मेरा भारत महान
देखकर आँसू
तेरे. दिल मेरा है रो रहा,
जो दूध पीता था
यहाँ, आज खूं है पी रहा,
किस लिए किसके
लिए ? इस धरा पर वह जी रहा,
समझ अमृत क्यों
ये मूरख, प्याला जहर का पी रहा ?
दूध की नदियाँ
कभी बहती थी, भारत देश में,
आज बहती खून की
नदियाँ उसी परिवेश में,
भेड़िए ही घूमते
हैं आज मानव वेश में,
इसानियत
परिवर्तित हुई, क्लेश में और द्वेश में.
खून अपना देखकर
क्यों उड़े हैं होश अब?
खून दूजे का बहाया, था वो कैसा जोश तब?
अब भी समय है
सँभल जाओ, ओ नौजवानों देश के,
मातृ मंगल चरण
चूमो, ले चलो संदेश ये ---
“देश मेरी माँ, सभी नागरिक परिवार जन”
“कैसे करूं
मैं उनकी रक्षा ?“ तुम करो चिंतन गहन.
पूछ दुखियारी का
दुख, दूर कर दोगे अगर,
कैसी समस्याएँ
तुझे, सागर भी दे देगा डगर.
काश !!! फिर इस देश में, घी दूध की
नदियाँ बहें,
इस देश के सब नागरिक दूधों नहा फूलें फलें,
भगवन करो ऐसी कृपा, इस देश का कल्याण हो,
देश के खातिर निछावर, हर नागरिक के प्राण हों.
आपस में मिल जुल कर रहें, कोई धनवान ना बलवान
हो,
सर्व सम्मति से यहाँ, हर समस्या का निदान हो,
विद्वज्जनों और गुरुजनों का सर्वत्र ही सम्मान
हो,
इस धरती पर सबसे प्यारा देश ...
हिंदुस्तान हो.
एम.आर.अयंगर.