मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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बुधवार, 4 जनवरी 2017

रूठना - मनाना



रूठना - मनाना

अगर है ना-गवारा तो, 
मैं अपना दर बदल लूँगा,
अगर बेहद कहो तुम तो,
मैं हद से भी गुजर लूँगा।।

मगर दोनों नहीं मंजूर होंगे,
है पता मुझको
किसे किस हदमें रखना है
खबर रखनी है हम सबको।।

रूठना, आपका हक है,.
पर कारण जानने का 
हमें भी हक है,
आप अपना हक 
बरकरार रखें
और  हमारा हक भी 
बरकरार रहने दें

जब तक संभव होगा 
मना ही लेंगे,
उस पर भी ऐतराज, कि
चिढ़ाते हैं, फिर मनाते है.
अरे! मनाएँगे कैसे,
जब रूठेंगे ही नहीं.

आप रूठना चाहें रूठें, 
मना ही लूँगा, विश्वास है,
पर हर बार कसौटी पर चढ़ते हुए
डर भी लगता है, यदि
सफल न हुआ तो? 
यही सोच कर दिल दहलता है,

कहीं दुर्भाग्य से भी 
ऐसा हो गया तो...
सह पाएँगे अलगाव?
यह भी तो सोचकर 
रहा नहीं जाता, कि
जब होगा तब देखा जाएगा.

शायद अच्छा यही होगा कि आप 
अपने रूठने का कारण बताते चलें
एक कारण से एक ही बार रूठेंगी,
दूसरी बार नहीं, 
इसका वादा कर सकता हूँ

इससे रूठना तुरंत कम होगा,
कुछ समय में बंद भी होगा
मुझे मनाना भी कम पड़ेगा
आपसी समय भी बढ़ेगा.
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