मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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बुधवार, 7 अप्रैल 2021

समीक्षा - काव्य प्रभा

 

समीक्षा - काव्य प्रभा

द्वारा – एम आर अयंगर

पिछले दिनों प्राची डिजिटल पब्लिकेशन , मेरठ से प्रकाशित साझा काव्य संकलन काव्य प्रभा प्राप्त हुई। पुस्तक श्रीमती सुधा सिंह व्याघ्र द्वारा संपादित है। संपादकीय में सुश्री सुधा सिंह लिखती हैं कि कविता के रंगों ने हर व्यक्ति को कभी न कभी छुआ ही होगा। वे मानती हैं कि इस पुस्तक की रचनाएँ मित्र की भाँति पाठकों को गुदगुदाएँगीऔर मन मस्तिष्क को झकझोरती प्रतीत होंगी।

कुल मिलाकर 5.5” X 8.5” की इस पुस्तक में 172 पृष्ठ हैं। आवरण पृष्ठ काफी आकर्षक है । इस पर पुस्तक और संपादिका का नाम अंकित है और पृष्ठ आवरण पर रचनाकारों के चित्र हैं। पुस्तक पर मूल्य मात्र रु. 230 अंकित है। ISBN नंबर 978-93-87856-27-1 है।

पुस्तक में 23 रचनाकार  संकलित हैं। प्रत्येक रचनाकार को 7 पृष्ठ दिए गए हैं जिनमें से एक में उनका परिचय और बाकी पृष्ठों पर रचनाएँ हैं। पुस्तक में विरह के भाव, नारी गौरव काव्य, प्रण-प्रतीक काव्य, वीर रस की कविता, प्रणय-प्रेम की रचनाओं के साथ-साथ सम-सामयिक घटनाओं पर भी रचनाएँ संकलित हैं। रचनाकारो की रचनाएँ और उन पर मेरे विचार निम्नानुसार है।

1. पुस्तक संपादिका सुश्री सुधा सिंह व्याघ्र की रचनाओं से शुरु होती है –

 "तेरे आँगन की गौरैया मैं...कवयित्री ने परिवार में बेटी की जीवनी को चित्रित किया है.

  2. श्री देवेंद्र देव की गजल नहीं की का एक सुंदर और असरदार शेर -

 मेरे दोस्त भले ही कम हों, लेकिन दुश्मन एक नहीं है

हरदम दोस्त बनाए हैं मैंने कभी किसी से डाह नहीं की।

        गजल गगरी भरने आओ न  में देव जी लिखते हैं – 

सूखे जीवन को हरियाली से तर करने आओ ना,

पनघट सूना है पनिहारिन गगरी भरने आओ ना।

व्यथा हमारी समझो हमको इतना भी तड़पाओ ना,

पनघट सूना है पनिहारिन गगरी भरने आओ ना।

         राह देखूँ मैं तुम्हारीकवि लिखते हैं –

राह देखूँ मैं तुम्हारी दिल मेरा तुझमें रमा,

चाहता कितना तुम्हें हूँ, मैं क्या बताऊँ प्रियतमा।

मैं रहूं शागिर्द जैसा तुम बनो जो रहनुमा,

चाहता  कितना तुम्हें हूँ, मैं क्या बताऊँ प्रियतमा।

3.       सुश्री अभिलाषा चौहान  मैं की तलाश में  मैंका अद्भुत चित्रण प्रस्तुत करती हैं –

तलाश स्व की अंतहीन स्वयं में, मैं को खोजते,

कब सरक जाती है जिंदगी हाथ से..।

सिर्फ मैं अहंकार का जनक

यह, मैं जो कभी नहीं बन सकता,

किसी का, स्वयं का भी।

कविता कल आज और कल में उन्होंने समाज का बचपन पर प्रहार और अंजाम को बखूबी चित्रित किया है। सुरमई साँझ प्रणय की रोचक कविता है। आओ बैठो पास प्रिये प्रिय का साथ माँगती सुंदर कविता है।

जीवन संध्या के इस क्षण में, आओ बैठो पास प्रिये

हर पल को अब जी भर जीना, सुन लो हिय की बात प्रिये।

शब्द संपदा की धनी श्रीमती अभिलाषा चौहान की कविता में प्रवाह झलकता है।

4.       सुश्री मीना शर्मा जी ने अपनी कविता अपने अपने दर्दमें मन भावों चित्रण करती हुई कहती हैं –

 अपने अपने दर्द सभी को खुद ही सहने पड़ते हैं,

दर्द छुपाने मनगढ़ंत कुछ किस्से कहने पड़ते हैं।

खामोंशी के परदे में जब जख्म छुपाने पड़ते हैं,

तब ही मन बहलाने को, ये गीत बनाने पड़ते हैं।

इस कविता में सुश्री मीना जी ने दर्द के प्रबंधन का अनोखा तरीका सुझाया है। कविता मंजिल नहीं यह बावरे !” में  कवयित्री ने जीवनयात्रा को चित्रित किया है। मीरा बावरी कविता में कान्हा के प्रेम में खोई मीरा का वर्णन है। तल्खियाँ गजल बहुत सुंदर है, इसमें वे कहती हैं –

डूबना था कागजों की कश्तियों को एक दिन,

वक्त से पहले किसी ने, क्यों डुबाई दोस्तों।

अपनी सांसो का गला, घोंटा किए हर एक पल,

दिल लगाने की सजा, इस तरह पाई दोस्तों।

        स्वप्नगीत कविता में वे कहती हैं-

छा जाता है बादलों की तरह उदास नयनों पर !

फिर पता ही नहीं चलता, नयन बरस रहे हैं या बादल।

भीगा मन सिहरता है, गीत हँस देता है, झाँक कर मेरी आँखों में।

        सुश्री मीना जी की कविता में उनकी शब्द संपदा झलकती है । कविता में सरसता और गेयता की उपलब्धि इसे और संपन्न बनाती है।

 5.       श्री राजीव कुमार झा की कविता छलकती नदियाँ में इंसनों द्वारा नदियों के प्रति दुर्व्यवहार की कथा है।  कविता वतन की तरफ देख में कवि ने देश के प्रति कर्तव्य को याद दिलाने की कोशिश की है।

हिंदू की तरफ देख न मुस्लिम की तरफ देख

भारत का बन सपूत तू वतन की तरफ देख।

काबा की तरफ देख न काशी की तरफ देख

जब तक दम मे दम है तू वतन की तरफ देख।

जीने का सलीका कविता में कवि ने बताया है कि हारना और असफलताएँ भी बहुत कुछ सिखा जाती हैं।

6. श्री अभिषेक कुमार अभ्यागत ने अपनी कविता शहर में रात में शहरों में रात की चहलकदमी के बारे में बताया है।

 7.       श्री अनुरोध कुमार श्रीवास्तव कविता जिंदगी बड़ी होनी चाहिए  में कहते हैं कि –

लेकिन युगों तक अमर वही है जिसने खींच दी

समय के शिला पर लकीर

जिंदगी लंबी हो या न हो

लेकिन जिंदगी बड़ी होनी चाहिए।

कविता लगा लॉकडाउन था में जनता की परेशानियों का वर्णन है। कविता आँखें में  आँखों की विभिन्न परिभाषाएँ हैं । धान रोपती बेटियाँ में बेटियों के जीवन का मार्मिक चित्रण है।

मायके की नर्सरी में उगाई जाती

और ससुराल की खेत में रोप दी जाती

बेटियाँ, मैंने देखी धान रोपती बेटियाँ।

8.       सुश्री पल्लवी गोयल ने अपनी कविता पंजाब में पंजाब राज्य व वहां के नागरिकों की शान के बारे में बताया है।

बैसाखी में फसल काट, श्रम गिद्धा पाते हैं,

रेवड़ी, फुल्ले, दाने ले , लोहड़ी में गाते हैं।

औरत कविता में नारी के विभिन्न रूपों और गुणों की चर्चा है।

सम्मान करने वालों को प्रणाम करना न भूलना,

पहचान हरने वालों पर प्रहार करना न चूकना।

9.       मों. मंजूर आलम जी ने श्रद्धांजलि ! सुशांतसिंह राजपूत  कविता में कवि ने स्व. सुशांत राजपूत को श्रद्धांजली दी है।

10.   श्री कुंदन कुमार ने अपनी कविता बापू ! तुम दुख न करो में कवि ने देश की वर्तमान परिस्थितियों में बापू से कहना चाहा है कि कि वे हालातों से परेशान न हो । खासकर बापू  की प्रतिष्ठा पर हो रहे प्रहार के बारे में व्यंग है यह कविता। मॉँ मुझे माफ कर दो में माता को मुश्किलों से न निकाल पाने के लिए माफीनामा है। नींव कविता में कवि कुंदन कुमार कहते हैं कि नींव से जो टूटा उसका अंत निश्चित है।

पर पृथक हुआ जो नींव से हो उसका गलना तो तय ही है।

जिसका कोई उपयोग नहीं निश्चय उसका ढलना ही है ।।

अनभिज्ञ राह में नहीं परख जो भीड़ के संग बस चलता हो

उद्देश्य नहीं जिसका हो कोई उसका झड़ना तो तय ही है।।

11.   मोहतरमा शहाना परवीन ने कविता ईश्वर भी सोचता होगा में  कल्पना किया है कि ईश्वर अपनी भूल के लिए पश्चाताप कर रहा होगा –

ईश्वर कभी सोचता होगा ये मैंने कैसे इंसान बना दिए ?

अपने हाथों से बेटियों को लूटने वाले दरिंदे बना दिए।

एक राखी सैनिक के नाम कविता में सैनिकों के नाम राखी का संदेश है। कविता आस्था में माता-पिता के प्रति आस्था प्रकट की गई है। पूनम के चाँद कविता में पूनम का मनोहर वर्णन है।

12.   श्री आनंद सिंह शेखावत ने अपनी कविताओँ में अपनी युवावस्था का जिक्र किया है। कालेज की बातें और प्रणय प्रसंग का भी वर्णन है 

13.   सुश्री बसंती सामंत रिक्तता में टूटे हुए दिल के भावों का अच्छा चित्रण किया है । वह बात में कवयित्री का पूरा आत्मविश्वास झलकता है।

लोग कहने से डरते हैं जो मैं वह बात लिखती हूँ

काले अक्षर ही नहीं मैं जज्बात लिखती हूँ।

दिल में दबी ख्वाहिशों को मैं  बेबाक लिखती हूँ

हुए जो गुरूर से लाख कभी मैं  उन्हें खाक लिखती हूँ,

मानव तेरे चेहरे का हर अंदाज लिखती हूँ।

है अगर अंधेरी रात तो मैं उसे अमावस का चाँद लिखती हूँ।

समाज की व्यवस्था और मेरा सवाल ?” कविताओँ में कवयित्री ने सामाज में नारी के लिए की गई व्यवस्था पर प्रश्न और प्रहार करती हैं। कुछ बनना है तो कविता में कुछ बनने के लिए महापुरुषों और महान व्यक्तित्वों द्वारा चुकाई गई कीमत और त्याग का जिक्र करते हुए जताया है कि महान बनने की भी कीमत चुकानी पड़ती है।

14.   मोहतरमा अनुजा बेगम की कविता यथार्थ समाज की व्यवस्था पर करारा व्यंग है। पढ़ लो” आत्मावलोकन के लिए बहुत अच्छी सलाह है।

जीवन की कड़वाहट कहीं बिकती नहीं है..

सोच के बाजार में वह मुफ्त मिलती है।

पथ में कंकड़ मिले तो उसे ठुकराना नहीं है ..

तुम उसकी कठोरता को पढ़ो जिससे तुम्हें लड़ना है।

15.   श्री सुखविंदर सिंह मनसीरत जी ने अपनी कविता संवाद होना चाहिए में हर परिस्थिति में समस्या के समाधान के लिए संवाद करने के लिए बड़े ही सुंदर तरीके से प्रेरित किया है।

कोई भी हो मुद्दा, कोई भी हो बात,

न वाद, न विवाद, बस संवाद होना चाहिए।

कविता आत्महत्या में कवि ने बहुत ही सुंदर बात कही है -

कुंठित, विषाद, निराशा, एकांत, नादानी है।

आत्महत्या अपरिपक्वता की निशानी है।

16.   श्री देवेंद्र नारायण तिवारी ने अन्नदाता किसानकविता में किसान की जीवनी पर प्रकाश डाला है। कलम की आँच में कवि ने अपनी कलम के लिए विशेष आँच की कामना की है।                            

ध्वनि मंद पड़ सकती नहीं, आँख किसी के दिखाने से,

   चाहे कटार हो कंठ पर भय किंचित नहीं इस जमाने में।

   हम चुभेंगे वक्ष पर ,तीखे लगेंगे आपको,

   पर सत्य विचित हो नहीं सकता किसी के डराने से।

   निम्नतम निकृष्टतम गुण धर्म जिनके भ्रष्टतम

   कर्म कलुषित मनुज को हर शब्द मेरा श्राप दे।

   जब लिखे मेरी कलम तो आग बनकर आँच दे।।

 17.   श्री कृष्ण कुमान द्ववेदी ने अपनी कविता ऐ जिंदगी तू बड़ी अजीब है  में लिखते हैं-

 ऐ जिंदगी तू बड़ी अजीब है, दुख तेरा वस्त्र है।

मौत तेरी मंजिल , आँसू तेरा अस्त्र है।।

 18.   सुश्री रेणु सक्सेनारेणुका श्री जी ने बड़ी ही कुशलता से दो सान्निध्य वाले परिवारों के बिछोह की दुखद घटना का विवरण अपनी कविता कड़वाहट में कह दिया है।

 19.   सुश्री ऋतु असूजा ने अपनी कविता श्रम ही कर्म  में श्रमिक की जिंदगी और उसके तकलीफों पर प्रकाश डाला है । कविता आत्मनिर्भरता में ऋतु जी ने आत्मनिर्भरता के गुण और लाभ बताया है।

 जब लहराती है विजय पताका बनकर अनंत आकाश में,

तब सार्थक होता है कर्मठता का श्रम।

घने फलदार वृक्ष की शीतल छाँव फलित होती है

कल्पवृक्ष बनकर ।।

 विता बेटियाँ में बेटियों की विभिन्न परिभाषाएँ दी गई है। जीने के बहाने में प्रकृति का जीवंत चित्रण है।

 20.   श्री शिवम मिश्रा ने हाँ मैंने प्रकृति को ढ़लते देखा है में मानव की अमानवीय कर्मों से प्रकृति की ह्रास का अनुपम वर्णन प्रस्तुत किया है।

 मैंने आँसुओं को बहते देखा है,

प्यासों को सड़क पर चलते देखा है।

मानवता को घुट घुट कर मरते देखा है,

लोगों को सिर्फ हिंदू-मुसलमां करते देखा है।

हाँ, मैंने प्रकृति को ढलते देखा है।

 मेरा गाँव कविता में कवि शिवम जी ने गाँव का लुभावना दृश्य प्रस्तुत किया है।

 21.   सुश्री (डॉ) मीनू पूनिया जी ने अपनी कविताओँ में आधुनिक जीवन शैली पर करारा व्यंग किया है। जन्मदायी माँ में उन्होंने माता की महिमा का सजीव चित्रण किया है।

 22.   श्री प्रफुल्ल कुमार पाण्डेय की कविता मोहब्बत में तरह-तरह की मोहब्बत के अंजाम का विवरण है।

 हर पल होंठों  पर नाम आए तो इबादत बन जाती है,

सर मेहबूब के सजदे में झुके तो खुदा बन जाती है।    

 क्या हुआ कविता में जीवन की रुकावटों को पार पाने के अलग-अलग रास्ते  सुझाए हैं। यह पॉजिटिव सोच का एक  अच्छा उदाहरण है। कविता मन एक टूटे दिल की व्यथा है।

 23.   श्री दिनेश सिंह नेगी जी ने कविता खाकी वर्दी में एक पुलिस कर्मी की कर्मठता और तकलीफों का जिक्र किया है।

 साहब मेरी भी सुन लो जरा विनती

करते हैं मेरे भी घर-परिवार इंतजार।

बस कुछ दिन की छुट्टी दे दो साहब,

जाना है मुझे भी अपनों से मिलने।।

 दहेज उत्पीड़न में कवि ने बहुओं को थामने का संदेश दिया है।

 मत ठुकराओ घर की लक्ष्मी को खुशी-खुशी आए

झेलेगी कब तक बहू शोषण बहुओ को दो सही पोषण।

जैसे संपादिका सुश्री सुधा सिंह व्याघ्र ने अपने संपादकीय में कहा है कि इस पुस्तक में जीवन का हर रंग समाहित है- वैसे ही पुस्तक वाकई रंगीन है। पुस्तक विविधता से भरपूर है ।

पुस्तक में मुझे प्रूफ रीडिंग की कमी महसूस हुई। विराम चिन्हों और व्याकरणिक गलतियों और वर्तनी पर भी कुछ और ध्यान देने की जरूरत महसूस हुई है।

संपादन के पहले प्रयास में 23 रचनाकारों की, प्रति रचनाकार की 6 कविताएँ और परिचय का संपादन कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए सुश्री सुधा जी सही मायने में बधाई की पात्र हैं। भविष्य की उनके ऐसे प्रयासों के लिए मैं उन्हें शुभकामनाएँ देता हूँ। सम्मिलित रचनाकारों की कलम नित-दिन ताकतवर होती जाए और वे लेखन के शीर्ष तक पहुंचें, ऐसी शुभकामनाओं के साथ, मैं विराम लेता हूँ।

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