संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षापरिषद और वीटो.
अभी पूरे विश्व की नजर
उत्तरी कोरिया पर है. कब वह खुराफात करे और भयंकर अंजाम हो जाएं, यह कोई नहीं
जानता. खासकर उसकी नजर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका पर है और उधर अमेरिका की पैनी नजर
उत्तरी कोरिया पर.
इस उत्तरी कोरिया ने हाल
के, आई सी बी एम, परमाणु और हाइड्रोजन बम के परीक्षण से
खासकर अमेरिका और साधारणतः सारे विश्व में दहशत फैला दिया है.
अब बात आती है कि उत्तरी
कोरिया को यह क्या सूझी कि वह अमेरिका से भिड़ जाए.
ये अमेरिका ही नहीं बल्कि
सुरक्षा परिषद के जो पाँचों स्थिर सदस्य “वीटो पावर” (चाईना, फ्राँस, रशियन फेडेरेशन, युनाईटेड
किंगडम और युनाईटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका) हैं उन सबकी एक ही हालत है. सबका एकमत है
कि दुनियाँ में भले कुछ हो जाए कोई देश, ताकत हम तक न पहुँचे. इस मामले में ये
पाँचों एकजुट हैं भले ही अंदर दूसरे मतभेद होंगे. हो सकता है उनमें ऐसा कोई गोपनीय
करार भी हो. जब से सुरक्षा समिति बनी है ये सब एक मत हैं.
याद कीजिए जब भारत ने
पोखरण में परमाणु विस्फोट किया था. यही हाल था इन सबका. सारे विश्व को भड़काने में
लगे थे. पर खोदा पहाड़ निकली चुहिया , वह भी मरी हुई. उधर जब ईरान ने परमाणु
संयत्र लगाए और यूरेनियम जुटाना शुरु किया तो फिर अमेरिका को तकलीफ हुई.
ये सारे वीटो वाले देश
तो अपने पास भरमार परमाणु बम (अस्त्र) बना कर सँजो रखे हैं किंतु अन्यों को परमाणु
अस्त्र बनाने से रोकते हैं. यह दादागिरि नहीं तो क्या है. ये पहले अपने अस्त्र खत्म
क्यों नहीं करते ? ऐसा करने से विश्व के देशों
को विश्वास हो जाएगा कि ये वीटो देश सही में विश्व शाँति के हित में कार्य कर रहे
हैं. अन्यथा ऐसा लगने लगा है कि ये अपने को सर्वशक्तिमान कहाने के लिए ही ऐसा कर
रहे हैं.
यदि ऐसा है तो विद्रोह
निश्चित है. कल भारत ने किया , फिर ईरान ने, अब उत्तरी कोरिया कर रहा है. कल कोई
और करेगा. इन वीटो धारियों का यही रवैया रहा तो कोई सिरफिरा नेता किसी दिन जरूर
परमाणु अस्त्र का प्रयोग कर देगा जो तीसरा विश्वयुद्ध साबित होगा और उसके प्रणेता
ये वीटोधारी ही कहलाएंगे.
पता नहीं जापान और
जर्मनी इन वीटो पावर वाले देशों के रवैये पर चुप क्यों हैं. उनके पास भी पर्याप्त
शक्ति है. अमेरिका तो काफी हद तक पोलेंड और जापान से निर्यातित वस्तुओं पर निर्भर
है. क्या पता उनमें भी कोई आपसी संधि हुई हो.
पिछले किछ वर्षों से भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की कोशिश में लगा है. बात यहाँ तक आ गई कि सुरक्षा परिषद की सदस्यता तो दी जाएगी पर बिना वीटो के. अब इससे ही अंदाज लगा लीजिए कि ये वीटो वाले देश किस तरह से गुटबाजी पर उतर आए हैं. इनके लिए उत्तरी कोरिया के किम ही सही समाधान हैं.
अब समय आ गया है कि
संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में ही वीटो हटाने का कोई प्रस्ताव पारित हो और
इन सब वीटोधारियों को भी सामान्य देशों की फेहरिस्त में लाया जाए.
यदि अब भी अमेरिका अपने
आपको महाशक्ति मानकर दुनियाँ में गुंडागर्दी की ठेकेदारी करेगा तो किसी दिन वह
किसी सिरफिरे को भड़काकर तीसरे विश्वयुद्ध का कारक बनेगा और वह होगा दुनियाँ के
तबाही का कारण.
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