मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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रविवार, 27 जून 2021

बुढ़ापे का सीख

 बुढापे की सीख


कुछ दिन से एक बच्चा मुझसे पढ़ने आ रहा है।  पहले भी कुछ समय के लिए आया था किंतु होम वर्क न करने के कारण जब मैंने उसे वापस भेज दिया तो घर वालोें को अच्छा नहीं लगा और उसने आना बंद कर दिया। अब घर वालों ने फिर से भेजना शुरु किया है। मैंने  देखा कि बच्चे को पढ़ने का शौक नहीं है और शायद घर वालों की जबरदस्ती से यहाँ आ रहा है। दो चार बार उससे पूछा भी और उसने दबी जुबान में स्वीकारा भी।  कल उस बच्चे से कुछ विस्तार में बात हुई। मुझे सही मायने में पता करना था कि इस बच्चे को पता भी है कि पढ़ने से उसकी जिंदगी सुधर जाएगी? 

मैंने बातों-बातों मे बच्चे  से कहा बेटा पढ़ लो वरना और लोगों जैसे दुकान में काम करना पड़ेगा। होटल में बरतन माँजना होगा। आड़े-टेढ़े काम करने पड़ेंगे । उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

मैंने आगे कहा - तुम्हें समझ में आ भी रहा है कि तुम नहीं पढ़ोगे तो किसका नुकसान होगा?

बच्चे के चेहरे पर थोड़ी रौनक आई। जैसे उसे पता है इसका उत्तर।

मैंने फिर से वही सवाल पूछा तो बोला - हाँ।

मुझे बड़ी खुशी हुई कि बच्चा समझ रहा है।

आगे पूछा तो जवाब आया -

मम्मी पापा का

तसल्ली करने के लिए मेंने दोबारा वही सवाल किया तो दोबारा भी वही जवाब मिला।

संयोगवश उस वक्त बच्चे की माताजी भी मेरे घर पर ही थी। 

मैंने उन्हें बुलाया और कहा कि बेटे की बात सुन लो -

फिर बच्चे से - माँ जी के सामने पूछा 

"बेटा, तुम नहीं पढ़ोगे तो किसका नुकसान होगा?"

निडर साहसी बच्चे ने तुरंत जवाब दिया - 

"मम्मी पापा का"

मम्मी मुझे देख रही थी कि अब वह करे तो क्या करे?

किंकर्तव्यविमूढ़ सी।

उसे शायद अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ तो फिर बच्चे से उसी ने पूछा और जवाब सुनकर सर पीटते हुए चली गई।

इस घटना से इस बुढापे में मैंने सीखा -  

"बच्चे नहीं पढ़ें तो मम्मी-पापा का नुकसान होता है।"

इसलिए बच्चे का एहसान मानिए - यदि आपका बच्चा अच्छे से पढ़ रहा है या  आपके बच्चे ने अच्छे से पढ़ लिया है।

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25.06.2021

(यह हकीकत है मनगढंत नहीं। कल की ही घटना है।)