कलुषित
नव रत्न
भारत
कभी सोने की चिड़िया, रत्नों की खान और ज्ञान का सागर कहा जाता था.
लेकिन
हमारी जनसंख्या ने खासकर इस पर बड़ा प्रहार किया. विदेशी जो लूट गए सो तो लूट ही
गए किंतु जन,संख्या की मार ने हमारे बीच ही होड़ खड़ी कर दी. संसाधनों के आभाव में
हम स्वार्थी होते गए. दाने - दाने को तरसता गरीब अपना ईमान खो बैठा. इसी गरीबी और
मजबूरी की आड़ में हमारे नेताओं ने भी ईमान बेचकर अपना स्वार्थ साधा. इस तरह देश का नागरिक और नेता दोनों कौम अपना
व्यवहार खो बैठे. उनको अपने व्यवहार की चिंता उनको नहीं होती किंतु अन्यों का वही
व्यवहार उन्हें परेशान करता है. ऐसे ही कुछ आदतें लोगों को कलुषित रत्न बनाती हैं.
ऐसे ही कुछ वाकए यहाँ उद्धृत किए जा रहे हैं.
पहला
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आप
बढ़िया तैयार होकर मूड में किसी इंटर्व्यू के लिए निकल पड़े हैं. बीच रास्ते में
सहसा एक कार वाला अपनी अंधाधुंध रफ्तार में आते हुए आपके कपड़ों पर कीचड़ उछाल
जाता है. सोचिए आपके मूड का क्या होगा. क्या होगा आपके इंटर्व्यू का. कम से कम यह
तो तय हो गया कि यदि परिणाम सार्थक नहीं हुआ तो इसका कारण वह कार वाला ही होगा.
आपके नुकसान का सोचिए. नौकरी या कालेज की सीट मिलते मिलते रुक गई. अगर नौकरी की
सख्त जरूरत होती तो – आपके सपने बिखर ही गए होते. यह किसी हादसे से कम नहीं है.
किंतु जब हम कार की स्टीयरिंग पर होते हैं या बरसात में स्कूटर, मोटर सायकिल चला रहे
होते हैं तो हमें ख्याल ही नहीं रहता कि कोई इंटर्व्यू के लिए जा रहा हो सकता है.
किसी का कोई प्रोग्राम होगा. कोई पार्टी में जा रहा होगा. हम बस अपनी तुनक में
जल्दी जा रहे होते हैं. जब किसी के कार्य विशेष से हमें तकलीफ होती है तो क्या
हमारा फर्ज नहीं है कि हम कम से कम वैसी गलतियाँ न करें. पर हम सोच नहीं पाते.
दूसरा
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आप
टिप टॉप सज सँवर कर अपनी सहेली के बर्थ डे पार्टी में जा रही हैं. सहेली के घर की
देहरी पर आपके सर पर बाल्टी भर पानी गिरता है. जब हाथ से पोछने जाती हैं तो उसमें
बारीक कण महसूस होते है. दर्पण देखती हैं तो खून खौल जाता है क्योंकि जो आप पर
गिरा था वह घर पोछा करने के बाद बाल्टी से उँडेला हुआ पानी था. आप पार्टी प्लेस
में आ चुकी हैं. चेंज करना संभव नहीं है. पार्टी छोड़ना नहीं चाहतीं. सोचिए आप पर
क्या बीतती है. किसी तरह सहेली के कपड़े पहन कर आप पार्टी तो पूरा कर लेती हैं
लेकिन उन ऊपरी मंजिल वाले पर गुस्सा तो उतारना ही उचित समझती हैं. घर आने पर दो
दिन बाद अपनी काम वाली को अपने मंजिल से पानी नीचे फेंकते हुए देखती हैं, तो चुपके
से भीतर चली जाती हैं कि आप पर कोई इल्जाम न आए. आप उसे मना भी नहीं करती. जो आप
को बुरा लग सकता है वह दूसरों को भी बुरा ही लगेगा इसका एहसास आपको नहीं होता.
तीसरा
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आज
दसवीं का रिजल्ट निकला है. पड़ोसी बहुत अच्छे नंबरों से पास हुआ है. वह आपसे अपनी
खुशी साझा करना चाहता है. उत्सुकतावश जल्द से जल्द दरवाजा खुलवाने के लिए वह आपके
घर की कालिंग बेल का बटन दबाए रखता है कि घंटी लगातार बजे और आप भागकर दरवाजा
खोलें. लेकिन होता कुछ और है. ये घंटियाँ इतनी देर तक बिजली नहीं झेल पातीं और जल
जाती हैं. आपका ध्यान जले घंटी के बू पर होता है किंतु आप पड़ोसी के खुशी में बाधक
नहीं बनना चाहते, इसलिए उसे कुछ नहीं कहते. जब आपके घर में कोई बीमार होता है और
उसे तुरंत डाक्टर की जरूरत होती है, तो डाक्टर के घर जाकर घंटी उसी उत्सुकता वश
पड़ोसी की तरह ही बजाते हैं. अपने घर के नुकसान से हम सीखते नहीं और दूसरे का
नुकसान कर देते हैं.
चौथा
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बहुत
समय बाद मौका मिला तो आज हम सब परिवार वाले पार्क में पिकनिक जैसा मनाने आ गए.
लेकिन पूरे पार्क में जगह जगह मूंगफल्ली के छिलके, प्लास्टिक बैग, कागज की प्लेटें
और गिलास बिखरे पड़े थे. बड़ी मुश्किल से एक पेड़ के नीचे साफ सुथरी जगह मिली.
हमने अपना डेरा वहीं जमा लिया. पहला दौर चाय का हुआ, बच्चों ने नाश्ता करना चाहा
तो मिक्सचर और समोसे खाए गए. पानी के लिए प्लास्टिक के गिलास तो लाए ही थे. फिर हम
सब खेलने भिड़ गए. खेल के लिए परचियाँ लाई गई थीं. हरेक को परची उठाकर उसमें जो
लिखा था, वह करना था. एक राउंड पूरा होते होते ही सबको भूख लग गई. साथ लाया खाना (
सब बाजार से खरीदा ही था) कागज के प्लेटों में परोसा गया. बच्चे बड़े सब मिलकर
खाने लगे. पानी पीकर कुछ ने तो आराम किया,
तो कुछ गप लड़ाने लगे. फिर दूसरा दौर हुआ खेल का. अँधेरे के पहले ही हम सब कोल्ड
ड्रिंक - चाय पीकर घर की तरफ चलने लगे. सब
गाड़ियों में बैठ चुके थे. मैं जब गाड़ी में बैठ रहा था तब पीछे मुड़कर एक बार देखा
कि कुछ छूट तो नहीं गया है. दिल धक कर गया. जगह वैसी ही थी जैसी जगह हमने देखकर
हमने उन लोगो को कोसा था कि ऐसा गंदा क्यों कर जाते हैं. हम भी वही करके जा रहे थे. अपनी बारी आई तो बहुत तकलीफ हुई लोगों को भला
बुरा कहा. लेकिन हम उनसे बेहतर कुछ भी ना कर सके
पाँचवाँ
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अखबार
में आए दिन फोटो छपती रहती हैं. नेता लोग कुछ न कुछ उद्घाटन करते रहते हैं. उसके
बाद उस परियोजना का क्या हुआ यह जानने की जरूरत भी उन्हें नहीं होती. बस अखबारों
की सुर्खियों में रहना ही उनका मकसद होता है. फोटो के साथ ऐसी बकवास करते दिखाए
जाते हैं जैसे उनके कंधों पर ही परियोजना टिकी है पर पूरा का पूरा खोखला विज्ञापन
के सिवा कुछ नहीं होता. हमारी जनता इन सब को जान कर भी अनजान बनी रहती है और ये
नेता लोगों को ऐसे ही बेवकूफ बनाते रहते है. मुझे ऐसे नेता व ऐसी जनता दोनों से
शिकायत है... और नफरत भी.
छटवाँ
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मेरे
पास एक दोस्त आता है और देखता है कि मेरे बुक शेल्फ में बच्चन जी की मधुकलश रखी है जो आसानी से बुक स्टोर्स
पर नहीं मिलती. वह विनती करता है कि उसे पुस्तक पढ़नी है और न मिलने के कारण वह
पढ़ नहीं पाया. यदि मैं उसे पुस्तक कुछ दिन के लिए पढ़ने दे दूँ तो वह मेरा बहुत
ही आभारी रहेगा. मैं खुद पुस्तक-पसंद होने के कारण पुस्तक पढ़ने के लिए दे देता
हूँ. कुछ दिन अब कुछ हफ्ते व महीनों में तब्दील हो जाते हैं. किंतु पुस्तक लौटकर
नहीं आती. एक दिन वह मित्र मुझे नजर आ जाता है, तो मैं उत्सुकता वश पूछ लेता हूँ
कि भई अब तक किताब पढ़ी नहीं गई ? तो
जवाब मिलता है कब की पढ़ ली सर. आप कभी भी ले जाईए. मेरा तो सर घूम जाता है ... जब
पुस्तक चाहिए थी तो दे दीजिए आभारी रहूँगा और पुस्तक मिल गई, पढ़ लिए तो “अब भारी रहूँगा” सा बर्ताव हो गया. लेकिन
लौटाने की बात आई तो जब चाहिए ले जाए. यह कहाँ की संस्कृति है .. तहजीब है... इसी
लिए किसी अजीज को भी पुस्तक देने से मन कतराता है.
सातवाँ
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आप
ऑफिस लाउंज में या किसी होटल में मुँह धोने वाशरूम में प्रवेश करते हैं तो देखते
हैं कि एक टाई लगाया हुआ शख्स वाश बेसिन से वापस आ रहा है. जब आप वाश बेसिन पर
पहुँचते हैं तो देखते हैं कि उसमें तंबाखू की पीक पड़ी है – एकदम ताजा. आप घिन
करने लगते हैं कि टाई पहनकर भी यह तहजीब है वाह रे वाह ! आप
वाशरूम के दूसरी तरफ जाकर वाश बेसिन का प्रयोग करते हैं और मुँह धोने के बाद
तंबाखू की पीक वाश बेसिन में न फेंक कर उसे बगल की दीवार के कोने में थूकते हैं.
पर आपको आभास नहीं होता कि गंदा उसने भी किया था गंदा मैंने भी किया है दोनों ही
अपराधी है.
आठवाँ
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आपके
घर कोई गेस्ट आता है. नाश्ता चाय के बाद उसे आपके टॉयलेट के उपयोग की जरूरत होती
है. आप उसे जगह दिखा देते हैं. वह उसका प्रयोग कर वापस लौट जाता है. थोड़ी बातचीत
के बाद वे चले जाते हैं. कुछ समय बाद जब आप टॉयलेट में जाते हैं तो देखते हैं कि
प्रयोग के बाद फ्लश नहीं किया गया है और पूरा टॉयलेट बदबू से महक रहा है. आप उसे
दो तीन बार फ्लश करते हैं और दूसरे टायलेट में जाकर अपनी समस्या का समाधान करते
हैं. कुछ दिन बाद आप एक कान्फ्रेंस में जाते
हैं, जो एक पाँच सितारा होटल में हो रहा है. बीच में आपको वाश रूम की जरूरत पड़ती
है. जल्दबाजी में आप वाश रूम जाते हैं प्रयोग करते हैं और अपनी सीट पर लौट जाते
हैं. आपको याद भी नहीं रहता कि उपयोग के बाद फ्लश भी करना होता है. आपके घर पर इसी
तरह की भूल के लिए आप खौल रहे थे अब आप वही भूल कर रहे हैं ... शायद इसलिए कि यह
आपका घर नहीं है.
नौवाँ
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कॉलेज
के दिनों में अक्सर ऐसा होता है कि सेशनल्स या होमवर्क को आपस में बाँट लिया जाता
है और एक - एक विषय एक - एक स्टूडेंट के पास होती है जो मूल रूप से उसे पूरा करता
है. बाकी सब उसी को थोड़े हेर - फेर के साथ कापी करते हैं या टोपो करते हैं.
जेन्टलमैन एग्रीमेंट यह होता है कि कापियाँ घूमती रहें किंतु जिस दिन जमा करना है,
उस दिन सब कापियाँ जहाँ भी हों कालेज लायी जाएंगी और उसका मालिक कक्षा में हो न हो
कापियाँ जमा कर दी जाएंगी. लेकिन कुछ स्मार्ट या कहिए स्वार्थी होते हैं जो गलती
से या मर्जी से कापियाँ भूल जाया करते हैं और केवल अपनी कापी जमा कर देते हैं.
किंतु जब मूल मालिक अगली बार कापी देने से इंकार कर देता है तो उसे बुरा भला कहते
हैं. उन्हें अपनी गलती का एहसास ही नहीं होता. पर वे मूल बनाने वाले साथी को बदनाम
करने से नहीं चूकता.
यह
तो कुछ त़ुरंत जेहन में आए वाकयों को समावेश किया है. ऐसे कई वाकए होंगे जहाँ अपनी
जैसी आदतें हमें बुरी लगती हैं जब उन्हें कोई दूसरा अपनाता है. लेकिन अपनी बारी
आती है तो हम सुधरने – सुधारने की सोचते ही नहीं. पता नहीं यह कौन सी मानसिकता है
और इसका समाधान क्या है.
रत्न,
आदत, वाकए, जेंटलमैन, तंबाखू, पीक, फ्लश.