प्रगति ...??????
सुना कभी ना कोई मंथरा,
त्रेता युग के बाद,
कैकेई - मंथरा बन गए,
नारी के अपवाद
रंभा और उर्वशी अनेकों,
सभी मेनका बन बैठीं,
विश्वामित्र बना ना कोई,
पर देवदास सब बन बैठे,
दुर्योधन - दुःशासन मिलकर,
कई द्रौपदी बना रहे,
एक कृष्ण की कमी रह गई,
चीर हरण कब रुका करे.
सीताजी का अग्नि स्नान तो,
अक्सर होता रहता है,
क्यों जाने इंसान आज भी,
प्रगति हो रही.... कहता है.
एम. आर. अयंगर.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 03-10-2013 के चर्चा मंच पर है।
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें।
धन्यवाद ।
जनाब विर्क जी,
हटाएंआज का ( 3.10.13) का चर्चा मंच देखा.. अपनाी रचना सम्मिलित पाकर खुशी हुई. आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभारी.
अयंगर.
बहुत खूब भाईसाहब !मार्मिक सन्देश। प्रासंगिक आंच लिए है यह रचना।
जवाब देंहटाएंवीरेंद्र जी,
हटाएंधन्यवाद.
आपका स्वागत है.
अयंगर.
बहुत सुन्दर कहा आपने अयंगार जी ! यह भूल धरना है की हम सामाजिक प्रगति कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंनवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
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श्री कालीपद जी,
हटाएंसहमति के लिए धन्यवाद और प्रशंसा के लिए साधुवाद.
अयंगर