नया साल
आज फिर नया साल आया...2014.
फिर एक बार दुनिया पुरानी हो गई,
जिंदगी (एक वर्ष) फिर छोटी हो
गई,
सब कुछ और हम सब,
कुछ और छोटे हो गए,
बीती बातों से सीखने की परंपरा,
अब शायद समाप्त ही हो गई है,
बीता सब कुछ रीता,
क्यों सोचें कल क्या पीता ?,
कैसे जीता ?
कल की भूलों को कल के लिए सुधारना,
जीवन को श्रेयस्कर बनाने के लिए,
शायद, सही मानसिकता – मानवीयता है,
सफर में आज जिस गली से,
गुजर रहे हैं, उसमें
इंसाँ नहीं शैतान बसते हैं,
कभी मानव परंपरा थी,
भूखा रह जाऊँ भले,
साधु न भूखा जाए,
शायद, उस युग में मानव संपन्न था
आनाज, धन-धान्य
भरपूर था.
किसी को अपनी परवाह,
करने की भी जरूरत नहीं थी
गुण, मानव का धन प्रमुख था.
किंतु आज,
हालात बदल गए हैं,
बिगड़ गए हैं,
उन्नत देशों में भी,
उन्नति के बावजूद
धन – धाऩ्य की संपन्नता
समुचित नहीं है,
शयद यही एक मात्र वजह है
आज के मानव के,
अमानवीय व्यवहार को,
यथोचित ठहराने का.
अन्जाने भविष्य के,
(भले ही अंधकारमय हो),
खुशहाली का ढोंग रचना,
आज की मानसिकता हो गई है,
सच्चाई कल्पना में समा नहीं सकती,
इससे डर कर जिया, तो क्या जिया,
लेकिन आशावादी मानव ने हमेशा,
नए साल की बंद मुट्ठी में लाखों सँजोए,
बीते वर्ष को विदा किया.
अगले वर्षांत इस वर्ष को भी ,
शायद इसी तरह से विदा देंगे,
(तब तक मुट्ठी खोले यह वर्ष
क्या, खाक साबित करेगा ???)
हेप्पी न्यू ईयर....
नव वर्ष मुबारक हो...
शुभकामनाएँ ....
2014 की....
एम.आर.अयंगर.