बूंदा - बांदी
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मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS
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गुरुवार, 30 मई 2013
बाग में कली कोई जो खिल जाए,
गा – गा कर ये खुशी हमें सुनाते हैं.
दूर खड़ी हो, नजरों के ये तीर भेद क्यों जाते हैं,
निरख तुझे ना जाने कितने संदेशे मिल जाते हैं,
नखरों की क्या कहूँ तुम्हारे, मन भटकन खो जाता है,
अधर शांत हैं,पर नजरों का शोर सहा ना जाता
है.
पर पूरक हैं
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