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बुधवार, 14 सितंबर 2022

राजभाषा के लिए कुछ करें

 

राजभाषा के लिए कुछ करें


अब हम आजादी के 75 वर्ष और अमृत महोत्सव / वज्रोत्सव मना रहे हैं । 14 सितंबर 1949 को हमने हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाया। संविधान के साथ ही राजभाषा भी पदासीन हुई। आजादी के अमृत महोत्सव या वज्रोत्सव में हिंदी के लिए कोई विशेष कार्यक्रम होता नहीं दिख रहा है। कहने को फेसबुक और वाट्सएप पर हिंदी में पोस्ट तो आते हैं किंतु हिंदी की बेहतरी के लिए पोस्ट नहीं आते।

भाषा संबंधी पोस्ट में भी ज्यादातर ऐसे होते हैं जिसमें हिंदी  की अंग्रेजी से तुलना होती है। कहा जाता है  हिंदी में चरण शब्द के पर्यायवाची आठ नौ हैं पर अंग्रेजी में मात्र लेग या फुट (Leg or Foot) हैं। हिंदी में चाचा, काका, ताऊ, मौसा, मामा, छोटे पापा, बड़े पापा के लिए अंग्रेजी में ही शब्द अंकल है और वैसे ही चाची, ताई, मौसी, मामी के  लिए आँटी। इसलिए अंग्रेजी से हिंदी सशक्त है। बेहतर भाषा है। इनको यह समझ नहीं आता कि अनेक पर्यायवाची होने की वजह से हिंदी के विद्यार्थी को अधिक शब्दों की जानकारी और उनके लिंग, वचन व प्रयोग की जानकारी रखनी पड़ती है। इस कारण यही विशेषता उनके लिए भाषा को जटिल बनाती है। अंग्रेजी में इतने पर्यायवाची न होने के कारण वे एक ही शब्द की जानकारी से काम चला लेते हैं। यह भाषा को सरल बनाती है। मैं यह नहीं कहना चाह रहा कि अंग्रेजी हिंदी से बेहतर है पर इसे भी मानने को तैयार नहीं हूँ कि हिंदी अंग्रेजी से बेहतर है।

मेरी सोच में भाषाओँ की तुलना गलत है। मैं इसे बेईमानी ही नहीं बेवकूफी भी कहना पसंद करूँगा। जरा सोचिए की यदि आपसे कहे – मेरी  माँ तुम्हारी माँ से अच्छी हैतो आपको कैसा लगेगा ? आप इसे मान लेंगे ? नहीं ना!  मेरी माँ आपकी माँ से सुंदर हो सकती है, ज्यादा पढ़ी लिखी हो सकती है ज्यादा हृष्ट-पुष्ट हो सकती है, पर अच्छी नहीं कही जा सकती, क्यों कि अच्छी में इनके अलावा भी अन्य कई बातें सम्मिलित हो जाती  हैं। उनका रिश्तेदारों , परिजनों , अड़ोसी-पड़ोसियों से व्यवहार और भी बहुत सी बातें समा जाती हैं। वैसे ही किसी भी भाषा के व्यक्ति को उसकी भाषा से दूसरे की भाषा को मानना स्वीकार्य नहीं होगा। इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि भाषा की तुलना बेईमानी ही नहीं बेवकूफी भी है।

अब देखिए हिंदी निदेशालय जो राजभाषा का स्वरूप निर्धारित करती है उसने मानकीकरण व सरलीकरण के तहत निर्णय लिया कि अनुस्वार की जगह वर्ग के पंचम अक्षर का प्रयोग हो सकता है। यह हो सकता है - वाक्याँश साफ कहता है कि जरूरी नहीं हैं। लेकिन हिंदी के चहेते तो क्वोरा  (quora) पर भी लिख रहे हैं कि हिंदी वर्तनी सही है और हिन्दी गलत। ऐसे ही, और भी मानकीकरण के प्रयास हैं जो हिंदी के साहित्यिक स्वरूप को बिगाड़ती हैं, पर भाषा को सरल बनाती हैं । लेकिन वह हिंदी साहित्य को नहीं बदलतीं । जो हिन्दी वर्तनी को गलत ठहरा रहे हैं, उन्हें यह समझने की जरूरत है कि हिंदी निदेशालय राजभाषा का स्वरूप निर्धारित करती है, साहित्य का नहीं। कुछ तो सरलता के लिए और कुछ तो टाईपराइटरों में सुविधा के लिए बदलाव मान लिए गए हैं। साहित्य में आज भी हिन्दी ही सही वर्तनी है। इस पर गौर कीजिए, निदेशालय भी तो हिंदी को सरलीकृत करने की ओर बढ़ रही है। अब यह तो कहा ही जा सकता है कि अंग्रेजी तो कुछ हद तक सरलीकृत है ही। इस लिए अंग्रेजी को हिंदी से कमतर कहना असहनीय व अशोभनीय है।

हमारे हिंदी के चहेते जो हिंदी को देश के माथे की बिंदी कहते फिरते हैं , जो हिंदी को विश्व भाषा के रूप में देखना चाहते हैं – वे इन दिनों अंग्रेजी को हिंदी से नीचा दिखाने में लगे हैं। उन्हें चाहिए कि वे हिंदी के उत्थान के लिए कुछ करें। हिंदी में कंप्यूटर के प्रोग्राम लिखें गूगल जैसा की पोर्टल बनाएँ, ताकि कंप्यूटर अंग्रेजी के बिना केवल हिंदी के बल-बूते पर चल सके।

बुरा तो लगता है पर हमारी एक जुटता और क्षमता इतनी ही है कि हम इन 70 - 72 वर्षों में हिंदी को सही ढंग से राजभाषा भी नहीं बना सके। राष्ट्रभाषा की क्या कहें। आज हिंदी भाषाई राज्यों में भी सरकारी  कामकाज पूरी तरह से हिंदी में नहीं होता है, फिर दक्षिणी राज्यों की क्या कहें। ऐसी तुलना से भाषाओं में आपसी वैमनस्य ही होगा । किसी की भलाई नहीं होने वाली। हर माँ की तरह हमें हर भाषा का सम्मान करना होगा।

यह एक जटिल मुद्दा है। इस पर गंभीर चिंतन मनन की जरूरत है। किसी को नीचा दिखा कर उसका अपमान कर सकते हैं, पर हम ऊँचे नहीं उठ सकते।


41 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी बात से पूर्ण रूप से सहमत। हिन्दी और अंग्रेजी दो भिन्न भाषाएँ हैं और उनकी तुलना ठीक नहीं है। मुझे नहीं लगता कि कोई समझदार व्यक्ति ऐसा करेगा। इसके बजाय हिन्दी को ज्ञान विज्ञान भाषा बनाने की जरूरत है। जब तक ये नहीं होगा तब तक दूसरी भाषाओं पर निर्भरता रहेगी। वैसे ये उच्चता का बोध खाली भाषा ही नहीं वरन् संस्कृति में भी कई बार देखने को मिल जाता है।

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  2. विकास नैनवाल 'अंजान' जी,

    आपकी सहमति ने मेरा मनोबल बढाया है।
    सादर धन्यवाद।
    भाषाओं की तुलना सही नहीं है ,
    इसे आपने सही माना, अच्छा लगा।
    आपने पधारकर अपनी राय भी दिया,
    उसके लिए विशेष आभार आपका
    आते रहिए खुशी होगी।
    सादर,
    अयंगर

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.9.22 को चर्चा मंच पर चर्चा मंच - 4552 में दिया जाएगा
    धन्यवाद
    दिलबाग

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    उत्तर
    1. धन्यवाद विर्क जी।
      आपने लेख चयन हेतु उचित समझा।
      आभार आपका।
      अयंगर

      हटाएं
  4. आदरनीय अयंगर जी,आपने बहुत ही सही लिखा।दूसरी भाषाओं को नीचा दिखाने की कोशिश में हमारी अपनी भाषा का कोई भला कभी नहीं हो सकता।यूँ तो भावों के संप्रेषण में भाषा में शुद्धि-अशुद्धि का कोई विशेष महत्व नहीं पर लिखित रूप में हम भाषा का इतिहास संजो रहे हैं तो समय का संस्कार भी।यही चीजेँ भावी पीढ़ी मानक रूप में ग्रहण करेगी सो यहीं ये सावधानी बरतनी चाहिए कि जो लिखा जा रहा है वो विशुद्ध रूप में लिखा जाना चाहिए।हिन्दी और हिंदी दोनों मान्य हैं फिर भी इस पर अक्सर विवाद देखने में आते रहते हैं।इन सब से अलग रहकर हमें भावी पीढ़ी के भीतर भाषा के ज्ञान का संस्कार रोपने के लिए प्रयास करने होंगे तभी हिन्दी के लिए दिवस मनाने की परंपरा की सार्थकता है।हिन्दी दिवस की बधाई के साथ हार्दिक आभार इस सुन्दर लेख के लिए 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रेणु जी, सादर धन्यवाद.
      बहुत खुशी हुई कि आपने लेख की गूढता को समझा और स्वीकारा।
      आपके संयुक्त परिवार की व्यस्तताओं में से समय चुराकर ब्लॉग पर पधारने में आपकी रुचि को साधुवाद, प्रणाम।
      आपकी टिप्पणी लिखने की काबिलियत औरसंयम को सलाम।
      लेकर ग राजभाषा के स्वरूप को ही हिन्दी साहित्य का स्वरूप समझने लगे हैं। इस वहम को दूर करना होगा।
      आभार
      अयंगर

      हटाएं
  5. आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
    उचित कहा आपने।प्रत्येक भाषा का अपना अलग महत्व है।एक का मान बढ़ाने के लिए दूसरे की निंदा मात्र अहंकार का ही परिणाम है।
    बेहतर होता लोग अन्य भाषाओं की निंदा के स्थान पर हिन्दी के उत्थान के लिए कर्म करने में अपनी ऊर्जा खर्च करते।पर इतनी सेवा,इतनी मेहनत आज कहाँ लोगों के लिए संभव है।वॉटस्‌एप वगेरह पर पोस्ट आदि लगाकर एकदिन पल भर के लिए हिन्दी को याद कर लिया बस हो गया हिन्दी दिवस।
    हिन्दी दिवस तो साहित्य जगत में बैठे कुछ व्यापारी मना रहे हैं।
    ...और कुछ लोग हिन्दी को ही छल रहे हैं।

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    उत्तर
    1. आँचल जी,
      आपका समझना और स्वीकारना ही मेरे इस लेख के सही होने या कहें सही प्रसतुतीकरण का प्रमाण है।
      इस वाट्सएप में इतनी क्षमता होते हुए भी लोग इसका ज्यादातर दुरुपयोग कर रहे हैं, यह अफसोस की बात है। इसी मंच से हिन्दी के उत्थान का कार्यक्रम भी संभव है।
      आज भी अनुष्ठानों एवं संस्थानों में हिन्दी हिन्दी दिवस के कार्यक्रमों तक सिमटी हुई है। सरकार भी औपचारिकता में फँसी पड़ी है। ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे है।

      लेख पर आपकी सहमति मनोबल बढाती है।
      आभार।
      अयंगर

      हटाएं
  6. आपने सटीक तथ्य रखें हैं आदरणीय।
    किसी भाषा की तुलना किसी भाषा से नहीं हो सकती , सब की अपनी एक समृद्ध भाषा है।
    बस अफ़सोस है कि हमारी वृहद सभ्यता में हमारी स्वयं की कोई एक समृद्ध भाषा नहीं है, आंग्ल बुरी है ये तो नहीं कह रही पर ये पूछती हूं कि क्या हमारी है?? हमारे पास अनेक भाषाएं हैं पर सब से अधिक प्रयोग हिन्दी भाषा का ही होता है।
    जिसे आज तक हम सही मायने में राजभाषा भी नहीं बना पाए।
    ये भी सही है कि बैठ कर दूसरों को कोसने से अच्छा है कि हम अपनी भाषा के उत्थान के लिए कुछ करें।
    अंग्रेजी हमारे लिए महत्वपूर्ण हो सकती है पर हमने उसे आवश्यकता बना लिया है।
    काश की 1949में जब हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया उसी समय से प्रबुद्ध साहित्य कार सरकार पर कुछ दबाव बनाकर हिन्दी भाषा की उन्नति के लिए कुछ कर पाते।
    अब भी कुछ किया जा सकता है पर जिस तरफ हम बढ़ चुके उससे लौटना मुश्किल ही है।
    बस हिन्दी उत्थान में कुछ कर पाएं यही कामना रहती है।
    हमारी भाषा हमारा स्वाभिमान बने।🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मन की वीणा (श्रीमती कुसुम कोठारी जी), आपकी टिप्पणी में पहला वाक्य ही सहमति और स्वीकृति का है। यही खुशी दे गया। मैं आपके इस वक्तव्य सेसहमत नहीं हूँ कि हमारी कोई समृद्ध भाषा नहीं है। भारत में कम से कम उर्दू, बंगाली, तमिल, तेलुगु और मराठी तो मुझे पता है कि समृद्ध हैं। अब.बात यहाँ ठहर जाती है कि हम स्वीकार कर पदासीन करने के 70-72 वर्षों में भी हिन्दी को सही मायनों में राजभाषा का दर्जा नहीं दे सके। पर क्यों? मेरी सोच कहती है कि इसके कार्यन्वयन की रीति में खोट है। एक दो बार के प्रयोग से साफ है कि पूरे भारत में एक साथ हिन्दी नहीं लाई जा सकती क्यों कि कुछ दक्षिण राज्यों से अनापेक्षित विरोध है। फिर भी हम बार-बार वही कोशिश करते हैं क्योँ? हम पहले हिन्दी भाषी राज्यों में इसे पूरी तरह क्यों नहीं अपनाते। उसके बाद ख क्षेत्रों में अपनाना आसान हो जाएगा। यदि यह दोनों कदम सही सलामत उठ गए तो दक्षिण भारतीय अपने आप अलग-थलग पड़ जाएँगे। और उनमें आपसी फूट आ जाएगी। इसके बाद एक-एक करके जुडेंगे। समय लगेगा पर होगा। तमिलनाडु ज्यादा वक्त लेगा पर हालात उसे झुकने पर मजबूर करेंगे। पर कोई इस तरफ ध्यान दे तब ना।
      आपकी विचारोत्तेजक टिप्पणी के लिए आपका विशेष आभार।

      हटाएं
    2. अयंगर जी , कुसुम बहन और आपके इस विशेष विमर्श से बहुत कुछ जाना जो जरूरी है | सार यही है ,कि पहले इरादों में दृढ़ता जरूरी है | कठोर संकल्पों के बिना हिन्दी का भला होने वाला नहीं | सच्चाई ये है कि हम कथित हिन्दी प्रेमियों के ही बच्चे हिन्दी में बहुत पीछे हैं | सभी के बच्चे अंग्रेजी माध्यम से शिक्षित हैं | | समय की माँग के चलते ,उसमें भी कोई बुराई नहीं अगर हम अंग्रेजी के साथ अपनी भावी पीढ़ी में हिन्दी प्रेम और ज्ञान का संस्कार रोपें | आज ब्लॉग पर आँचल पांडे , अनंता सिन्हा , मनीषा गोस्वामी जैसे युवा हस्ताक्षर देख कर अच्छा लगता है और कहीं भीतर सुकून मिलता है कि भाषा को सुदृढ़ता से थामने युवाओं के मजबूत हाथ मौजूद हैं |इसमें इनके परिवार और माता-पिता का योगदान अत्यंत सराहनीय है, जो हरेक परिवार के लिए अनुकरणीय है | और रही अखंड भारत में हिन्दी भाषा को अनिवार्य करने की बात , बहुत जरूरी है ये कदम उठाना |धीरे-धीरे सबकुछ अच्छा होने की उम्मीद जरुरी है | आखिर उम्मीद पर संसार टिका है | कथित अहिन्दी भाषी राज्यों का हिन्दी के लिए उपेक्षापूर्ण रवैया बहुत निराशाजनक है | पर ऐसा बिलकुल नहीं है कि वहाँ सभी लोग हिन्दी विरोधी हैं | दक्षिण भारत ने बहुत से हिन्दी साहित्य - साधकों को दिया है जिनमें से एक साधक आप भी हैं जो हिन्दी के सर्वांगींण विकास की ध्वजा उठाये प्रयासरत हैं |हिन्दी के लिए एक सार्थक विमर्श की शुरुआत करने के लिए अत्यंत आभार आपका |







      हटाएं
    3. अयंगर जी , कुसुम बहन और आपके इस विशेष विमर्श से बहुत कुछ जाना जो जरूरी है | सार यही है ,कि पहले इरादों में दृढ़ता जरूरी है | कठोर संकल्पों के बिना हिन्दी का भला होने वाला नहीं | सच्चाई ये है कि हम कथित हिन्दी प्रेमियों के ही बच्चे हिन्दी में बहुत पीछे हैं | सभी के बच्चे अंग्रेजी माध्यम से शिक्षित हैं | | समय की माँग के चलते ,उसमें भी कोई बुराई नहीं अगर हम अंग्रेजी के साथ अपनी भावी पीढ़ी में हिन्दी प्रेम और ज्ञान का संस्कार रोपें | आज ब्लॉग पर आँचल पांडे , अनंता सिन्हा , मनीषा गोस्वामी जैसे युवा हस्ताक्षर देख कर अच्छा लगता है और कहीं भीतर सुकून मिलता है कि भाषा को सुदृढ़ता से थामने युवाओं के मजबूत हाथ मौजूद हैं |इसमें इनके परिवार और माता-पिता का योगदान अत्यंत सराहनीय है, जो हरेक परिवार के लिए अनुकरणीय है | और रही अखंड भारत में हिन्दी भाषा को अनिवार्य करने की बात , बहुत जरूरी है ये कदम उठाना |धीरे-धीरे सबकुछ अच्छा होने की उम्मीद जरुरी है | आखिर उम्मीद पर संसार टिका है | कथित अहिन्दी भाषी राज्यों का हिन्दी के लिए उपेक्षापूर्ण रवैया बहुत निराशाजनक है | पर ऐसा बिलकुल नहीं है कि वहाँ सभी लोग हिन्दी विरोधी हैं | दक्षिण भारत ने बहुत से हिन्दी साहित्य - साधकों को दिया है जिनमें से एक साधक आप भी हैं जो हिन्दी के सर्वांगींण विकास की ध्वजा उठाये प्रयासरत हैं |हिन्दी के लिए एक सार्थक विमर्श की शुरुआत करने के लिए अत्यंत आभार आपका |







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  7. मेरे मेल केइनबॉक्ससे यहाँ कापी किया है।

    Anita आपकी पोस्ट "राजभाषा के लिए कुछ करें" पर एक नई टिप्पणी की गई है:

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    Anita ने 15 सित॰ 2022, 11:22 am को लक्ष्मीरंगम - Laxmirangam पर टिप्पणी की है

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    उत्तर
    1. आदरणीय अयंगर जी , कुछ टिप्पणियाँ आजकल स्वतः ही स्पैम में जा रही हैं | आप से निवेदन है कि अन्दर टिप्पणी वाला भाग जरुर देख लिया करें | जो टिप्पणी स्पैम ने जाती है उसे not spam करने से वह ब्लॉग पर प्रकाशित हो जाती है | वैसे मुझे लगता है आप ये जानते हैं | अगर ऐसा ही तो अनदेखा कर दें |

      हटाएं
    2. धन्यवाद रेणु जी। पर लगा नहीं कि टिप्पणी स्पेम में गई है। यदि ऐसा होता तो सूचना वाला मेल इनबॉक्स में नहीं रहता। मैनें चर्चा मंच पर टिप्पणी करने के बाद इनबॉक्स से कापी करके ब्लॉग पर डाला है।
      सूचना हेतु धन्यवाद।

      हटाएं
  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ सितंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  9. श्वेता जी,
    सादर धन्यवाद।
    बहुत समय बाद आपका कोई संदेश मिला। खुशी हुई कि मेरा लेख आपको अपनी पटल के लिए उपयुक्त लगा।
    आपने चयन किया,
    तद्हेतु आभार।
    अयंगर

    जवाब देंहटाएं
  10. सही कहा आपने आदरणीय , माॅ तो सभी की अच्छी ही होती है ....।
    बहुत ही सटीक तथ्य दिए है आपने ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुभा जी,
      आपकी सहमति पूर्ण टिप्पणी से मनोबल बढ़ता है.
      आपका सादर धन्यवाद और आभार

      हटाएं
  11. निश्चय ही एक भाषा की दूसरी भाषा से तुलना करना अनुचित है । अंग्रेज़ी का वर्चस्व तब तक बना रहेगा जब तक रोजगार के लिए अंग्रेज़ी का ज्ञान आवश्यक होगा । नकल करने में माहिर हम लोग इस बात की नकल नहीं कर पाए कि जापान , चीन जैसे देश सारे काम काज अपनी भाषा में करते हैं । हम लोग केवल विषयों की पुस्तकें हिंदी में न होने का रोना तो रोते हैं लेकिन पुस्तकें उपलब्ध कराने का प्रयास नहीं करते ।
    मानसिकता ऐसी है कि अंग्रेज़ी न आने पर गँवार ही समझ लिया जाता है ।
    सबसे पहले आवश्यकता है मानसिकता को बदलने की ।
    हिंदी और हिन्दी शब्द की शुद्धता के लिए विवाद वो करते हैं जिनको इस बात का ज्ञान नहीं कि अनुस्वार को वर्ग विशेष के पंचमाक्षर से बदला जा सकता है । जबकि ये छठी कक्षा में पढ़ाया जाता है ।
    आपके लेख के साथ यहाँ विषय पर विमर्श अच्छा लगा ।
    आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  12. आदरणीया संगीता स्वरूप जी,
    सादर धन्यवाद।

    आपके पहले दो वाक्यों से मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ। हिंदी और हिन्दी पर मुझे आपसे सहमति नहीं है। पंचमाक्षर नियम यह नहीं कहता कि हिन्दी गलत है। बस इतना कहता है कि आधा "न" (या किसी भी वर्ग के पंचमाक्षर को) अनुस्वार से बदला जा सकता है। यहाँ हिंदी या हिन्दी के गलत होने की बात ही नहीं है। हाँ हिन्दी को हिंदी लिख सकते हैं। यह दर्शाता है कि हिन्दी मूल रूप है। आज तो "हिन्दी" को गलत बताया जा रहा है और Quora पर तो इस पर बहस चल रही है।

    हाँ एक बात और पंचमाक्षर नियम केवल वर्गों के लिए है, वर्गेतर वर्णों का क्या होगा? हिमांशु को आप बिना अनुस्वार कैसे लिखेंगे, कारण सहित बताएँ, तो मेरा ज्ञानवर्धन होगा। मेरी जानकारी में हिंदी (राजभाषा) निदेशालय एक सरकारी संस्था है और वह राजभाषा का स्वरूप निर्धारित करती है। टाइपराइटर पर हिंदी टंकण की सुविधा के लिए मानकीकरण और सरलीकरण नियम बनाए गए थे। अब टापराइटर ही मिट गए तो उनके लिए बनाए गए नियमों की क्या जरूरत?

    यह बात सही होगी कि अब यह छठी कक्षा में पढ़ाया जाता है। पर क्या आपने अपनी हायर सेकंडरी या इंटर मीडिएट (उस समय जो भी रहा हो) में हिंदी राजभाषा है, यह पढ़ा था? हमें तो 1972 तक यही पढ़ाया गया कि हिंदी राष्ट्रभाषा है। जबकि हिंदी या कोई भाषा कभी भी भारत की राष्ट्रभाषा रही ही नहीं। इसी तरह आज भी यह नहीं बताया जाता कि हिंदी निदेशालय हिंदी के साहित्यिक स्वरूप को नहीं बदलती केवल राजभाषा के स्वरूप पर नियंत्रण करती है। साहित्य में जाएँ तो मेरी जानकारी के अनुसार वर्गाक्षरों पर अनुस्वार लगाना ही गलत है उने पंचमाक्षर संग ही लिखा जाना चाहिए। पञ्चाङ्ग सही वर्तनी है। इसे पंचांग भी लिखा जा सकता है सरलीकृत हिंदी में। आज भी राष्ट्रभाषा प्रचार समितियाँ मात्र हिंदी का प्रचार करती हैं। क्यों कि महात्मा गाँ धी जी ने इन्हें शुरु किया था, इन पर कोई टिप्पणी नहीं हो रही है। अब जब उन पर भी कीचड़ उछाला जा रहा है वो दिन दूर नहीं जब उन्हें भी राजभाषा प्रचार समिति कहा जाएगा।

    लेख पढ़कर आपने जो खुशी जाहिर किया उससे ऐसे लेख लिखने की हिम्मत बढ़ी है।
    आपकी भावेत्तेजक टिप्पणी ने मंथन करने का कुछ और अवसर दिया।
    सादर आभार
    अयंगर.

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत ही सुंदर कहा आपने सर, हृदय में डोलते विचार समय को देख विचलित होते हैं। कहीं न कहीं हृदय दुखता है अपने ही परिवार को उजड़ता देख। आम जनता क्या करे? दौड़ में पीछे न छूट जाए इसी लिए पेट काटकर बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा दिलाने की होड़-सी मच गई है। बहुत ही सुंदर गहन भाव लिए मन को छूते आपके विचार, समय निकालकर मेरे ब्लॉग पर पधारे और मुझे अनुगृहीत करे।
    सादर नमस्कार।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनीता सैनी जी,
      आपने सही कहा, कहीं तो दर्द होगा तब ही कराह निकलेगी। हालातों के चलते अंग्रेजी की अनदेखी नहीं की जा सकती सही है किंतु इस कारण हिन्दी को बलि का बकरा बनाना कितना उचित है यह भी विचारणीय है।
      लेख पर आपकी सहमति से बहुत आनंद आया।
      कृपया आभार और साधुवाद स्वीकारें।
      अयंगर

      हटाएं
  14. सार्थक एवं सशक्त आह्लान। चिन्तनीय, करणीय।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीया अमृता जी,
      क्षमा करें मुझे ऐसाआभास हो रहा है कि आप मेरे ब्लॉग पर पहली बार पधारी हैं। आपका हृदयपूर्वक स्वागत है।
      आपको लेख सही लगा पसंद आया और आपने इसकी सूचना देना भी उचित समझा।
      नमन और आभार।
      अयंगर।

      हटाएं
  15. आपकी बात बिलकुल सही है | हर भाषा की अपनी अलग विशेषताएं हैं , अपनी अलग मधुरतायें हैं | उनकी तुलना हम एक दूसरे से कैसे कर सकते हैं | आपका माँ वाला उदाहरण भी बिलकुल सटीक और यहाँ अत्यंत उपयुक्त बैठता है | हमें किसी की भी माँ को अच्छा या बुरा कहने का क्या अधिकार है | सब मिलाकर आपका यह लेख वास्तव में बहुत सराहनीय और गहनता से विचारणीय है |

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  16. आलोक सिंहा सर,
    सादर नमस्कार।
    लेख पर आपकी सहमति पूर्ण टिप्पणी मेरे प्रति आपके आशीर्वाद के समतुल्य है।
    आपका आभार सर।🙏

    जवाब देंहटाएं
  17. हिंदी के उत्थान के लिए कुछ करें। हिंदी में कंप्यूटर के प्रोग्राम लिखें गूगल जैसा की पोर्टल बनाएँ, ताकि कंप्यूटर अंग्रेजी के बिना केवल हिंदी के बल-बूते पर चल सके।
    सही कहा आपने...परन्तु यहाँ तो भाषाई तुलना और अनुस्वार जैसे मुद्दे उठाकर विवादों में फँसे रह जाते हैं सब।भाषा के उत्थान के विषय में कौन सोचे ।
    ज्ञान वर्धक विश्लेषणों के साथ विचारणीय लेख ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीया सुधा देवरानी जी,
      सर्वप्रथम आपके ब्लॉग ग पर आने व अपने विचार रखने का साधुवाद।
      सहमति हेतु धन्यवाद।
      अनुस्वार और भाषाई तुलना करने वाले हिन्दी के उत्थान में सहायक नहीं होते। उनकी वजहसे उन्नति की कोशिश रोकना सही नहीं है, अवाँछित है।
      इसलिए जो उत्थान की ओर बढ़ने में सक्षम है उनको चाहिए कि वे इसपथ पर निर्बाध अग्रसर होते रहें।
      आभार आपका
      अयंगर

      हटाएं
  18. Khubsurat aur sahi abhivyakti aur ghudhtam shabdavali

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    उत्तर
    1. बेनामी जी,
      सहमति एवं प्रशंसा के लिए धन्यवाद।

      हटाएं
  19. आपकी बात से पूर्ण रूप से सहमत।

    जवाब देंहटाएं
  20. Ati uttam. Vastav me chinta ka vishay hai.

    जवाब देंहटाएं
  21. सहयोग हेतु बहुत बहुत धन्यवाद। Many-many thanks for support.

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  22. Aapka ye lekh mujhe aapke pratyek lekh ki tarah bhaut pasand aaya. Aise hi hame aachhi jankari aur Vichar padhne ko milte rahe yahi kamna

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  23. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    द्वारा टिप्पणी: muhammad solehuddin
    let's be friend

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Thanks for your comment. I will soon read and respond. Kindly bear with me.