प्रगति ...??????
सुना कभी ना कोई मंथरा,
त्रेता युग के बाद,
कैकेई - मंथरा बन गए,
नारी के अपवाद
रंभा और उर्वशी अनेकों,
सभी मेनका बन बैठीं,
विश्वामित्र बना ना कोई,
पर देवदास सब बन बैठे,
दुर्योधन - दुःशासन मिलकर,
कई द्रौपदी बना रहे,
एक कृष्ण की कमी रह गई,
चीर हरण कब रुका करे.
सीताजी का अग्नि स्नान तो,
अक्सर होता रहता है,
क्यों जाने इंसान आज भी,
प्रगति हो रही.... कहता है.
एम. आर. अयंगर.