धीरज
कल एक शादी के
रिसेप्शन पर गया था. वहाँ करीब 9 बजे पहुँचा. देखा सामने मंच पर नयी नवेली दुल्हन
के साथ दूल्हा जी विराजमान हैं. पास कोई नहीं है. मौका देखा सोचा चलो पहले तोहफा देने
का काम निपट लेते हैं अन्यथा भीड़ की कतार में इंतजार करना पड़ सकता है. साथ ही साथ
अफने साथी को लेकर मंच पर चढ़ गए. इतनी ही देर में दुल्हे की माताजी ने शायद हमें
देखा और मंच पर आ गई. दुआ सलाम हुए फिर हमने दुल्हा – दुल्हन को आशीर्वाद के साथ
तोहफे भेंट किए. उनके प्रणाम स्वीकारे और मंच से उतर ही रहे थे, कि भाभी जी ने रोक
लिय़ा. कहा भाई साहब, यहाँ खड़े हो जाइए.
मैंने पूछा क्या फोटो भी खिचवाना है . उत्तर हाँ में मिला और हम केमरे के क्लिक के
बाद मंच से परे हो लिए।
वैसे तो
जानकारों और रिश्तेदारों का खूब मजमा था किंतु हमें लगा था कि यार दोस्तों में हम ही
सबसे लेट लतीफ होंगे. लेकिन वहाँ तो कोई पहुँचा सा लग ही नहीं रहा था. धीरे धीरे
दो - एक आए तो लगा, अभी जनता आ ही रही है. कुछ देर बाद एक झुंड सा कहीं भीतर से निकल
कर आते देखा. आश्चर्य हुआ जब पता लगा कि सारे के सारे पहले भोक्ता बन चुके हैं, अब
जाने के पहले नव-दंपति से मिलकर प्रस्थान कर लेंगे. मुझे लगा – हमें तो पार्टी में
बुलाया गया है. बिना कुछ खाए तो कोई जाने नहीं देगा. फिर खाने की इतनी जल्दी क्यों? लेकिन देखा अक्सर लोगों ने यही पद्धति अपनाई. शायद हम ही पुरानी रीत के थे. पता नबृहीं उनका इराज गर्म खाने से था या शक कि खाना खत्म न हो जाए या कुछ और. किंतु इतना जरूर पता लग गया कि उनके लिए पार्टी में खाना अहम था बाद में नव- दंपति से मिलना.
उधर कुछ दिन
पहले जब सफर से लौट रहे थे तब हमारी रेलगाड़ी का अंतिम पड़ाव हमारा ही शहर था. सबको
यहीं उतरना था – चाहें या न चाहें. गाड़ी का गंतव्य यही था. स्टेशन पर गाड़ी के
आते ही सारे यात्री अपना - अपना सामान लेकर गेट पर जमघट कर गए. दो एक होते तो समझते
कि उनकी कोई खास जरूरत है. जैसे किसी को
अस्पताल जाना है , उनका कोई रिश्तेदार बुरी तरह से बीमार है व अंतिम साँसें गिन
रहा है. या किसी को हवाई अड्डे से अगली फ्लाईट पकड़नी है. किसी का नौकरी के लिए
इंटर्व्यू है और गाड़ी लेट हो गई है – उसके लिए समय कम बचा है. लेकिन सब के सब गेट
पर क्यों? किसी के पास दूसरे के लिए समय नहीं है – भले ही खुद कितना भी समय बर्बाद कर
लें. जिनको अफने घर जाकर आराम करना है वे तो बाद में उतर सकते हैं. बड़े बूढे जिनको रिटायर्ड जिंदगी बितानी है वे तो आराम से उतर सकते हैं. लेकिन नहीं सबको
जल्दी है. सबको पहले ही उतरना है. यह तो रही गंतव्य स्टेशन पर की बात.
अब देखिए बीच
के स्टेशनों पर क्या होता है. किसी बड़े स्टेशन पर जैसे ही गाड़ी रुकती है – उतरने
वाले, जो गेट पर पहले ही पहुँच चुके हैं, जल्दी - जल्दी में उतरने लगते हैं. पीछे उनके भी तो
कतार लगी है. और उधर प्लेटफार्म पर खड़े यात्री, जिनको सफर करना है, वे चढ़ने की जल्दी
मे गेट को घेरे खड़े रहते हैं. इससे न उतरना हो पाता है, न चढ़ना.
जिसको चढ़ना होगा चढ़ेगा, जिसको उतरना होगा उतरेगा.
रेलवे तो सोच
ही सकती है कि हर कोच के दोनों ओर दो – दो दरवाजे होते हैं. एक को चढ़ने के लिए
और दूसरे को उतरने के लिए क्यों नहीं चिन्हित किया जाता ?
केवल इसलिए कि किसको पड़ी है. रेलवे भी इस तरफ से निश्चिंत है.
बात यही खत्म
नहीं होती. दिल्ली से मुंबई की हवाई यात्रा पर जाईए. देखिए मुबई हवाई अड्डे पर
पहुँचते ही यात्री कैसे तेवर दिखाते हैं. फ्लाईट लैंड हुई कि नहीं लोगों के मोबाईल
खडखड़ाने लगते हैं. प्लाईट के रुकते ही लोग अपनी सीट से खड़े हो जाते हैं और
हड़बड़ी में ऊपर का सामान कक्ष खोलने लग जाते हैं. दो मिनट के भीतर करीब 95 % यात्री सामान के साथ रास्ते में खड़े
हो चुके होते हैं. सभी को एरोफ्लोट या कहिए सीढ़ियों के लगने का इंतजार होता है.
सीढ़ी लगते
लगते ही यात्री जल्दबाजी दिखाने लगते हैं. और सीढ़ीलगते ही ऐसे बाहर लपकते हैं, जैसे हर किसी का कोई बाहर, अंतिम साँसें गिन रहा हो. लेकिन एरोफ्लोट से बाहर आते ही
सबकी चाल धीमी हो जाती है. हाँ इक्के दुक्के जिनको सही मायनों में जल्दी होती है, वे ही
भागते –दौड़ते नजर आते हैं. हैंड बैगेज वालों के अलावा सभी आकर किसी न किसी बेल्ट
पर रुक कर लगेज का इंतजार करते रहते हैं.
समझ नहीं आता कि जब बैगेज का इंतजार करना ही था, तो विमान में किस बात की हड़बड़ी की जा रही थी.
एक बार एक
विमानयात्रा में फ्लाईट लैंड होते ही यात्रियों की हडबड़ाहट देखकर मैंने कह ही
दिया, पता नहीं क्या जल्दी है हमारे देश के लोगों को. जब बेल्ट पर रुकना ही है
लगेज लेने के लिए तो इतनी हड़बड़ी क्यों करते हैं. तो पास खड़े यात्री ने पूछ ही
लिया – लगता है आप परदेशों की हालत देखे नहीं हो.
यह भारत की नहीं इंसान की ही
बीमारी है. सारे विश्व में यही हाल है. सही में ऐसा है कि नहीं, वे ही बता पाएंगे
जिन्होंने विदेश भ्रमण किया है.
लगता है भारत
मे बसों के यात्रियों मे सब्र इनसे कहीं ज्यादा है. भीड़ भी होती है गर्दी भी होती
है लेकिन चढ़ने उतरने के लिए इस तादाद में खींचातानी नहीं होती.
लेकिन मजबूरी है
– हर जगह बस में सफर नहीं कर सकते न ही हर कोई बस मेंसफर कर सकता है.
बस में सफर
करना कुछ लोगों के बस में ही नहीं होता.
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एम.आर.अयंगर.