मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

राजेश की डाँट

राजेश की डाँट

प्रमोद और राजेश दोनों गहरे दोस्त थे. प्रमोद छोटा था पर शादी शुदा था और राजेश बड़ा पर अनब्याहा. दोनों सोसायटी के एक ही बिल्डिंग के दो मंजिलों पर रहते थे. हालाँकि दोनों अलग अलग महकमें में काम करते थे पर कार्यस्थल साथ होने से अक्सर वे साथ ही कार्यालय जाते थे. छुट्टियों के दिन तो राजेश प्रमोद के घर ही खाता पीता था. जब कभी प्रमोद की पत्नी कुसुम मायके जाती तो दोनों साथ ही नाश्ता खाना करते. दिन तो कार्यालय में बीत जाता था.

राजेश व प्रमोद में अथाह आत्मीयता थी. उसी का असर था कि राजेश कुसुम का भी लाड़ला देवर बन गया. बहुत बनती थी तीनों में. देवर की फरमाईशें होती और भाभी जी पूरी करतीं. उल्टा भी होता था पर बहुत कम.

जब भी कुसुम मायके जाती तो अक्सर राजेश से प्रमोद की खबर लेती रहती. जब प्रमोद से बात न हो पाए या उसकी तबीयत खराब हो तो खासकर. राजेश भी कुसुम को सारी बातें बेझिझक बता दिया करता. कोई छुपन - छुपाई की बात तो थी ही नहीं. कुसुम अक्सर प्रमोद की चिंता करती रहती कि उसको सिर में दर्द हो जाता है कभी कभी. पर जब होता है तो कुछ ही देर में बात बिगड़ने लगती है और उसे उल्टियाँ तक हो जाती हैं. हमेशा डरती रहती है कि उन्हें सिर दर्द न हो और हो तो बिगड़ न जाए. 

कुसुम एक भरे पूरे परिवार से आयीं थी. पिता का कारोबार था. फर्नीचर की इंडस्ट्री थी उनकी. साथ ही एक साथ ही एक स्कूल भी चला रखा था उन्होंने – समाज सेवा के लिए. कुसुम खुद भी उसी स्कूल में पढ़ी थी, अब तो अच्छी पढ़ी लिखी थी. इसलिए जब मन करता स्कूल जाकर बच्चों को कुछ पढ़ा आती थी. आज भी जब कभी मायके जाती है तो समय निकाल कर दो दिन तो स्कूल में पढ़ा ही आती है.

एक दिन मायके में गई कुसुम ने प्रमोद से बात की तो पता चला कि उसके सर में दर्द है. वह ऑफिस में था. कुसुम डर गई कि कहीं मुसीबत न खड़ी हो जाए. तबीयत यदि ज्यादा बिगड़ी तो सँभालना मुश्किल हो सकता है. प्रमोद को ज्यादा सर दर्द से उल्टियों की शिकायत भी हो जाती थी. इसलिए कुसुम बीच - बीच में फोन से प्रमोद के संपर्क में थी. पर शाम कुछ समय बाद प्रमोद से कुसुम का संपर्क रुक गया.

प्रमोद शायद ऑफिस से निकल चुका था, पर घर नहीं पहुँचा था. इसलिए कुसुम से संपर्क हो ही नहीं सकता था. तब उन दिनों मोबाईल का चलन नहीं था. ऑफिस से, घर से या फिर किसी टेलीफोन बूथ से ही फोन हो पाता था. उधर प्रमोद को न पाकर कुसुम परेशान हुए जा रही थी. बेचैनी की हद के पार आते ही उसने राजेश को फोन लगाया. आज राजेश जल्दी घर आ गया था. उसने कुसुम से कहा आज वे साथ नहीं आए हैं और उसे प्रमोद के तबीयत की कोई खबर नहीं है. वह उनके घर जाकर देख आए तो बताए कि बात क्या है. कुसुम ने बताया कि शायद वे घर नहीं पहुँचे हैं क्योंकि घर का भी फोन नहीं उठ रहा है. उनके सर में दर्द था सुबह से, पता नहीं अब कैसा है. कहीं बढ़ न गया हो.. तब राजेश ने समझाया कि भाभी जी आप परेशान न हों. उसने कुसुम को बताया कि मैं अभी आपके घर जाकर देख आता हूँ, पता करता हूँ कि प्रमोद कहाँ है, कैसा है, किसके साथ है और खबर मिलते  ही आपको बताता हूँ.

राजेश ने जाकर देखा कि प्रमोद के मकान में ताला लगा है. ऑफिस में फोन उठ नहीं रहा था. दो एक दोस्तों से पता किया तो खबर मिली कि हाँ सर में दर्द तो था पर कोई परेशानी नहीं थी. हाँ प्रमोद डर जरूर रहा था कि बात बिगड़ने से पहले घर पहुँच जाए तो बेहतर होगा  घर जाने की राह में कुछ काम करते हुए जाने की कह रहा था प्रमोद. यही सब बातें राजेश ने फोन पर कुसुम को बता दिया.

पर कुसुम का मन विचलित था . वह मानने को तैयार नहीं थी कि अब तक प्रमोद घर नहीं आया है. सर दर्द के समय वह कहीं नहीं जाता क्योंकि उसे बढ़ने का डर होता है और यदि बढ़ गया तो वह कुछ भी करने लायक नहीं रह जाता. वह जल्दी से जल्दी घर पहुँचने की कोशिश करता है. पर आज ऐसा क्यों.

थोड़ी - थोड़ी देर में कुसुम का फोन राजेश के पास आता रहा कि जान लें ... प्रमोद आया कि नहीं... क्या खबर है... पर वही जवाब कि प्रमोद आया ही नहीं. आप चिंता न करें. आते ही मैं खबर दे दूँगा या बात करा दूँगा. इस तरह जब चार पाँच कॉल आ गए तो राजेश भी उखड़ने लगा. एक बार तो परेशान होकर कुसुम कह बैठी कि आप झूठ बोल रहे हो, बात छुपा रहे हो. उनकी तबीयत ज्यादा खराब है क्या...मैं आ जाऊं. राजेश समझाने की कोशिश करता रहा पर बात बनती नहीं लग रही थी.
जब ऐसे फोन बार - बार आने लगे तो राजेश ने एक बार कह ही दिया . भाभी जी आपने भैया कहा है तो विश्वास कीजिए. प्रमोद नहीं आया है आते ही मैं बता दूँगा. जब कुसुम नहीं ही मान रही थी तो राजेश ने बिफर कर कहा कि आप यदि विश्वास नहीं कर रही हैं तो ठीक है अब फोन न करें, मुझे भैया कहना छोड़ दें और आपके पापा से कहकर टेक्सी बुक कर लें और आ जाएँ. रात हो गई है तो क्या पापा तो टेक्सी करा ही सकते हैं. पर हाँ किसी को साथ लेकर आईए अकेले नहीं.

राजेश तो परेशान हो ही गया था. कुसुम तो परेशान थी ही. बात बिगड़ गई. शायद कुसुम को बुरा लगा. उसने फोन रख दिया. कुछ देर बाद फिर फोन आया. राजेश सिहर गया कि फोन उठाऊं या नही. वह डर रहा था कि यदि कुसुम का फोन हुआ तो क्या जवाब देगा, उसको कैसे समझाएगा. सोचते – सोचते किंकर्तव्यविमूढ़ राजेश ने फोन उठा लिया. उधर से एक पुरुष की आवाज आई. राजेश को शाँति हुई.

उन्होंने पूछा आप राजेश जी बोल रहे हैं. हाँ, सुनकर बताया कि मैं प्रमोद का ससुर बात कर रहा हूँ यानी कुसुम का पिता. दुआ सलाम पूरी होने पर उनने पूछ ही लिया ... बेटा क्या बात हुई थी कुसुम से.. कुछ परेशानी की बात है क्या... पिछली बार फोन पर बात करने के बाद से वह रो रही है, कुछ बताती ही नहीं. राजेश पहले तो डर गया पर सँभल गया और उसने पूरी बात कह दी. पापा जी ने बताया कि हमने अपने बच्चों को कभी डाँटा नहीं है, इसलिए वह ऊँची आवाज से डर गई है. ठीक है मैं उसको समझा दूँगा. पर बेटा थोड़ा खयाल करना और प्रमोद आए तो हमारी बात करवा देना.

रात 9 बजे प्रमोद घर आया. जब राजेश से मुलाकात हुई तो पता लगा कि वह तो खाना खाकर आ गया है ताकि आराम कर सके. राजेश ने फोन पर पापाजी से बात कराया और कुसुम से बात करते समय खाना खाने के लिए बाहर चला गया.

राजेश की जो हालत थी उसमें खाना तो क्या खाया जाता. उस पर प्रमोद का साथ भी नहीं था. वापस जब लौटकर राजेश प्रमोद के पास आया तो प्रमोद खिलखिला रहा था. लगता था कुसुम और पापा से बात करने पर उसका सरदर्द कम हो गया था. वह राजेश से पूछ पड़ा... अरे राजेश, तुमने कुसुम को डाँट लगा दी आज. राजेश अपनी सफाई देने लगा कि... किंतु प्रमोद ने हँसते हुए कहा कि मुझे पापाजी और कुसुम से सब पता चल गया है. ठीक है यार, कोई बार - बार फोन करे तो तुम परेशान नहीं होगे, तो क्या करोगे. कल कुसुम आ रही है उसी से बात कर लेना.

जानकारी के अनुसार दूसरे दिन शाम तक कुसुम लौट आई. शाम की चाय पर विशिष्ट चर्चा का विषय था – राजेश की डाँट. सब पेट फाड़कर हँस रहे थे. इसी खिलखिलाहट में राजेश और कुसुम के गुस्से भी
धुल गए और फिर वही पुराने रिश्ते फिर कायम हो गए. पर जब भी वे मिलते हैं, आज भी राजेश की डाँट एक विशिष्ट चर्चा का विषय रहता है.
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सोमवार, 28 नवंबर 2016

विधाता




विधाता

क्यों बदनाम करो तुम उसको,
उसने पूरी दुनियां रच दी है.
हम सबको जीवनदान दिया
हाड़ माँस से भर - भर कर.

हमने तो उनको मढ़ ही दिया
जैसा चाहा गढ़ भी दिया,
उसने तो शिकायत की ही नहीं
इस पर तो हिदायत दी ही नहीं।

हमने तो उनको 
पत्थर में भी गढ़ कर रक्खा..
उसने तो केवल रक्खा है पत्थर
कुछ इंसानों के सीने में
दिल की जगह,
इंसानों को नहीं गढ़ा ना 
पत्थर में।

सीने में पत्थर होने से बस
भावनाएं - भावुकता 
कम ही होती हैं ना,
मर तो नहीं जाती।।

मैने देखा है
मैंने जाना है,
पत्थर दिलों को भी
पिघलते हुए
पाषाणों से झरने झरते हुए
चट्टानों से फव्वारे फूटते हुए।।

क्यों बदनाम करो तुम उसको,
उसने तो दुनियां रच दी है.
हम सबको जीवनदान दिया
हाड़ माँस से भर भर कर.
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इंतजार




इंतजार


किसी ने कहा है
इंतजार का फल मीठा होता है
कोई उनसे ही पूछे कि
इंतजार कितना तीखा होता है।

अपनापन जताते रहो
अपने मत बनो
अपना बनाने की 
कोशिश तो होगी।

मंजिल की ओर बढ़ते हुए
सफर में रुकने पर भी
मंजिल जल्द कैसे पहुंचे
यही सवाल होता है
और मंजिल पहुँचने पर
अब तो मंजिल आ ही गए
किस बात की पहल

आपसी अंतर न रहे तो
पाने की लालसा क्यों होगी
प्रेमिका पत्नी बन जाए तो
खुश करने की मंशा क्यों होगी.

जिंदगी मजे में जीने के लिए
यह दूरी मजबूरी है
दूरियां मुश्किल तो हैं
पर होती बहुत जरूरी है.
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खुशी.

खुशी.

एक लड़की मुझे कविता भेजती  है,
क्या करूँ उसका मगर,
होती है आधी,
साथ उसके भी निवेदन भेजती है,
कर दो उस कविता को पूरी,
जो है आधी.

भावनाओं से बँधा हूँ,
पूरी तो करना है उसको,
वक्त की कोई कमी हो,
यूँ नहीं डरना है मुझको.

शब्द देवी ने दिया भंडार भरकर,
कर सका सेवा मैं रचनाकार बनकर,
जब बना जैसा बना, दी है सेवा,
फल उसी का जो मुझे मिलती है मेवा,

वक्त था वह, 
लोग माँगे खून मुझसे,
हैं बहुत बच्चे
जो माँगे 'मून' मुझसे,
हर किसी को मनमुताबिक,
चाहकर भी दे न पाया,
जो बना जब भी बना,
जैसा बना मैं दे ही आया.

लोग खुश होते हैं 
कोई चीज पाकर
होती खुशी मुझको मगर 
हर चीज देकर, 

देने वाले की खुशी
पाने वाले की खुशी 
से भी बड़ी है,
इसमें सभी खुश हैं.
जो पाता है वह भी खुश
और जो देता है वह भी खुश ।

चाहता तो कुछ नहीं,
वापस जहाँ से,
क्या लिए जाना किसी को,
बोलो यहाँ से,
हाथ खाली आए हैं तो
जाएँगे भी हाथ खाली,
पर न जाने इस जगत में
 क्यों करें हम फिर दलाली।
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