विधि या पतन का दौर ?
एक नारा दिया गया है-
काश्मीर से कन्याकुमारी भारत एक है...
शायद तब से,
जब से यह नारा दिया गया है.
यदि पहले भी था, तो यह नारा क्यों?
क्या केवल इसलिए कि लोग भूल रहे हैं ?
यानि एक रिमाईँडर...
और वाह! जनता भी खुश है,
इतना ही नहीं दाँत भी निपोर रही है.
यदि हाँ, तो बताने का कष्ट करें.
क्यों?
कबीरदासजी ने कहा था ,,,,
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे...
नारे लगाकर,
मन को कोई जगा सके तो...
मन के हारे हार कैसे होगी ?
हाय ! हम किस दर्दनाक मोड़ पर पहुँच गए हैं
मानव न जाने कब से
है,
लेकिन मानव संसाधन का
विकास,
अब शुरु हो रहा है.
राष्ट्रीय अखंडता के पाखंडी प्रचारक सोचते होंगे,
कि हमारी नाटकीयता से ही यह खंडित राष्ट्र,
अखंडित हो गया है,
वाह!
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते....
के इस देश में,
आज नारी – अत्याचार के विरुद्ध,
चौराहे पर खड़ी है,
इसकी रक्षा के विशेष कानून भी,
बे - असर साबित हो रहे हैं,
यहाँ शिक्षक भी हड़ताल करते हैं
नर्सें काम बंद कर देती हैं,
डॉक्टर डायालिसिस पर रोक लगा कर
मरीजों को वापस भेजते हैं,
रक्षकों में विद्रोह होने लगा है,
सुरक्षा गार्डों से सुरक्षा का भय रहता है,
"किसी नगर में किसी द्वार पर
कोई न ताला डाले..."
के इस देश में...
दिन दहाड़े – राजधानी में भी-
लूट मचती है, डाके पड़ते हैं,
“जहाँ डाल डाल पर
सोने की चिड़िया करती थी बसेरा…”
वह देश आज
…………
अंतर्राष्ट्रीय बैंकों के सहारे बैठा है,
वाह रे कालचक्र...
क्या इसी का नाम प्रकृति है,
विधि है या फिर
पतन का दौर...???
आज यह हमें
यहाँ तक लाया है,
न जाने ये हमें
कहाँ तक ले जाएगा ?
एम.आर.अयंगर.