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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

ऑनलाइन शिक्षा

ऑनलाइन शिक्षा

ऑनलाइन शिक्षा की बात करते ही सबसे पहले जरूरत महसूस होती है कम से कम एक अदद अच्छी मेमोरी वाले एँड्राइड फोन की और भरपूर डाटा वाली इंटरनेट सेवा की। यह कहना सामान्य बात है कि आजकल सबके पास स्मार्ट फोन है किंतु कितने विद्यार्थियों के पास यह सुविधा है इसकी जाँच करने पर पता चलेगा कि करीब 40 % छात्रों के पास इसकी उपलब्धि नहीं है।

ऑनलाइन में जूम पर पढ़ने के लिए जरूरी नेट का पैकेज भी कम लोगों के पास ही होता है। फलस्वरूप कई बच्चे ऑन लाइन शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। पता नहीं कितनी शिक्षिकाओँ के पास यह सुविधा और जरूरी जानकारी है। आप अपनी नजर हायर इकोनोमिक और मिडल इकोनोमिक जनता से हटाकर लोवर इकोनोमिक स्ट्राटा पर आएँ तो स्थिति भयावह नजर आएगी। आप आँकड़े देखिए कि कितने बच्चे शिक्षा ऑनलाइन हो जाने के कारण शिक्षा से वंचित (अलग) हो गए और परिवार की स्थिति की वजह से बाल-मजदूर में बदल गए । यह बात अलग और एक अलग समस्या है कि रूबरू कक्षाएँ शुरु होने पर इनमें से कितने वापस कक्षाओँ तक पहुँच पाएंगे ?

दूसरी समस्या यह है कि जिनके पास स्मार्ट फोन है उनमें से कितनों को जूम जैसे प्रोग्राम पर मीटिंग करना और उसमें सम्मिलित होने का ज्ञान है ? ज्यादातर लोगों को तो नहीं है। बहुत से अभिभावकों को ही ऑनलाइन मीटिंगों की जानकारी नहीं है। कुछ बच्चे तो फिर भी घर के बड़ों से या यू-ट्यूब से सीख सकते हैं किंतु बड़ी उम्र की शिक्षिकाओं को कौन सिखाए। ऐसी नौबत आएगी यह किसको पता था, जो यह सब सीख कर रखते ? घर पर कालेज में पढ़ते बच्चे हों तो कुछ राहत मिल सकती है। ना जानें कितनों के पास यह सुविधा है। शिक्षिकाओं को ऑनलाइन पढ़ाने के लिए तैयार होने में कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं यह जानने के लिए गाँव की किसी शिक्षिका से संपर्क करें।

इसके अलावा एक और समस्या है कि ऑनलाइन पर बच्चों में बाँटने के लिए नोट्स बनाना और समय पर उनको बच्चों में बाँटना। नोट्स बनाने के लिए टाइप करना , उसमें चित्र, रसायनिक समीकरण, ब्लॉक्स जैसे कुछ और भी डालना आना चाहिए। इनको ऑनलाइन वितरण करना भी आना चाहिए। जिन शिक्षकों को इसका ज्ञान है वो तो तर जाएँगे, पर जिन्हें न हो उनकी तो कमर टूट सी जाएगी। जो बच्चे जूम जैसे प्लेटफार्म से वाकिफ नहीं हैं, उनके तो क्लास भी गए और वे तो पढ़ाई से भी रह ही गए। कई जानकार शिक्षक वीडियो बनाकर भी वाट्सएप के द्वारा क्लास ग्रुप में भेज देते हैं ताकि गैरहाजिर बच्चे पढ़ाई की क्षतिपूर्ति कर सकें।

टीच फ्रम होम (ऑनलाइन टीचिंग) में स्कूल का काम भी घर से होता है। फलस्वरूप शिक्षिकाएँ स्कूल के समय में भी घर पर उपलब्ध हैं, भले स्कूल के काम में ही लगी हुई  हैं । लेकिन घर वाले - बच्चे जो खुद स्कूल बंद होने का कारण या बड़े जो वर्क फ्रम होम के कारण - घर पर हैं – उनको शिक्षिका की घर पर उपस्थिति साधारण ही समझ में आती है।  इसकी वजह से उनके वर्क (टीच) फ्रम होम के साथ वर्क फर होम  भी जुड़ जाता है। पहले घर में घर का और स्कूल में स्कूल का काम होता था, पर अब पूरे दिन घर और स्कूल दोनों जगहों का काम होते रहता है। अब शिक्षिका का वाटसएप नंबर भी सारे बच्चों के पास चला गया है, तो अब कुछ नासमझ बच्चे और अभिभावक जब मर्जी आए – समय-बेसमय शिक्षिकाओं को फोन करते रहते हैं।

रूबरू पढ़ाई के दिनों में भी पढ़ाने के लिए अगले दिन (दिनों) के लिए विषय के नोट्स बनाने पड़ते थे, पर वे खुद के लिए होते थे। इसे किसी भी तरह लिखा जा सकता था, क्योंकि खुद को ही पढ़ना है। किंतु ऑनलाइन पढ़ाई में बच्चों को नोट्स देने होंगे इसलिए उन्हें सुघड़ हस्ताक्षरों में लिखना होगा या फिर पूरा टाइप करना होगा। जो विषय पढ़ाना है उसको टाइप करना आना भी एक खास बात है। कोई भाषा पढ़ाते हैं तो कोई विज्ञान, रसायन शास्त्र,गणित या कोई भौतिक शास्त्र। इनको टाइप करना साधारण काम नहीं है। विज्ञान के चित्र और रसायन के समीकरण और अन्य भाषाएँ टाइप करना विशेष गुण है। यह सबसे नहीं हो सकता। इसी तरह के बहुत से काम ऑनलाइन शिक्षा में शिक्षिकाओं के साथ जुड़ जाते हैं, जो बाहर दिखाई नहीं देते। बाहर से टाइप कराया जा सकता है किंतु उसमें कुछ रकम जाया करनी पड़ती है। 

ऑनलाइन कक्षा में कितने बच्चे हाजिर रहे, इसका रिकॉर्ड रखना पड़ता है, जो आसान नहीं हैक्योंकि सारे बच्चों के पास नेट कनेक्टिविटी एक सी नहीं होती इसलिए वे  कक्षा के बीच-बीच में कक्षा से बाहर हो जाते हैं और थोड़ी देर में फिर से जॉइन होते हैं। लेक्चर को रोककर बार-बार उन्हें एंटर करना (अनुमतु देना) भी एक समस्या है। ना करें तो बाद में अभिभावक फोन करके सिर खाते हैं, परेशान करते हैं कि आपने बच्चे को कक्षा में क्यूँ नहीं लिया, मीटिंग लॉक क्यूँ कर दी, आदि-आदि। इस विषय में प्रबंधन भी अभिभावकों की तरफदारी करता है, उनको फीस जो चाहिए।

एक अनूठी समस्या यह है कि कक्षा में बच्चे यदि सुन-समझ नहीं पाएँ तो शिक्षिका से जितनी बार चाहें सुनने-समझने तक पूछ सकते थे, किंतु ऑनलाइन में यह सुविधा नहीं होती। क्योंकि वहाँ समय की पाबंदी होती है। इसलिए शिक्षिका को धीरे-धीरे दोहराते हुए पढ़ाना पड़ता है। इसके कारण पढ़ाई की गति कम होती जाती है। साथ ही विद्यार्थियों के संशय समाधान और प्रश्न पूछने के लिए कहीं तो समय होता ही नहीं या तो कहीं समयखंड (पीरियड) के अंत में समय दिया जाता है। तब तक तो कई विद्यार्थी सवाल भी भूल चुके होते हैं। इस तरह ऑनलाइन शिक्षा में पढ़ाई की गुणवत्ता भी घटती जाती है।

बच्चों की खातिर शिक्षिका इतना सब भी करने को तैयार हो जाती हैं। किंतु उन पर गाज तब गिरी जब निजी स्कूलों में उनकी तनख्वाह घटा दी गई। स्कूलों में वेतन घटाकर 70, 50, 30 प्रतिशत तक भी कर दी गई। एकाध स्कूल में किसी महीने तनख्वाह दी ही नहीं गई है। अब सोचिए काम ज्यादा, वेतन आधा किसको सुहाएगा। बाल-कल्याण समझकर काम करने पर भी, ऐसा व्यवहार किसे संतुष्ट रख सकेगा। यहाँ जाकर शिक्षिकाओं में असंतोष फैलने लगा। लेकिन वे भी किसी हद तक मजबूर थे । परिवार चलाना था। निजी नौकरी वाले पति / पत्नी एवं परिवार के अन्य सदस्यों की भी नौकरी जाती रही या फिर वेतन घट गया। भूखे तो नहीं  मर सकते हैं ना !!! इसीलिए स्कूल प्रबंधन के कहने पर कभी घर से तो कभी स्कूल से, कभी ऑनलाइन तो कभी रूबरू  पढ़ाया। 

सरकारी स्कूलों में न ही तनख्वाह घटी, न ही ऑन लाइन पढ़ाई हुई। बच्चों की भी छुट्टी और शिक्षिकाओं की भी। उनके तो मजे ही मजे हैं। पाँचों उंगली घी में और सर कढ़ाई में। सरकार ने तो कानून बनाए कि इस महामारी के दौरान किसी को नौकरी से न निकाला जाए न ही वेतन में किसी प्रकार की कटौती की जाए, किंतु यह कागजी कानून बनकर सड़ गया।

प्रबंधन ने तब हद ही कर दी, जब कहा कि शिक्षिका बच्चों के अभिभावकों से बात करे और उनको फीस जमा करने के लिए तैयार करे। यह काम मिनिस्टीरियल स्टाफ या एकाउंटिंग विभाग का होता है, पर शिक्षिकाओं पर लाद दिया जा रहा है। साथ में सफाई यह कि आप तो बच्चों के संपर्क में हो। तो क्या जिनका काम है वे बच्चों से संपर्क नहीं कर सकते?  या फिर किसी शिक्षिका की कक्षा के दौरान ही वे अभिभावकों से बात नहीं कर सकते ? पर नहीं - शिक्षिकाओं पर ही लादना है।

इन सब परेशानियों को झेलने के बाद शिक्षिका तब हिम्मत हार जाती है, जब जिनके लिए सारा ताम-झाम किया जा रहा है, वे विद्यार्थी ही खुद इसमें रुचि नहीं दिखाते। समय पर सम्मिलित होना, होम वर्क के साथ तैयार रहना, पढ़ाए जा रहे विषय को सीखने समझने की जिज्ञासा रखना – ये उनको बोझ लगते हैं। उनके लिए ऑनलाइन शिक्षा टाइमपास का एक उत्तम साधन है। उधर 90 % अभिभावक ऐसे हैं जो ऑनलाइन क्लास के दौरान अपने बच्चों पर नजर नहीं रखते । मोबाइल बच्चे के हाथ में है और कान में इयरफोन लगा हुआ है। बस उनकी जिम्मेदारी खत्म ।

बच्चा शिक्षिका का लेक्चर सुन रहा है या गाने  ? माता-पिता को पता ही नहीं चलता।

ऐसे भी बच्चे हैं जो अपनी उपस्थिति दर्ज करके लापता हो जाते हैं। कुछ, खासकर बड़ी कक्षाओं के उपद्रवी बच्चे तो अपने जूम मीटिंग का आई डी और पासवर्ड भी दूसरों को दे देते हैं। यह बाहरी लोग पढ़ाई में खलल करते हैं, इनको रोकना और इनकी पहचान करना, इसी में पढ़ाई का आधा समय निकल जाता है। कभी तो यह संभव भी नहीं हो पाता। ये कक्षा में लड़कियों को परेशान करते हैं , अनचाही टिप्पणियाँ करते हैं। कुछ तो शिक्षिकाओं के प्रति भी अपशब्द लिखते और कहते हैं - जो पूरी कक्षा देखती है। मुझे ऐसी घटनाओँ का प्रथमतया ज्ञान है किंतु मैं उसे यहाँ उद्धृत नहीं कर सकता। स्कूल प्रबंधन को सूचित करने पर भी प्रबंधन के कान में जूं नहीं रेंगती। इस तरह की समस्याएँ अनुभवहीन व्यक्ति तो सोच भी नहीं सकता।

शिक्षिकाओं से इतना सब करवाने के बाद सारे विद्यार्थियों को बिना परीक्षा के या नाम मात्र को ऑनलाइन परीक्षा कहकर अगली कक्षा में प्रवेश दे दिया जाता है। सोचिए , शिक्षिकाओं की मनोदशा का क्या होगा ? उनको किस हद तक निराश होना पड़ रहा है ? कई शिक्षिकाएँ इन हालातों के कारण मानसिक वेदना का अनुभव कर रहीं हैं। हो सकता है कि देश के किसी कोने में किसी ने आत्महत्या का प्रयत्न भी  किया होगा। अभी तक तो मुझे इसकी खबर नहीं है।

उधर शिक्षिकाओं का वह हाल है। इधर बच्चों की सोचें। सुबह उठकर, नहा-धोकर, नाश्ता कर, दूध – बोर्नविटा जैसे कुछ पीकर फटाफट बस स्टैंड की तरफ दौड़ने की उनकी आदत तो खत्म ही हो गई है। मतलब कि बच्चों में अनुशासन की कमी हो गई है। बे-समय सोएंगे, बे-समय उठेंगे। नाश्ते का कोई तय समय नहीं है। जब नींद खुले तब ही सवेरा। देर रात तक दोस्तों और अन्यों से फोन पर या चेट पर बात होती रहेगी। वीडियो या फिल्म देखते रहेंगे और सोते-सोते रात के  2-3 बज जाते हैं, तो सुबह उठा कैसे जाएगा ? ऐसे बे-समय और अनियमित हरकतों के कारण बदहजमी, मोटापा और आलस जैसी बीमारियाँ बिना बताए ही आ जाती हैं। अभिभावक भी सोचते हैं - चलो छुट्टियाँ तो हैं , ठीक है, चलने दो। किंतु उनके भेजे में भी यह सोच नहीं आती कि स्कूल खुलने पर वह अनुशासन लौटेगा कैसे ? क्या जब स्कूल खुलेगा,  तब ये आराम-तलब बच्चे कक्षाओं में पाँच छः घंटे बैठ पाएँगे ?

अब सोचिए उन शिक्षिकाओँ के बारे में जिनके घर में खुद के स्कूल जाने वाले बच्चे हैं। वह किधर जाए ? खुद के स्कूल का काम देखे ? पति, देवर, ननद, सास- ससुर, जेठानी के काम संभाले या फिर बच्चों में अनुशासन का प्रयत्न करे।

इन सबके बोझ में परिवार का रहन-सहन पटरी से कब उतर जाता है, पता ही नहीं चलता। भगवान ही जानता है। उनका तो परिवार ही बिखर जाता है। 

इससे साफ जाहिर है कि मजबूरी में हमने ऑनलाइन शिक्षा को अपनी तरह से अपना लिया है किंतु उसमें अभी समस्याएं ही समस्याएं हैं जिनका हल खोजने की प्रक्रिया तो अभी शुरू भी नहीं हुई है। उनके समाधानों के बाद शायद ऑनलाइन शिक्षा समाज के लिए वरदान साबित हो सकेगा । अभी तो मजबूरी और अभिशाप सा ही है।

ऑनलाइन शिक्षा के फायदे भी बहुत से हैं, परंतु हमारे देश में उनका पूरा लाभ उठाने के लिए आवश्यक तकनीक, तकनीकी सुविधा, पूर्ण प्रशिक्षित शिक्षक, सुशिक्षित माता-पिता, स्वअनुशासित बच्चे और उनके स्वअनुशासित माता-पिता - अभी ना के बराबर हैं। इन सबसे बढ़कर तो यह कि हम भारतीय इस प्रकार की पढ़ाई के आदी ही नहीं हैं। इससे सामंजस्य बिठाने में हमें अभी बहुत समय लगेगा।

लेख में हर जगह शिक्षिका का जिक्र है क्योंकि गाज उन पर ज्यादा गिरती है। इनमें  से काफी कुछ शिक्षकों से साथ भी होता है। गृहस्थी और परिवार की समस्याएं कामकाजी महिलाओं के साथ भी है। इसका इस लेख में जिक्र नहीं किया गया है क्योंकि यह लेख ऑनलाइन शिक्षा को ही समर्पित है।

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