प्रकाशन करवाइए
आपको अपनी पुस्तक प्रकाशित करवानी है।
आपकी यह पहली पुस्तक है जो प्रकाशित होने जा रही है।
आप पहले किसी प्रकाशक से प्रकाशित कर धोखा खा चुके हैं।
प्रकाशक ने आपको रॉयल्टी की राशि सही नहीं दी है?
आपने पुस्तक को हस्तलिपि में है , टाइप करवाकर प्रकाशित कराना है।
आपको प्रकाशकों के बारे में या प्रकाशन के बारे में कोई जानकारी नहीं है और आपको पुस्तक प्रकाशित करवाना है।
ऐसी सभी समस्याओं के लिए आपको यहाँ
सहायता मिल सकती है।
किसी भी पुस्तक के प्रकाशन के लिए निम्न बातें जरूरी होती हैं।
1. रचना (एँ) – यह रचनाकार की अपनी कृति होती है - रचनाकार को इसके मौलिक – द्वारा प्रकाशक को रचना के स्वरचित होने का प्रमाणपत्र देना पड़ता है।
2. रचना का साफ सुथरी स्पष्ट हस्तलिखित या स्पष्ट टाइप किया
हुआ प्रस्तुतीकरण – लेखक द्वारा रचना को टाइप करके प्रस्तुत करना होता है। वरना प्रकाशक
को हस्तलिपि को टाईप करना पड़ता है। इसका अलग से खर्च आता है। जिसमें प्रकाशक अपना
चार्ज बढ़ा देते हैं। जैसे रु.8000 में बिना टायपिंग के करेंगे तो रु.10000
या रु.12000 मांगते हैं, टायपिंग के साथ।
3.
मेरी राय में रचनाकार को खुद ही टाइप कर लेना चाहिए जिससे
एक बड़ा खर्च बच जाता है।
4.
फार्मेटिंग या भौतिक प्रस्तुति - प्रकाशक साधारणतः रचनाओं को A4 से पुस्तक के
आकार में फॉर्मेट कर लेते हैं। जिसमें प्रकाशक अपना चार्ज बढ़ा देते हैं।
5.
फोटो या टेबल की आवश्यकता और उसे सही जगह जोड़ना - पुस्तक
में फोटो और तालिकाएं रहने से खर्च बढ़ जाता है। प्रकाशक तालिका के अनुसार
अतिरिक्त खर्च बताते हैं। फोटो होने से प्रकाशन खर्च के साथ प्रिटिंग खर्च भी
बढ़ता है। पहली प्रकाशित पुस्तक में तालिकाओँ और चित्रों को नहीं रखना ही
सुविधाजनक होता है। यदि चित्र रंगीन हों तो खर्च बहुत बढ़ जाता है।
6.
तय करना कि किस तरह के पाठकों को यह प्रस्तुत की जाएगी - पाठकों
के वर्ग के अनुसार लेखक को अपनी भाषा निर्धारित करनी पड़ती है। साथ ही साथ पुस्तक
की कीमत भी पाठक वर्ग के अनुसार ही रखना होता है। पाठक वर्ग के अनुसार ही फाँट और
आकार तय करना पड़ता है।
7.
यदि पुस्तक छोटे बच्चों या बूढ़ों के लिए हो तो फाँट बड़ी होनी चाहिए ।बच्चों के
लिए पृष्ठ कम होने चाहिए।
8.
कीमत के मद्देनजर पुस्तक के पृष्ठ निर्धारित करन मे पड़ते
हैं - यदि पुस्तक 350 पृष्ठ की और रु.500
की होगी तो खरीददीर नहीं मिलेगा और यदि बीस पृष्ठ की और 25 रु की हो तो रचनाकार को
प्रकाशन का खर्च भी नहीं निकलेगा। इसलिए पृष्ठ और कीमत पर एक सामंजस्य रखना होता
है जिससे ग्राहक भी मिलें और लेखक को कम से कम लागत लगे और वह वापस मिले। मेरी राय में 100 – 150 पृष्ठ की पुस्तक सही
रहती है । इसकी औसत लागत रु.100 या रु150 के लगभग आती है और रु150 या रु200 का
मूल्य रखा जा सकता है। कीमत के अलावा ज्यादा पृष्ठों की पुस्तक को संभालना भी एक
अलग समस्या हो जाती है।
9.
प्रकाशन में लगने वाला उपयुक्त समय - कार्य निष्पादन का
प्रबंधन कि कौन सा काम किसे औऱ कब करना है। प्रकाशन के लिए आवश्यक समय इन सब बातों
पर ही तय किया जाता है। इसलिए प्रकाशन व लेखक जिम्मेदारियाँ सही तौर पर तय करनी पड़ती हैं। तय किए गए
अनुसार काम नहीं किए गए तो प्रकाशन में देरी हो सकती है। कार्य निष्पादकों में समन्वय
बैठाना एक प्रमुख मुद्दा बन जाता है।
10. प्रकाशन में आने वाला
खर्च - प्रकाशन में आने वाला खर्च भी इन्हीं सब बातों पर निर्भर करता है। पुस्तक का
आकार,पृष्ठ संख्या, चित्र, तालिकाएँ, टायपिंग करनी है कि नहीं, कितना समय दे रहे
हैं, किस तरह का कागज और जिल्द होगी। साधारणतः
70-80 ग्राम प्रति वर्गमीटर का अंदरूनी पृष्ठ सही रहता है और जिल्द के लिए 250
ग्रा. प्र. वर्ग मी. ।
11. कवर पृष्ठ के संरचना पर
निर्णय और पृष्ठ आवरण का निर्णय – रचना के अलावा पुस्तक में शीर्षक पृष्ठ, प्रकाशक
पृष्ठ, मेरी बात (दो शब्द, प्राक्कथन आदि ), समर्पण, पीछे के कवर पर क्या लिखना है
– यह सब तय करना पड़ता है। साधारणतः प्रकाशक इन सबको रचना के (के रूप में ही) साथ
ही मानते हैं। इसलिए पुस्तक देने के साथ ही प्रकाशक को यह सब भी देना पड़ता है।
12. कदम-कदम पर हर एक बार प्रूफ
रीडिंग और गलतियों का सुधार – प्रकाशक द्वारा रचना को A4 पृष्ठ से पुस्तक के पृष्ठ में परिवर्तन
के बाद, लेखक को ही देखना है कि पुस्तक में कोई त्रुटि तो नहीं आई, यदि आई हो तो
प्रकाशक को सूचित करवना है। इसे प्रूफ रीडिंग कहते हैं। मेरी राय में तो लेखक से
बेहतर प्रूफ रीड़िंग कोई और कर ही नहीं सकता – उसे ही करना भी चाहिए। इसलिए लेखक
को इसकी पूरी जानकारी होनी चाहिए।
13. प्रूफ रीडिंग का परिणाम
प्रकाशक तक पहुँचाना – (यदि एडिटिंग उसे करनी हो तो) - यह सूचना एक विशेष तालिका
में बनाकर दी जाती है। जिसमें अध्याय, पृष्ठ, पेराग्राफ, लाइन , गलत लिखा भाग और
सही क्या होना चाहिए – सब कुछ होना चाहिए। इसके अलावा किसी विशेष प्रकार का
सुधारहो तो उसे विशेष तरह से समझाना पड़ता है।
14. प्रकाशक से पुस्तक प्रकाशन
का करार की शर्तों को मूर्तरूप देना और करार करना।
15. करार में विशेष ध्यान देना कि रचनाकार से नाजायज
लाभ तो नहीं ले रहा है।
16. फ्री कापियों की संख्या का निर्धारण - साधारणतः
प्रकाशक केवल 5 कापियाँ लेखक को प्रकाशन खर्च के तहत देते हैं। ज्यादा कापियों की
जरूरत होने पर उसका अतिरिक्त खर्च आता है। इसका निर्धारण करने के लिए लागत की खबर जरूरी होती है जो प्रकाशक अक्सर
नहीं देते। प्रति पृष्ठ छपाई , कवर की छपाई,
बाइँडिंग और टेक्स (जी एस टी) एवं पृष्ठ संख्या तय करते हैं कि लागत प्रति
पुस्तिक कितनी आएगी । प्रकाशक लेखक को अतिरिक्त पुस्तकें लागत पर ही देता है। कुछ
प्रकाशक लेखक को 90%
MRP पर पुस्तक देने की बात करते हैं जिसमें कोई औचित्य नजर नहीं
आता। तालिका और चित्रों के होने पर उनकी छपाई का खर्चा अलग होता है जो सामान्य पृष्ठों
की छपाई से बहुत ज्यादा होता है।
17. रॉयल्टी का निर्धारण और उसे रचनाकार तक पहुँचाने
का जरिया - प्रकाशक रॉयल्टी का निर्धारण अक्सर प्रतिशत में करते हैं। जैसे 100
प्रतिशत रॉयल्टी देंगे। लेखक (खासकर नए)
अक्सर झाँसे में रह जाते हैं कि 100% मतलब पुस्तक का मूल्य यदि रु150 हो तो उसे
प्रति पुस्तक में रु.150 की रॉयल्टी मिलेगी। किंतु ऐसा नहीं होता। कीमत में से
लागत घटा ली जाती है। इसलिए सही रॉयल्टी की जानकारी के लिए लागत की जानकारी जरूरी हो जाती है। प्रकाशक के पटल
पर और अन्य पटलों पर बिक्री पर रॉयल्टी अगल-अलग होती है । इसलिए लेखक को पूरी विस्तृत जानकारी लेनी चाहिए।
खासकर अमेजान और फ्लिपकार्ट जैसे ऑनलाईन शॉपिंग पोर्टल बहुत ज्यादा कमीशन खा जाते
हैं और रॉयल्टी बहुत कम रह जाती है इस पर विचार करके ही इन पोर्टलें पर बिक्री के
लिए देना चाहिए।
18. प्रकाशक की जिम्मदारियाँ तय करना – ऊपर के इतने सारे विस्तार से लेखक को पूरी तरह पता चल गया होगा कि प्रकाशक को उसकी पूरी जिम्मेदारी के बारी में कितने विस्तार में बताना है।
19. संभवतः निम्न सारी सूचनाएँ करार का भाग होना
चाहिए।
a. रचना हस्तलिखित हो तो टायपिंग किसकी जिम्मेदारी होगी।
b.
संपादन और सुधार कौन करेगा।
c.
सुधारों की सुचना उसे किस तरह चाहिए।
d.
फ्री पुस्तकें रचनाकार
तक कितनी और कैसे पहुँचेंगी।
e. प्रकाशक को रचनाकार से कितनी रकम, कितने किश्तों में, कब और
कैसे चाहिए।
f. ग्राहक पुस्तक कैसे पा सकेंगे और ग्राहक पुस्तक के आवश्यकता
की सूचना प्रकाशक को किस तरह पहुँचा सकेंगे।
g.
प्रकाशक द्वारा भेजी गई पुस्तक ग्राहक तक ना पहुँचे, तो
उसका निपटारा कैसे होगा।
h.
ग्राहकों को पुस्तक भेजने और पाने की सूचना (ट्रेकिंग) कैसे
दी जाएगी।
i.
रचनाकार को खुद के लिए पुस्तक जरूरत हों, तो कैसे मिलेगी और
उसकी कीमत किस तरह निर्धारित होगी।
j.
रचनाकार को किसी भी समय किसी अन्य प्रकाशक से प्रकाशित करने
या प्रिंटर से प्रिंट करवाने की छूट होनी चाहिए।
k.
फाँट कौन सा होगा और उसका साइज क्या होगा ? इस पर ही पुस्तक
के पृष्ठों का निर्धारण होता है और उस पर लागत और फिर उस पर कीमत।
l.
इंटर वर्ड स्पेस, इंटर लाइन स्पेस, पेराग्राफ टॆब, पृष्ठ के मार्जिन -
कितना होगा यह निश्चय करना। इससे भी पृष्ठों की संख्या बदलती है।
m.
पुस्तक के प्रचार के लिए प्रकाशक कुछ करेगा या रचनाकार को
ही करना है।यदि प्रकाशक करेगा तो कैसे करेगा, उसका निर्णय। कितनी पुस्तकें बिकने
की गारंटी होगी। साधारणतः प्रकाशक मार्केटिंग की बात करते हैं पर कोई गारंटी नहीं
देते।
n.
प्रकाशक के पोर्टल से और अन्य पोर्टलों से पुस्तक ऑर्डर
करने के लिए प्रकाशक लेखक को लिंक देता है।
o.
प्रकाशक सूचित करे
कि पुस्तक पर डाक खर्चा कितना लिया जाएगा।
p.
प्रकाशक को चाहिए कि वह एक पेज बनाकर रखे जिसपर पासवर्ड और
यूजर नेम के द्वारा लेकक अपनी पुस्तकों की बिक्री और रॉयल्टी की सूचना जब चाहे देख
सके।
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आज बाजार में ऐसे प्रकाशक भी हैं
जो पुस्तक लेकर कुछ कापियाँ देने की बातकरपते हैं और कापीराइट खुद रख लेते हैं।
उसके बाद वो कितनी प्रतियाँ छापेगा या कैसे, कहाँ, कितनी कीमत पर बेचेगा - इस पर
लेखक का कोई वश नहीं होता।
ऐसे प्रकाशक भी हैं जो पुस्तकों के
बदले एकमुश्त पैसे देने की भी बात करते हैं।
ऐसे प्रकाशक लेखकों को खुश करने के
लिए पुस्तकों का सामूहिक विमोचन भी करवा देते हैं।
यहां ऐसे किसी प्रकाशक की कोई
चर्चा नहीं हो रही है। केवल असिस्टेड सेल्फ पब्लिशिंग और ऑर्डर टु प्रिंट वाले
प्रकाशकों की ही बात हो रही है।
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