मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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गुरुवार, 30 मई 2013

  

       बूंदा - बांदी

  

   गुनगुनाते भँवरों को दोष मत देना,


    ये तो रंगत खिलती कली के गाते हैं,
 

    बाग में कली कोई जो खिल जाए,
   

    गा – गा कर ये खुशी हमें सुनाते हैं.
----------------------------------------------------------------      मानवता है गर्त में, मानव कौन बताए,
   तुलसी पर दीपक रखा, मंदिर दिया जलाय.
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    दूर खड़ी हो, नजरों के ये तीर भेद क्यों जाते हैं,
   

    निरख तुझे ना जाने कितने संदेशे मिल जाते हैं,
   

    नखरों की क्या कहूँ तुम्हारे, मन भटकन खो जाता है,
   

    अधर शांत हैं,पर नजरों का शोर सहा ना जाता है.
..............................................................................                   नर नारी तो समपूरक हैं,
         अनुपूरक हैं, परिपूरक हैं,          नारी नर की रंगत है औ
           नर नारी का संगत है.
           नर बिन नारी लगे अधूरी,
         नार बिना नर कब है पूरा,          वे पूरक हैं...           समपूरक हों, अनुपूरक हों,
           परिपूरक हों.. 

         पर पूरक हैं
===========================================एस.आर.अयंगर.

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