ज्ञान का पुनर्दान एवं काश !!! .
श्रीमान, ज्ञान के धनवान,
दयावान , यजमान,
इस धरा को दो ,
ज्ञान का पुनर्दान.
विश्व में ,
मानव की अमानुषिकता से व्यथित,
ज्ञान लुप्त हो गया है,
कौन करता है आह्वान?
प्राण अपरिचित हो गए हैं,
प्रतिबिंबित होती है केवल शान.
पानी में हवा का बुलबुला,
अपनी क्षणिकता जीवन को दे गया है,
अब विश्व ही क्षणिक लगता है,
हिमालय का पिघलना,
धरती का कटना,
वर्षांत में घड़ियों को आगे बढ़ाना,
पृथ्वी के गति के ये ही तो अल्प विराम हैं.
जाने कब पूर्ण विराम लग जाए?
वसुधैव कुटुंबकं के इस युग में,
कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ,
इक्कीसवीं सदी को परिलक्षित कर,
बारहवीं सदी की ओर बढ़ते हुए,
विज्ञान को वरदान का रूप दे रही हैं?
युद्ध की ये शक्तियाँ !!!
श्रीमान, ज्ञान के धनवान,
दयावान, यजमान,
इस धरा को दो ज्ञान का पुनर्दान !!!!!