मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

अनुवाद

अनुवाद

अनुवाद का शाब्दिक अर्थ किसी कही हुई बात को (उसी तरह) पुनः कहा जाना – को अनुवाद माना जा सकता है. उसी तरह - के बहुत मतलब निकाले जा सकते हैं. पहला हूबहू..कहना... यह नकल करना कहा जाता है. दूसरा तथ्य को रखते हुए उसे अन्य शब्दों में कहना.. इसे कुछ लोग टिप्पणी भी कहते हैं.. इसे विस्तारण भी कहा जा सकता है. शब्दानुवाद.. जिसमें केवल शब्दों के समानार्थी लगाकर कहा जाता है जिससे कि लोगों को बेहतर समझ आए. किंतु भावों को सँभाला न जाए तो अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है. इसके बाद है अर्थानुवाद – कथ्य के अर्थों को सँभालते हुए, उसे स्पष्ट करते हुए, अपने शब्दों में प्रस्तुत करना.. और अंत में आता है - भावानुवाद – जिसमें अनुवाद की हर विधा को रखते हुए भी कथ्य के भाव को सँजोया जाता है.

ऊपर के संवाद में कही भी भाषा का पुट नहीं आया. साधारणतः अनुवाद में भाषान्तर निहित होता है. सामान्यतः एक भाषा से दूसरी भाषा में तर्जुमा (परिमार्जन) को ही अनुवाद माना जाता है. बाकी सब टीका टिप्पणियाँ मानी जा सकती हैं. अब भाषा में परिवर्तन लाते हुए उपरोक्त विधाओं पर ध्यान दें तो अलग - अलग प्रसंग सामने आएँगे. ये ही अनुवाद के प्रकार हैं.

इन सब की चर्चा से समझ में आ ही जीना चाहिए कि अनुवाद कोई साधारण काम नहीं है. दो एक पत्रों का अनुवाद या किसी कथा विशेष का अनुवाद करना और बात है और किसी उपन्यास, कहानीकार का संकलन और काव्य खंड का अनुवाद और बात है. भाव की समझ व परख होने के कारण रचनाकार खुद ही अपनी रचना का सर्वोत्तम अनुवादक हो सकता है, बशर्ते उसे अनुवाद करने के लिए नई भाषा का ज्ञान हो. दोनों भाषाओं का ज्ञान होने पर वह खुद ही सर्वेत्तम व सफल अनुवादक साबित हो सकता है.

अनुवाद के लिए प्रथमतः मूल भाषा व नई भाषा (जिसमें अनुवाद करना है) दोनों में अच्छी पकड़ जरूरी है – जिससे अनुवाद के उपराँत भी कथ्य या वक्तव्य का गूढ़ार्थ बना रहे. उदाहरणतः -

“I am well”  का अनुवाद
मैं कुआँ हूँ”    ... सर्वथा अनुचित है...
यह जानने के लिए कि well  के दोनों अर्थों में कौन सा यहां पर चुनना है – अनुवादक को पता होना अनिवार्य है कि  --

1.     Well  अंग्रेजी शब्द के दो अर्थ हैं –
2.     जिनके दो हिंदी रूपांतर भी हैं.
3.     इनमें से किस अर्थ का प्रयोग करना है वह कथ्य के वातावरण पर निर्भर करेगा. इस लिए भाषा के वाक्याँशों की समझ जरूरी है.
4.     यहाँ तो हमने कह दिया कि मैं कुआँ हूँ अनुवाद सर्वथा अनुचित है किंतु यदि यही वाक्याँश कुएं की आत्मकथा में लिखा हो तो ???  
5.     मैं कुआँ हूँ” – लिखना ही उचित होगा.

इसी कारण अनुवादकों को दोनों भाषाओं में पकड़ चाहिए. जितनी महारत हासिल होगी, उतना ही सफल व श्रेष्ठ अनुवादक हो सकेगा.

यह तो बात हुई एक वाक्याँश का अनुवाद करने की. अब सोचिए एक कथानक, कथा या काव्य के अनुवाद की और उसमें जगह - जगह पर समान अर्थों व भावों की पकड़ रखने वाले शब्दों का समावेश के बारे में. समानान्त कविता में समानान्त वाले शब्द खोजने होंगे. इसलिए अनुवादक को उन दोनों भाषाओं में शब्द सामर्थ्य भी रखना जरूरी होगा.

भाव प्रधान लेख व कविताओं में शब्द सामर्थ्य की और ज्यादा जरूरत होती है  . वहाँ अन्य के अलावा भाव  का भी ध्यान रखना पड़ता है. कुल मिलाकर अनुवाद एक असाधारण कला है, जिसमें कई बंधनों में रहते हुए भी भाषांतरण करना होता है. शब्दों के हाव – भाव बने रहने चाहिए, कथ्य का अर्थ परिवर्तत नहीं होना चाहिए. समानान्त कविता हो तो वह भी सुचारू होनी चाहिए और इन सबके बावजूद पाठक वर्ग को ध्यान में रखकर भाषा के उन शब्दों का चयन जरूरी होता है कि उस वर्ग को समझ में आए.

इन्हीं कारणों से अनुवादक को साहित्य में एक विशेष स्थान दिया गया है. अनुवादक के सहारे ही पुस्तकों का भाषाँतरण होता है. एक भाषा के पाठक दूसरी भाषा के रचनाकारों की रचनाओं को पढ़ पाते हैं. हाँ अनुवादक की क्षमता स्वरूप रचनाकार के पुस्तक की गुणवत्ता बनती है और नए पाठक उसी अनुसार पुस्तक को आँकते हैं, विश्लेषण करते हैं. पुस्तक व मूल लेखक की साख अन्य भाषा के पाठकों में अनुवादक की वजह से ही बनती या बिगड़ती है. अनुवादक चाहे तो अपनी करतूतों से मूल लेखक की मिट्टी-पलीद कर सकता है.. हाँ उसे और अनुवाद का काम नहीं मिल पाने की संभावना बन तो जाती है.

इन सब कारणों के मद्देनजर कई विश्वविद्यालयों ने अनुवाद के पाठ्यक्रम शुरु किए हैं. जिसमें मूलतः अनुवाद किस तरह होना चाहिए,
उइसमें किस किस पर ध्यान देना आवश्यक होता है व वह कैसे किया जा सकता है - के बारे में सिखाया जाता है. विधा बताई जाती है किंतु उसमें विद्वत्ता तो खुद अनुवादक को ही प्राप्त करनी पड़ सकती है. जैसे हिंदी पुस्तक का अँग्रेजी में अनुवाद के लिए - हिंदी व अंग्रेजी में पकड़ की आवश्यकता है – यह तो अनुवाद के पाठ्यक्रम में बताया जा सकता है किंतु हिंदी - अंग्रेजी तो अनुवादक को ही सीखना होगा ना.

इसलिए - एक ही पाठ्यक्रम पूरा करने पर भी अलग अलग अनुवादक के अनुवाद अलग अलग ही होंगे. कोई जरूरी नहीं है कि सारे अनुवाद को जनता पसंद करे. कुछ अनुवाद बहुत ही प्रचलित होते हैं किंतु कुछ तो चल भी नहीं पाते. किंतु सत्य यह भी है कि बिना अनुवादक के भाषाँतर पुस्तकों को अन्येतर भाषा के पाठकों तक पहुँचाना भी संभव नहीं होगा. इसलिए अच्छे अनुवादक साहित्य व समाज की जरूरत हैं - मात्र अच्छे, अन्यथा साहित्य की गरिमा ही मिटती चली जाएगी. इसी कारण यदि भाषाओँ पर पकड़ है तो मूल रचनातकारों को ही प्रथमरीत्या अपनी पुस्तक – रचना का अनुवाद करना चाहिए जिससे रचना का भाव पूरी तरह बना रहता है, जो उसकी जान होती है. कहा भी यही जाता है कि मूल रचनाकार से अच्छा अनुवादक हो ही नहीं सकता यदि उसे दोनों भाषाओं की जानकारी है.

अनुवाद को विभिन्न तरह से बाँटा गया है. कुछ की मूल चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं. कुछ इस तरह हैं..-

1.     गद्यानुवाद
2.     पद्यानुवाद.

साधारणतः गद्य का अनुवाद गद्य में व पद्य का अनुवाद पद्य में किया जाता है. लेकिन कुछ ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिसमें पद्यों का अनुवाद गद्य में किया जाता है. यह पाठकों की सहायता के लिए भी किया जाता है. ज्यादातर संस्कृत के काव्यग्रंथो का हिंदी व अन्य भाषाओं में अनुवाद गद्य रूप में ही ज्यादा हुआ है अपेक्षाकृत काव्य में. इसका विलोम यानी गद्य का अनुवाद पद्य में करीब नहीं ही होता है. यह जटिल भी है. शायद निर्दिष्ट पाठकों की समझ के अनुसार ऐसा किया जाता है.

इसके अलावा तात्पर्य के अनुसार भी वर्गीकरण होता है...

1.     शब्दानुवाद –

औरंगजेब का अनुवाद जैसे किया गया – AndColourPocket.
ख्यातिनाम कवि श्री सुरेंद्र शर्मा कहते हैं – अंग्रेजी में अनुवाद करो—
एक कुँवारी लड़की नीचे खड़ी है और स्वयं जवाब बताते हैं – MisUnderStanding.

एक और वाकए में वे कहते हैँ , अंग्रजी में अनुवाद करो..
यह काम होगा नहीं.. यदि होगा तो होता रहेगा होता रहोगा होता रहेगा...
जवाब भी वे खुद देते हैं – 
This work will not be done… if done, done, done danadan, danadan.

इस तरह के अनुवाद व्यंग के लिए तो बहुत सुंदर हैं किंतु साहित्यिक दृष्टि से अनुचित लगते हैं.

2.     अर्थानुवाद -  

यह गंदा है. 
का अनुवाद अंग्रेजी में लिखा जा सकता है कि

This is dirty.
This is nasty.
This is clumsy.
This is untidy.  

शायद और भी कई शब्द होंगे.

3       भावानुवाद - अर्थ के अनुसार ऊपर के सभी अर्थ सही हो सकते हैं. किंतु कथ्य व कथानक के अनुसार कौन सा वाक्याँश उसके अनुरूप बैठता है यह तो देखने सोचने वाली बात है. जब तक पूरी कथ्य की जानकारी नहीं होगी इसके बारे में निर्णय लेना सही नहीं होगा. वैसे ही --

The point rests here.
का हिंदी अनुवाद –

बिंदु यहाँ विश्राम करता है

की त़ुलना में –

बिंदु /  विषय यहाँ ठहरता / स्थिर होता है

ज्यादा उचित प्रतीत होता है.

इन सबके अलावा कई जगहों में समानान्त वाले समभाव शब्दों के चयन के लिए आवश्यक शब्द सामर्थ्य के धनी अनुवादक ही सफल हो पाते हैं. किसी रचनाकार की मूल भाषा-एतर प्रकाशनों पर साख, अनुवादक की श्रेष्ठता व सफलता पर ही पूर्णतः निर्भर करती है. रचनाएं अन्येतर भाषाओं के पाठकों तक पहुँचाने का श्रेय भी अनुवादकों को जाता है. इसीलिए कई साहित्यिक संस्थानों में अनुवादक नियुक्त किए जाते हैं और अच्छे रचनाकारों को भी अपनी रचना के अनुवाद के लिए सशक्त अनुवादकों की जरूरत होती है. अनुवादित प्रकाशनों व सस्करणों में उनकी य़श प्राप्ति व धन प्राप्ति के लिए काफी हद तक अनुवादक जिम्मेदार होता है.

सरकारी महकमें में अनुवादक तो मजबूरी में नियुक्त होते हैं उनका मुख्य काम तो परियोजना संबंधी कागजातों का अनुवाद और परिपत्रों के अनुवाद तक ही सीमित रह जाता है.

अच्छे अनुवादकों के लिए विश्वविद्यालय, प्रमाणित अनुवादक तैयार करते हैं, जो एक निर्धारितत पाठ्यक्रमानुसार तैयार किए जाते हैं.

साराँशतः अनुवादक की श्रेष्ठता व सफलता के लिए उसे दोनों भाषाओं का परिपूर्ण ज्ञान होना चाहिए. शब्द सामर्थ्य दोनों भाषाओं में जरूरी है और सबसे जरूरी हो कि वह दोनों भाषाओं में कथ्य के गूढ़ को पकड़ – समझ सके व अपने शब्द सामर्थ्य के चलते दूसरी भाषा में उसका पुनर्प्रतिपादन कर सके.

अब इन सब चर्चित विषयों से समझ तो आ ही गया होगा कि अनुवादक साहित्यिक संसार का एक विशेष अंग है. जिसकी मेहरबानी से ही विभिन्न  भाषा के साहित्य का आदान - प्रदान संभव हो पाता है.  मेरे विचार में अच्छे साहित्यकारों को तो अनुवादकों का आभारी - ऋणी होना चाहिए कि उनकी रचनाएं इन्हीं के कारण प्राँत, प्रदेश, देश, द्वीप व भाषा लाँघ कर सारे विश्व में पहुँच जाती है. रचना विश्व व्यापी बन जाती है.

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