।
इनको बसाने का कुछ प्रयास न हो,
बीती बातों से दिल उदास न हो।
मेरी मानो तो एक हँसी जीवन,
खुद भी अपने लिए सँजो लो तुम,
दूसरों के लिए तो करती हो,
कुछ तो खुद के लिए भी कर लो तुम।
आते कल यूँ कभी खलास न हों
बीती बातों से दिल उदास न हो।।
बीती बातों से दिल उदास न हो
-----------------------------------
संकलक : एम आर अयंगर.
Andhra born. mother toungue Telugu. writing language Hindi. Other languages known - Gujarati, Punjabi, Bengali, English.Published 8 books in Hindi and one in English.
Can manage with Kannada, Tamil, assamese, Marathi .
Published Eight books in Hindi containing Poetry, Short stories, Currect topics, Essays, analysis etc. All are available on www.Amazon.in/books with names Rangraj Iyengar & रंगराज अयंगर
गुरुवार, 24 नवंबर 2016
उदास न हो...
उदास न हो.
पिछली बातों से क्यों
परेशां हो,
बीती
बातों से दिल उदास न हो,
भले ही
जिंदगी में कोई आस न हो,
बीते कल
की सड़ी भड़ास लिए,
आता कल तो
कभी खराब न हो।
बीती
बातों से दिल उदास न हो।
रात काली
हो, स्याह हो
कितनी,
एक
स्वर्णिम सुबह तो आएगी,
रात को
कोसती रही तुम जो,
सुबह की
स्वर्णिम छटा भी जाएगी।
स्याह
रातों से यूँ हताश न हो,
बीती
बातों से दिल उदास न हो।
मनको मत
बनाओ डिब्बा कचरे का,
उसे भी
रोज़ खाली करती हो,
धोती हो
रोज नहीं तो दूसरे दिन,
मन को
खाली नहीं क्यों करती हो।
इन तुच्छ
बातों से निराश न हो
बीती
बातों से दिल उदास न हो।
गर नहीं
खाली करोगी महकेगा,
पूरा
आहाता बदबू-मय होगा,
एक मन को
खाली करने से,
खुद के
संग सारा घर भी चहकेगा।
मन को तू
मार के संत्रास न हो,
बीती
बातों से दिल उदास न हो
सोचती हो
हमेशा दूजे का, कुछ
तो अपने
लिए भी सोचो तुम,
त्यागकर 'स्व' को तुम स्वजन के लिए,
सोच किसको
जताना चाहो तुम।
भूलो जाओ
खुद अपनी प्यास न हो,
बीती
बातों से दिल उदास न हो।
आज का यह
जमाना गैर सा है,
पंछी खाकर
के दाना उड़ जाएं,
बूढ़े मां
बाप की फिकर है कहां,
हसीं रात
की बाहों में वो सुकूं पाएं।
इनको
बसाने का कुछ प्रयास न हो,
बीती
बातों से दिल उदास न हो।
मेरी मानो
तो एक हँसी जीवन,
खुद भी
अपने लिए सँजो लो तुम,
दूसरों के
लिए तो करती हो,
कुछ तो
खुद के लिए भी कर लो तुम।
आते कल
यूँ कभी खलास न हों
बीती
बातों से दिल उदास न हो।।
बीती
बातों से दिल उदास न हो।
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सोमवार, 21 नवंबर 2016
कम्बख्त मुँह
कम्बख्त मुँह
आँख ने जो देखा उसे
मुँह कह जाता है.
क्या करूँ कमबख्त से,
चुप रहा नहीं जाता है।
वैसे ही जब कान सुनते हैं,
तो यह बे-लगाम मुँह
चुप नहीं रह पाता
कम्बख्त बक ही जाता है।
कई बार तो इसने
पिटने की सी हालत कर दी है
पता नहीं कब पिटाई हो जाए,
बस अब इससे भगवान ही बचाए।
जब पला बढ़ा
तब सच का बोलबाला था
ज़बान पर न कोई लगाम थी
न कोई ताला था।
गलती तो ज़बान की भी नहीं है
समाज के मूल्य बदल गए हैंँ
समाज से सच सहा नहीं जाता और ज़बान से
सच कहे बिना रहा नहीं जाता।
मजबूरियाँ झेल रहा हूँ
आग से खेल रहा हूँ
जो समझ पाते हैं
फेविकोल से जुड़ जाते हैं
और जो नहीं समझ पाते
वे टूटकर बिखर जाते हैं।
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Location:
Secunderabad, Telangana, India
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