मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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बुधवार, 13 मार्च 2013

सो जा.



सो जा.

सो जा बिटिया रानी,
आँखों में तेरे बसने को,
तड़पे निंदिया रानी,
      सो जा बिटिया रानी.

खोल द्वार उस परी नगर का,
इंतजार करती है तेरा,
उन परियों की नानी,
      सो जा बिटिया रानी.

सुंदरतम उस स्वप्न जगत में,
तुझे सुनाएगी हँस हँस कर,
हँसने वाली कहानी,
      सो जा बिटिया रानी.

संग रहेंगे चंदामामा,
तारे संग तेरे खेलेंगे,
करना तू मनमानी,
      सो जा बिटिया रानी.



एम.आर.अयंगर.

सोमवार, 11 मार्च 2013

विधि या पतन का दौर ?


विधि या पतन का दौर ?

एक नारा दिया गया है-
काश्मीर से कन्याकुमारी भारत एक है...
शायद तब से,
जब से यह नारा दिया गया है.

यदि पहले भी था, तो यह नारा क्यों?

क्या केवल इसलिए कि लोग भूल रहे हैं ?
यानि एक रिमाईँडर...

और वाह! जनता भी खुश है,
इतना ही नहीं दाँत भी निपोर रही है.

यदि हाँ, तो बताने का कष्ट करें.
क्यों?

कबीरदासजी ने कहा था ,,,,
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे...

नारे लगाकर,
मन को कोई जगा सके तो...
मन के हारे हार कैसे होगी ?

हाय ! हम किस दर्दनाक मोड़ पर पहुँच गए हैं
मानव न जाने कब से है,
लेकिन मानव संसाधन का विकास,
अब शुरु हो रहा है.

राष्ट्रीय अखंडता के पाखंडी प्रचारक सोचते होंगे,
कि हमारी नाटकीयता से ही यह खंडित राष्ट्र,
अखंडित हो गया है,
वाह!

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते....
के इस देश में,
आज नारी – अत्याचार के विरुद्ध,
चौराहे पर खड़ी है,
इसकी रक्षा के विशेष कानून भी,
बे - असर साबित हो रहे हैं,

यहाँ शिक्षक भी हड़ताल करते हैं
नर्सें काम बंद कर देती हैं,
डॉक्टर डायालिसिस पर रोक लगा कर
मरीजों को वापस भेजते हैं,
रक्षकों में विद्रोह होने लगा है,
सुरक्षा गार्डों से सुरक्षा का भय रहता है,

"किसी नगर में किसी द्वार पर
कोई न ताला डाले..."
के इस देश में...
दिन दहाड़े – राजधानी में भी-
लूट मचती है, डाके पड़ते हैं,

जहाँ डाल डाल पर
सोने की चिड़िया करती थी बसेरा…”
वह देश आज …………
अंतर्राष्ट्रीय बैंकों के सहारे बैठा है,

वाह रे कालचक्र...
क्या इसी का नाम प्रकृति है,
विधि है या फिर
पतन का दौर...???

आज यह हमें
यहाँ तक लाया है,
न जाने ये हमें
कहाँ तक ले जाएगा ?

एम.आर.अयंगर.

कुछ - करो !!!!!


कुछ - करो !!!!!

जिंदगी भीख में मिलती नहीं, माँगे मेरे मन,
आज जी ले, जो मिली यह जिंदगानी,
मत गँवा इसको, तू ऐसे गीत गाकर,
कुछ करो ऐसा - कि जागे यह जवानी.

इस धरा पर कुछ तो ऐसा काम कर लो,
याद करके लोग कुछ गुणगान कर लें,
अटकलें तो आएँगी, इनको लाँघना तुम,
यह तुम्हारी है परीक्षा जान लो तुम.

अवतार कर भी राम ने , क्या नहीं वनवास काटा ?
और पाँडवों ने भोगा नहीं अज्ञातवासा ?
उस राम ने ही सीता परीक्षा माँग ली थी

किस खेत की मूली हो कि,
झोलियाँ भर जाएँगी फूलों से तेरी,
बिन कँटीली झाड़ियों को झेलकर भी?

अटकलों को लाँघने को खेल समझो,
जीत जो लोगे उन्हें, तो काम आओगे किसी के.

याद कर लें लोग तो गुणगान करके,
इस धरा पर कुछ तो ऐसा काम कर ले,

जिंदगी यह भीख में मिलती नहीं मन,
आज जी ले, जो मिली यह जिंदगानी,
मत गँवा इसको तू ऐसे गीत गाकर,
कुछ करो ऐसा कि जागे यह जवानी.

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रविवार, 10 मार्च 2013

छुपन - छुपाई


              छुपन - छुपाई


                  झरोखे से माठी सुगंध आ रही है,

                  तुम यहीं पास मेरे कहीं पर छुपी हो,

                  रोशनी ये मद्धिम कहे जा रही है,

                  चेहरे को घूंघट से ढँक कर खड़ी हो,


                  उस दिन ग्रहण सूर्य का जब हुआ था,

                  तो ऐसा ही शीतल सुगंधित समाँ था,
               
                  चाँद पूनम का जब ओट बादल छुपा था,

                  उजाला भी मद्धम इसी तरह का था,

                  सताती हो ऐसे तुम अल्हड़ बड़ी हो,

                  दूर पर ही सही, पर क्यों छुप कर खड़ी हो?



                                   एम.आर.अयंगर.