एक लड़की मुझे कविता भेजती है,
क्या करूँ उसका मगर,
होती है आधी,
साथ उसके भी निवेदन भेजती है,
कर दो उस कविता को पूरी,
जो है आधी.
भावनाओं से बँधा हूँ,
पूरी तो करना है उसको,
वक्त की कोई कमी हो,
यूँ नहीं डरना है मुझको.
शब्द देवी ने दिया भंडार भरकर,
कर सका सेवा मैं रचनाकार बनकर,
जब बना जैसा बना, दी है सेवा,
फल उसी का जो मुझे मिलती है मेवा,
वक्त था वह,
लोग माँगे खून मुझसे,
हैं बहुत बच्चे
जो माँगे 'मून' मुझसे,
हर किसी को मनमुताबिक,
चाहकर भी दे न पाया,
जो बना जब भी बना,
जैसा बना मैं दे ही आया.
लोग खुश होते हैं
कोई चीज पाकर
होती खुशी मुझको मगर
हर चीज देकर,
देने वाले की खुशी
पाने वाले की खुशी
से भी बड़ी है,
इसमें सभी खुश हैं.
जो पाता है वह भी खुश
और जो देता है वह भी खुश ।
चाहता तो कुछ नहीं,
वापस जहाँ से,
क्या लिए जाना किसी को,
बोलो यहाँ से,
हाथ खाली आए हैं तो
जाएँगे भी हाथ खाली,
पर न जाने इस जगत में
क्यों करें हम फिर दलाली।
-----------------------------------------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your comment. I will soon read and respond. Kindly bear with me.