मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

ठोकर न मारें..


ठोकर न मारें

दिखाकर रोशनी, दृष्टिहीनों को,
और प्रदीप्यमान सूरज को,
रोशनी का तो अपमान मत कीजिए !!!

और न ही कीजिए अपमान,
सूरज का और दृष्टिहीनों का.

इसलिए डालिए रोशनी उनपर,
जिन्हें कुछ दृष्टिगोचर हो,
ताकि सम्मान हो रोशनी का,
और देखने वालों का आदर.

एक बुजुर्ग,
जिनकी दृष्टि खो टुकी थी,
हाथ में लालटेन लेकर,
गाँव के अभ्यस्त पथ से जा रहे थे,

एक नवागंतुक ने पूछा,
बाबा, माफ करना,
दृष्टिविहीन आपके लिए, इस
लालटेन का क्या प्रयोजन है ?

बाबा ने आवाज की तरफ,
मुंह फेरा और बोले –

बेटा तुम ठीक कहते हो.
मेरे लिए यह लालटेन अनुपयोगी है,
फिर भी यह मेरे लिए जरूरी है.

ताकि राह चलते लोग,
कम से कम इस लालटोन की,
रोशनी में देखकर,
मुझ जैसे  बुजुर्ग को—
ठोकर न मारें.

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

आपके जाने के बाद ! ! !


आपके जाने के बाद ! ! !

शायद बदल खुद ही गया हूँ,
बदले हुए हालात में,
बदली लगी दुनियाँ मुझे,
आपके जाने के बाद.

बहारों से भरी बगिया,
फिजाँ को प्यारी हो गई,
अब नहीं खिलती हैं कलियाँ,
आपके जाने के बाद.

मस्त यारों में रमे थे,
भूले गम आबे - हयात,
बच गई केवल तन्हाई,
आपके जाने के बाद.

...... भी राजी नहीं है,
और सब भी जी नहीं हैं,
संग यादें रह गई हैं,
आपके जाने के बाद.

चार दिन की चाँदनी है,
फिर अँधेरी रात,
चाँदनी भी छिप गई है,
आपके जाने के बाद.

अंत सोचा भी नहीं था,
बस जी रहे थे शान से,
अब तो चक्का जाम है,
आपके जाने के बाद.

जो खून देने में नहीं हिचका,
कभी था आज तक,
अब जुबाँ देना न चाहे ,
आप के जाने के बाद.
००००००००००००००००००००००००००

सोमवार, 10 अक्टूबर 2011

पूछो जी पूछो...


पूछो जी पूछो …………. ???


नयनों के कोरों से,
पवन के झकोरों से,
पूछो जी पूछो ...............???
ये बात कहाँ से उड़कर ?,
पहुंची है तुम तक.

कविता से छंद से,
फूल की सुगंध से,
पूछो जी पूछो .............  ???
ये साथ अपने लेकर क्या ?
पहंची है तुम तक.

मँझधारों किनारों से,
धारों पतवारों से,
माँझी के इशारों से,
चंदा से तारों से,
पूछो जी पूछो ………………… ???
ये राज कहाँ से पाकर ?
पहुंची है तुम तक.

बलखाती राहों से,
लहराती बाहों से,
अनमोल अदाओं से,
रंगीन फिजाओं से,
पूछो जी पूछो …………………….. ???

ये बात कहाँ से उड़कर ?
पहुंची है तुम तक.


एम.आर.अयंगर.

रविवार, 9 अक्टूबर 2011

लाल बहादुर शास्त्री जी.


03102011
लाल ( बहादुर शास्त्री )

गीता को अपनाना, फिरसे
जिसको तुमने सिखलाया,
किसानों औ जवानों का,
जहाँ किया था जयकारा,

इक आवाज के दम पर तेरे,
सारे देसवासियों ने, हफ्ते
तेरह भोजन स्वीकारा,
एक कम किया अन्न बचाने,
भूखा रहकर बेचारा.

जय जवान – जय किसान
नारा, आज भी दिल को छूले,
उसी जगह हम आज तुम्हारा,
जनम दिवस भी भूले.

ताशकंद में अगर न होती,
हावी तुम पर काल,
आज न होता भारत का ,
जैसा अब है हाल.
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2 अक्तूबर को इनका भी जन्म दिन था।।।
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एम.आर.अयंगर.