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गुरुवार, 30 जून 2022

पुस्तक समीक्षा - ऊँचे अटरियों की सिसकियाँ : लेखिका श्रीमती बिम्मी कुँवर सिंह

 

पुस्तक समीक्षा - ऊँची अटरियों की सिसकियाँ

पुस्तक ऊँची अटरियों की सिसकियाँ श्रीमती बिम्मी कुँवर सिंह की रचनाओं की पहली प्रकाशित पुस्तक है। यह पुस्तक एक कहानी संग्रह है। 103 पृष्ठों की इस पुस्तक में कुल 12 कहानियाँ संकलित हैं। पुस्तक सर्व भाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली से वर्ष 2021 में प्रकाशित हुई है। आवरण चित्राँकन श्री मयंक शेखर ने किया है। जैकेट के साथ सख्त जिल्द की इस आकर्षक पुस्तक की कीमत मात्र रु. 200 रखी गई है।

पुस्तक की भूमिका वरिष्ठ साहित्यकार एवं राजभाषा अधिकारी श्री धीरेंद्र सिंह द्वारा लिखी गई है। अपनी बात में बिम्मी जी ने बताया है कि बचपन में माई ( परनानी ) स्व. रामकेसरा कुँवर सिंह और माता श्रीमती शीला सिंह से सुनी कहानियाँ ही बाल-मन से होकर कागज पर उतरी हैं। लेखन का प्रोत्साहन माँ की तरफ से मिला। शायद इसीलिए लेखिका ने इस पुस्तक को अपनी परनानी और माता जी को समर्पित किया है। बिम्मी जी ने अपने इष्ट देव और गुरुदेव से शुरु करते हुए जीवनसाथी संजय कुमार सिंह, प्रकाशक सर्व भाषा ट्रस्ट के श्री केशव मोहन जी और वरिष्ठ साहित्यकार श्री धीरेंद्र सिंह के साथ-साथ परिवार के अन्य सभी सदस्यों का आभार व्यक्त किया है।

 पुस्तक की पहली कहानी ही पुस्तक का शीर्षक बनी है, जो मुझे सटीक लगी क्योंकि पुस्तक की अधिकतर कहानियाँ संभ्रान्त और रईस घरानों की स्त्रियों के साथ बीतने वाली और छुपाए जाने वाली निंदनीय और घृणित कृत्यों को उजागर करती हैं। एकाध कहानी में औरत की जिद त्रिया हठ का अनूठा नतीजा है। नए जमाने की सोच को भी सुंदर तरीके से उजागर किया गया है।

 शीर्षक कथा ऊँचे अटरियों की सिसकियाँ में पुस्तक की आधारभूत समस्या को बहुत ही बारीकी से विस्तार दिया गया है। कैसे, किन मजबूरियों में महलों की नारियों को पुरुष सत्ता की बुराईयों को झेलना पड़ता है, किन कारणों से कभी-कभार इन उच्च कहलाने वाले समाज की नारियों को भी कोठे की शोभा बननी पड़ती है – इन परिवेशों का मार्मिक चित्रण करती ये कहानी संपन्न कहाने वाले इस समाज की कुरपीतियाँ, अश्लीलता और अंधकार को उजाले में लाकर, उजागर करने की सफल कोशिश है।

 कहानी सिस्टर रोमिल्ला में समाज में एक नारी के साथ सवर्ण के अत्याचार की कथा है। पंचायत ने भी सवर्ण का ही साथ दिया। पुरुष के सर पर बला आने पर उसी सवर्ण को इस संवेदनशील महिला हृदय ने माफ किया और उनकी बेटी को पिता की सेवा सुश्रुषा के लिए भेज दिया। खुद मरीजों की तीमारदारी में अपना दिन बिताना ही खुद की नियति बना लिया।

 कहानी अबोध कुल्टा एक ऐसी नारी की कहानी है जो परिवार की आवश्यकतावश किसी रिश्तेदार की सेवा में गई। किंतु वह वहाँ के पुरुष की नजर चढ़ गई। पुरुष ने अपने परिवार की मान मर्यादा को तो ताक पर रखा ही, साथ में बेचारी नारी की मर्यादा को भी नहीं बख्शा। पंचायत के निर्णय से बेचारी को अत्याचारी की ही पत्नी बनना पड़ा पर उस अत्याचारी को साहस नहीं था कि घर ले जाए क्योंकि घर पर पूरा परिवार और उसकी ब्याहता थी। घर के बड़ों ने तो पुरुष को घर निकाला दे दिया। किंतु उपेक्षित नारी के साथ न्याय करने की किसी को नहीं सूझी।

 कहानी वो पगली समाज की एक विक्षिप्त नारी की गाथा है जिस पर किसी को दया तो नहीं आई किंतु समाज के भेड़ियों ने उसकी मजबूरियों का फायदा उठाकर एक नन्हा सा बालक उसकी गोद कर दिया।

 कहानी उपेक्षा बनी जीवन की उजास में  बहुत ही सुंदर तरीके से बालमन की कुतूहलता और चंचलता को उबारा गया है। बताया गया है कि किस तरह समाज की उपेक्षा और अवहेलना को ढ़ाल बनाकर, उसे ही एक सार्थक जिद की तरह अपनाकर, उसे ही चुनौती समझकर उसने समाज को कैसे ललकारा। उसी के सहारे उस पायदान को भी हासिल किया जिससे समाज को अपना मुँह बंद करना पड़ा और अपना रवैया बदलना पड़ा।

 कहानी कनिया जी में त्रिया हठ का अनूठा उदाहरण है। दर्शाया गया है कि यदि औरत ठान ले तो कुछ भी यानि कुछ भी कर सकती है। उसकी सदाशयता और सहनशीलता बहुत बड़े हद तक उसे रोके रखती है। किंतु हदें पार करने पर वह किसी भी प्रत्याशित-अप्रत्याशित घटना को बखूबी अंजाम दे सकती है।

 कहानी चकाचौंध का सूनापन में समाज के चमक-दमक से परे समाज के ऊंचे तबके के लोगों के व्यक्तिगत जीवन के तनाव व परेशानियों को बहुत ही सुंदर ढंग से उभारा गया है। समाज के परोक्ष रहने वाली इन विषयों को प्रत्यक्ष जाहिर किया गया है। परेशानियों की चरमावस्था में व्यक्ति कैसे अनचाहे निर्णय भी ले लेता है, इसका भी चित्रण है। मालदारों की गरीबों के प्रति तुच्छ और हीनता की  छिपी हुई भावना का सजीव चित्रण यहाँ दिखता है।

 कहानी बरसात की वो रात में बरसात से बचने के लिए रात्रि के पड़ाव में रुके पुराने दोस्त के कर्ज से मुक्ति के लिए उसे मौत के घाट उतारने का घिनौना षड्यंत्र रचने वाली मानसिकता को भी चित्रित किया गया है। यह तो नारी की ही सूझ-बूझ थी जो हालातों से उसे बचा ले गई।

 कहानी फेरुआ एक गरीब की कृतज्ञता का मजमून है। दुत्कारती अम्मा की भी उसने गैंग के लट्ठबाजों की मार से रक्षा की, वो भी अपनी जान जोखिम में डालकर। अततः उसने प्राण गँवा ही लिया।

 कहानी अवसाद की नब्बे रातें में पवित्र प्यार के घिनौने रूप को दर्शाया गया है। पुरुष के ऐय्याशी और नारी भोग की मानसिकता को किया गया है। बहुत सुंदर बुनी गई इस कहानी में शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट नहीं हो पाई है।  कहानी में सीख तो है कि प्रेमपाश में लड़कियों को परिवार से संबंध नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि प्रेमी इसका गलत उपयोग कर सकता है। फिर वह बिना सहारे की लड़की को प्रताड़ित करने में हिचकता नहीं है। उसे अनचाही स्वतंत्रता मिल जाती है। परिवार से जुड़े रहने पर लड़की के सहारे का भय लड़के को हमेशा बंधनों में रखता है।

 अंतिम कहानी समर्पण में पुरुष मन की वाचालता , नारी मन का प्यार के प्रति निष्कलंकित एवं निर्बंधित समर्पण को उजागर किया गया है। नारी के आत्मसम्मान को बहुत ही सुंदर भावनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

 पुस्तक की भाषा में उत्कृष्ता है। शब्द चयन उत्तम है । कहीं-कहीं ग्रामीण और देशज शब्दों का भी साहित्यिक भाषा के बीच प्रयोग हुआ है जो कहानी के वातावरण को और भी जीवंत बना देती है। इससे लेखिका की अमित शब्द संपदा का ज्ञान होता है। पुस्तक की ज्यादातर कहानियाँ महलों और कोठियों के अँधेरे कोने में दुबकी, छुपी या छुपाई गई कालिख को उजाले में लाने का अथक प्रयास करती नजर आती हैं। उच्च कहे जाने वाले समाज की उपेक्षित, प्रताड़ित और ठुकराई गई नारी की मुसीबतों का भरपूर विस्तार है इन संवेदना भरी कहानियों में । पुस्तक की कहानियाँ यह चिल्ला-चिल्ला कर कहना चाहती हैं कि महलों की चकाचौंध में सब कुछ खुशनुमा नहीं होता। उनकी भी अपनी समस्याएँ होती हैं किंतु समाज में साख को बनाए रखने की आड़ में इन्हें अंधेरे कोनों में दुबकाकर-छुपाकर रख दिया जाता है। प्रिंट का फाँट और आकार भी ठीक-ठाक ही है।

 पुरुष प्रधान समाज के समय की ये कहानियाँ संपन्न समाज में पुरुष वर्ग का नारी के साथ व्यवहार, नारी को भोग की वस्तु समझने की मानसिकता पर सीधा प्रहार करती हैं। पुस्तक पूरी तरह इसी ध्येय को समर्पित है। कहानियों की एकरूपता कभी-कभी ऐसा आभास देती है कि लेखिका समाज के पूरे पुरुष वर्ग के ही व्यवहार और मानसिकता पर उँगली उठा रही हैं।

 पुस्तक में कहीं-कहीं वर्तनी की कमियाँ नजर आईं। विरामचिह्न और संधि-समास में हाइफन की भी कमियाँ दिखीं। अक्सर अनुस्वार छूट सा गया है। भाषा की उत्कृष्टता को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि यह कमियाँ मूलतः प्रूफ रीडिंग की कमियाँ हैं, भाषा की नहीं।

 कुल मिला कर बिम्मी जी का यह कहानी संग्रह बहुत अच्छा बन पड़ा है और यह मात्र पठनीय ही नहीं रहा बल्कि संग्रहणीय बन गया है।

मेरी बिम्मी जी से गुजारिश होगी कि वे पुस्तक का एक बार फिर प्रूफ रीडिंग करवा लें एवं नए संस्करण में उन्हें सुधारकर प्रकाशित करें।

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