मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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बुधवार, 1 अप्रैल 2015

बहु – विवाह

बहु – विवाह

मंथरा के उकसाने से,

कैकेयी ने , पुत्र - निहित स्वार्थ और

दशरथ के प्रेम का नाजायज लाभ,

उठाकर, राम का वनवास चाहा.


पंचवटी के प्रहरी लक्ष्मण पर,

शूर्पणखा ने डोरे डाले

हारकर जब शूर्पणखा ने अपना

विकराल रूप दिखलाकर,

आतंक फैलाना चाहा, तो

लक्ष्मण ने उसके नाक - कान

काट दिए – यह कहकर, कि

कभी किसी को छलने लायक नहीं बचेगी.


उधऱ स्वाभिमान बोला, और

रावण ने धूर्तता से सीत को हर लिया.

इधर पौरुष जागा, और

राम ने स्वर्णिम लंका दहन कर, 

सीता को वापस पाया.



यदि दशरथ बहु - विवाह न अपनाते, तो

भरत और राम सहोदर होते,

न मंथरा उकसा पाती,

न ही कैकेयी का स्वार्थ होता,

शायद रामायण ही नहीं होती.


देखा बहु - विवाह ने रामायण रच दिया.
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