राष्ट्र
गान का आदर
हाल ही
में एक खबर पढ़ने को मिली – सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने न्याय
पर पुनर्विचार कर सरकार को निर्णय लेने को कहा है कि राष्ट्रगान को सिनेमा हाल में
बजाने के बारे कोई ठोस निर्णय ले.
इस बारे
में पहले आए न्याय के समय मैंने अपनी राय दी थी . जब अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी
कह दिया तो सरकार उन मुदेदों के साथ इन पर भी विचार कर ले.
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बेंगलूरु
में एक सिनेमा हॉल में चार लोगों को अन्य दर्शकों ने हॉल के बाहर खदेड़ दिया
क्योंकि वे चारों राष्ट्र - गान बजने के समय खड़े नहीं हुए. बात तो साफ है कि
राष्ट्र - गान का हर भारतीय को आदर करना चाहिए. उसका आदर न करना देश से प्रेम न
दर्शाने के समतुल्य है.
बाद
में तहकीकात पर बताया गया कि उनमें से एक व्यक्ति के घुटनों में तकलीफ थी. माना कि
उनकी बात में सचाई है फिर भी वह व्यक्ति तो सिनेमा हॉल के भीतर तक तो बैठे - बैठे
नहीं आया होगा. बाकी तीनों के पास क्या जवाब था ? इसके बारे में कहीं कोई
चर्चा नहीं है.
राष्ट्रीय
गान केवल 52 सेकंड का होता है, एक मिनट से भी कम का.
जो व्यक्ति पार्किंग से सिनेमा हॉल की सीट तक चल कर आ सकता है वह एक मिनट से भी कम
के राष्ट्रीय गान के लिए खड़ा नहीं हो सका, अजब बात है. चलो
हालातों के दायरे में यदि उसे बख्शा भी गया तो बाकी तीनों क्यों नहीं खड़े हुए? यह एक भारी भरकम सवाल है.
मुझे
याद आ रहा है कि पहले भी कम से कम एक बार तो यह मुद्दा उठा था. तब भी सिनेमा हॉल
में ही राष्ट्रीय गान के निरादर की बात थी. उन दिनों सिनेमा के अंत में राष्ट्रीय
गान बजाया जाता था. बाहर निकलने की भागमभाग वाली भीड़ में परेशानी तो थी ही. जवान
छोकरे उस भीड़ में युवतियों के साथ बदतमीजी भी करते थे. इस भीड़ की तकलीफ से बचने
के लिए, खास कर जो लोग इसे दूसरी या ज्यादा
बार देख रहे हों, सिनेमा खत्म होते ही या कुछ लोग सिनेमा
खत्म होने के पहले ही उठ कर चलने लगते थे कि भीड़ में फंसने से बच जाएं और उसी समय
में राष्ट्र गान बजने लगता था. लोग भीड़ से बचने के लिए सीधे गेट की तरफ चले जाते
थे. जब कुछ सहृदयों ने इस पर सवाल उठाया तो सिनेमा हॉल में राष्ट्र गान बजाना बंद
कर दिया गया. न जाने कब फिर यह शुरु हो गया और फिर वही हालात उभरने लगे. बस फर्क
इतना है कि पहले राष्ट्र गान सिनेमा के बाद बजता था, अब पहले
बज रहा है.
राष्ट्र
गान चाहे कभी भी बजे, भारतीयों को और भारत में रह रहे विदेशी या पर्यटकों को, खड़े होकर उसका आदर करना ही चाहिए. आजकल तो स्कूलों में भी सुबह सुबह
राष्ट्र गान गाया जाता है. हर गली मोहल्ले में स्कूल खुल गए हैं. रिहाईशी इलाकों
में भी लोग घरों में स्कूल खोल चुके हैं. इससे घर के हर कोने में राष्ट्र गान
सुनाई देता है. यह एक मुसीबत की जड़ सी हो गई है. घर में आदमी कहीं भी हो उसे खड़ा
तो होना चाहिए, किंतु घरों में ऐसे कोने भी होते हैं जहाँ
बैठा हुआ आदमी खड़ा हो नहीं सकता. उसकी मजबूरी दोनों तरफ हो जाती है.
यह
राष्ट्र गान की बेइज्जती नहीं बल्कि गलत तरीके सा राष्ट्र गान बजाने के दायरे में
आना चाहिए.
अधिकारियों
को चाहिए कि इस तरफ भी ध्यान दें और राष्ट्रगान को गलत तरीके से बजाने पर कुछ
पाबंदियों का प्रावधान किया जाना चाहिए. वैसे सिनेमा हॉल में भी लोग मौज – मस्ती की मानसिकता से आते हैं. इसलिए मेरी राय होगी कि सिनेमा हॉल में
राष्ट्रगान बजाने पर पाबंदी लगा दी जाए. लेकिन जब तक यह पाबंदी नहीं होती और
राष्ट्रगान बजाया जाता है तो हरेक भारतीय को और यहाँ पर
रह रहे या आए विदेशियों और पर्यटकों को हमारे राष्ट्रगान का आदर करना चाहिए. हमारे
देश में तो राष्ट्रगान पर भी विवाद खड़े किए गए हैं लेकिन आज तक तो यह राष्ट्रगान
है.
आज कल
तो लोगों में फेशन सा चल पड़ा है कि कोई भी गाना, भजन,
वैदिक श्लोक, यहाँ तक कि गायत्री मंत्र व महा
मृत्युंजय मंत्र को भी चौपहिया वाहनों के रिवर्सिंग हॉर्न सा लगा लेते हैं. जय
जगदीश हरे का भजन रिवर्सिंग हॉर्न के रूप में कितना गंदा लगता है. भगवान ना करे कि
कोई इसी लय में कभी राष्ट्रगान का भी प्रयोग करे. यदि अधिकारी इस पर ध्यान न दें तो
ऐसी गंभीर समस्या भी सामने आ सकती है.
मेरा
विनम्र निवेदन होगा कि सरकार इस विषय पर गंभीरता से सोचे विचारे और राष्ट्रगान के
अनादर व दुरुपयोग पर आवश्यक पाबंदी लगाए.
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