अम्मी की अठन्नी
आठ बरस की उम्र में ,
अम्मी की अंटी से
अठन्नी चुराना और,
उस पर अब्बू का
आड़े हाथों लेना,
आज भी याद है.
अठारह की उम्र तक अठन्नी.
तिजोरी बन गई होती,
और उठाने की आदत शायद,
सलाखों के पीछे, पटक देती.
या कोई अजनबी अबू आजम,
आड़े डंडे लेता,
या फिर कोई और अठन्नी छाप,
चाकू छुरा भोंक जाता.
अठाईस की उम्र तक,
आधा रुपया शायद,
पूरी रूपसी बन गई होती,
और उठाना शायद,
उठने का पर्याय बन गया होता.
तो क्या भैया पापा, मौसा ताऊ,
हाथ पर हाथ धरे, मुँह बाए बैठे रहते ?
कत्ल से कम का इल्जाम
न लेते, अपने ऊपर.
या फिर बाजुओं की पोटली
रख जाते बाजू में.
उस समय अब्बू ने,
अठन्नी के आईसक्रीम की मिठास को,
कड़वाहट में बदल दिया,
लेकिन इससे जीवन की
कितनी कड़वाहटें थम गई
और मिठास में बदल गईं,
मैं गिन नहीं सकता.
अगर ऐसा न हुआ होता,
तो अठन्नी उठाने की आदत पनपती,
और न जाने कहाँ कहाँ से
क्या क्या उठ जाते.
कितने होनहार ,
अठन्नी उठाने वाले,
हुनरवार बन जाते,
अड़तालीस और अठावन की उम्र में,
बचपन की यादें, रुक रुक कर लौटती हैं.
अब की समझ से बचपन निहारा जाता है.
असलियत का आभास कराता है कि, किस तरह
तब की सोच और अब की सोच में फर्क है.
अब इस उम्र में अब्बू जान को
कैसे, किस मुँह से धन्यवाद दूं.
समझ नहीं आता,
दिल ही दिल में उनका शुक्रिया अदा करता
हूँ.
और ता उम्र उनके संगत की कामना करता हूँ.
बचपन के कई निर्णय आज भी अचंभित करते हैं,
कि उस कच्ची उम्र में कितनी मूर्खतापूर्ण
कार्य़ किए,
और कभी इसलिए कि ...उसी कच्ची उम्र में
भी.
इतने अच्छे निर्णय लिए गए.
अब्बू अगर ख्याल नहीं करते, तो
आखिरकार यही होता कि,
आप इस वक्त ,यह
न पढ़ रहे होते,
न मैं होता और
न ही मेरी यह रचना होती.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,आभार.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राजेंद्र जी.
हटाएंहम भी कभी ऐसे ही परिवर्तन की सुइयों को पीछे घुमाकर देख रहे होंगे....
जवाब देंहटाएंबेशक क्यों नहीं.
हटाएंहर एक की बारी आनी है.
धन्यवाद एवं आभार.
अयंगर.
anubhtio ki sundar prastuti,pche mud kar dekhne aur sochne par vivas kart rachna
जवाब देंहटाएंसर,
हटाएंइतनी भी तारीफ मत कीजिए कि सर ही फिर जाए.
सादर - आभार.