नन्हीं चिड़िया.
बहुत अरसे बाद देखा,
पिछले कुछ समय से बाग में
एक नई चिड़िया ,
चीं - चीं, चूँ - चूँ करती
फुदक रही है,
फुनगी से फुनगी.
पता नहीं कब आई,
कहाँ से आई,
कब से फिरती है बाग में,
उड़ते - उड़ते राह में यहाँ
रुक गई,
या बहक कर भटक कर
पहुँच गई यहाँ,
इतने दिनों से देखते -
देखते
महसूस कर रहा हूँ कि
उसे यहाँ रहना अच्छा लग रहा
है
उसे बाग रास आ रहा है,
भा रहा है,
पसंद आ रहा है,
शायद अब यहीं रहेगी ताउम्र
या
जब तक चमन आबाद रहे ।
कुछ समय से दूर से देख ही
रहा हूँ
आज देखा करीब से,
जब मेरे बिखेरे दाना चुगने
आई,
छोटी सी चोंच लिए,
चीं- चीं, चूँ - चूँ करती,
और पक्षियों के संग,
फुदकती, यहाँ से वहाँ
दाना चुगती हुई,
बिखरे हुए भी और
मेरे हाथ पर के भी।
वह निर्भीक है,
वह डरती नहीं है,
मुझसे भी,
बैठ जाती है.
कभी कंधे पर तो
कभी हथेली पर।
जब हथेली पर दाना चुगती है,
तो कभी - कभी उसकी
छोटी नुकीली चोंच चुभती है,
इस चुभन में दर्द कम
पर मिठास ज्यादा है,
एक अजब सा एहसास है,
पता नहीं क्यों?
ऐसा आभास होता है कि
कुछ बकाया है,
विधि के लिखे
मेरे खाते के कुछ क्षण
पता नहीं पिछले या
किसी और जनम के,
जो उनके हिसाब से
बच गए थे शायद,
उन्हें ही देने आई है
ये नन्हीं फुदकती चिड़िया,
चूँ - चूँ, चीं - चीं करती हुई
ये नन्हीं फुदकती चिड़िया,
एक नई चिड़िया ,
मेरे बाग में।
अयंगर.