मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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शनिवार, 4 जुलाई 2015

किस्से छोटे- छोटे

किस्से छोटे-छोटे....

पता नहीं, विपिन की शादी को दो एक महीने भी हुए थे या नहीं. अब उसने घर बसाया है, तो घर सजाना भी है. घर के लिए नए फर्नीचर, परदे सब कुछ ही लेना था. आलोक ने एक दिन प्रोग्राम बनाया और एक रविवार के दिन उन दोंनों परिवार वालों के साथ पानीपत चल पडा. वहाँ पहुँच कर हम एक दुकान के सामने रुके. शायद दुकानदार जानकार था. वे चारों, बच्चों के साथ दुकान में बढ़ गए. मैं बाहर खड़ा - खड़ा सोच रहा था कि अब क्या किया जाए. दो मिनट में ही बल्ब जला और मन किया कि अभी समय है एक सिगरेट पी ली जाए. 

पास की दुकान से एक खरीद कर जला लाया और वहीं खड़े एक स्कूटर पर एक पाँव रखकर सड़क पर की ट्राफिक निहारते हुए मजे में कश भरने लगा. थोड़ी ही देर में एक लड़का मुझे पुकारते हुए कोल्ड ड्रिंक देने लगा. पता किया तो जाना आलोक के कहने पर दिया जा रहा है. अब मेरे एक हाथ में सिगरेट और दूसरे हाथ में कोल्ड ड्रिंक की बोतल थी. मैं सड़क के ट्राफिक में खोया बारी - बारी दोनो का मजा ले रहा था.

एक आवाज आई और मैं अचानक घबराकर वर्तमान में लौट आया. बगल में रुके स्कूटर पर एक पैर रख कर चार - पाँच साल का गोलू भी कोल्ड ड्रिंक पी रहा था. उसी ने पुकारा था. जैसे मैं उसकी ओर पलटा, वह कह पड़ा अंकल वो दो ना”   मुझे लगा कि वह मेरी कोल्ड ड्रिंक की बोतल माँग रहा है. मैंने बोतल आगे बढ़ा दी और पूछा, दो दो एक साथ कैसे पी सकोगे ?

जवाब आया, अंकल वो नहीं वोसाथ में हाथ के इशारा सिगरेट की तरफ कर रहा था. मैं घबराया और उसके इशारे को समझ कर दूसरा हाथ दिखाते हुए पूछा  ये ? उसने बे झिझक कहा हाँ अंकल. मेरे तो होश उड़ने लगे. बच्चा मात्र कोई 4-5 साल का होगा, मुझे लगा कि उसे समझ नहीं आ रहा है कि यह है क्या ? इसलिए मैंने उससे पूछा – जानते हो यह क्या है ? जवाब मिला हाँ अंकल सिगरेट है. फिर सवाल – तुम सिगरेट पीओगे...जवाब था - हाँ अंकल. अब सारी बात साफ हो चुकी थी.

बच्चा जानता है कि यह सिगरेट है, इसे पीते हैं. मुझे देख तो रहा था. मुझे लगा कि मैं ही दोषी हूँ. मैंने सिगरेट फेंक कर बुझा दी और कहा बेटे सिगरेट तो नहीं है गिर गई. घर की सीख थी कि गिरी हुई चीज उठाकर नहीं खाते, इसलिए वह चुप तो हो गया, लेकिन उसके चेहरे पर अनगिनत सवाल थे, जो मुझे आज भी चुभते हैं.

वह आखरी दिन था, जब मैंने किसी बच्चे के सामने सिगरेट पी या किसी स्त्री (या लड़की) के सामने सिगरेट जलाई. जिंदगी को एक सबक मिल गया.

***

जब मैने मोटर साईकिल खरीदी तब मुझे उसे चलानी नहीं आती थी. न ही लाईसेंस था. अपने वाहन पर ही मैंने चलाना सीखा. उम्र होगी कोई 27 बरस. अच्छी तनख्वाह थी. इसलिए सिगरेट की आदत लगी हुई थी. शौक फरमाए जाते थे. जब भी मोटर साईकिल में कहीं जाना होता था, तो पहले वाहन चालू कर, एक सिगरेट जलाया जाता था. फिर कश मारते हुए वाहन चलाया जाता था. बस कहिए केवल शौक की बात थी और कुछ नहीं. हो सकता है कि इसमें कोई रईसी झलकती हो, किंतु विचार ऐसा नहीं था.

य़ह रोज की दिनचर्या में शामिल आदत बन गई थी. इसलिए अब कोई विशेष बात नहीं रह गई. घर से निकलते ही मोहल्ले के बाहर जी टी रोड़ पर चढ़ जाते थे और रेल्वे के पुल से पार होकर ही कहीं जाया जा सकता था.

एक दिन जब ऐसा ही कार्यक्रम चला, तब जीटी रोड़ पर चढते ही देखा कि सामने से एक ट्रक पुल से उतर रहा था. सिगरेट तो मुँह में लगी ही थी उसे लबों से पकड़कर, हाथों से मेटरसाईकिल सँभालने लगा. मुझे लगा कि आने वाला ट्रक अपने रास्ते जा रहा है इसलिए कोई परेशानी नहीं है. अपनी तरफ से चल देंगे. पुल के करीब पहुँचा ही था कि एक ट्रक उसे ओवरटेक करता हुआ, पूरी रफ्तार के साथ आया. मैं सँभल नहीं पाया और बचाव में मोटर साईकिल को कच्चे में उतार दिया. मई के महीने में दोपहर का वक्त था, लू चल रही थी. धूल में उतार कर मैं उसे सँभाल ही रहा था कि मेरे मुँह से सिगरेट छूट गई और नीचे गिरने के बजाय मेरी शर्ट के ब्रेस्ट पॉकेट में गिर गई. अब तक ट्रक पार हो चुका था, लेकिन जेब में जलती सिगरेट ने तो डरा ही दिया. मैंने तुरंत गाड़ी रोकी और बे-तरतीब जेब को मसलने लगा कि सिगरेट बुझ तो जाए. खैर कोई आग तो नहीं लगी, न ही कुछ जलने की बू आई, लेकिन डर तो जबरदस्त था. मैंने मोटर साईकिल मोड़ा और घर आया. घर पहुँच कर एक गिलास पानी पिया और जेब टटोलने लगा. सारे कागजात, रुपए सब बाहर किए तो देखा  - जला तो कुछ नहीं है किंतु सारे कागज और नोट काले पड़ गए हैं. कमीज पर जेब के आगे  पीछे दोनों तरफ काला दाग पड़ गया है. फिर कमीज उतारी तो देखा बनियान में भी उस जगह काला दाग हो गया है और सीने पर भी कालिख  लग गई है.

यह सब देख कर मैं बहुत ही घबराया कि एक हादसा होते - होते टल गया. इसकी पुनरावृत्ति न हो इसलिए कसम सी खाली और ठान लिया कि अब आगे कभी भी ड्राईविंग और स्मोकिंग को नहीं जोड़ना है. अब तो ट्राफिक वाले कहते हैं डोन्ट ड्राईव इफ ड्रन्क या डोंट ड्राईव एंड ड्रिंक लेकिन मैंने 30 साल पहले ही सबक पा लिया है – डोन्ट मिक्स स्मोकिंग एंड ड्राईविंग.

आज तीस साल हो गए मैंने फिर वह गलती नहीं दोहराई. जिंदगी को एक सबक मिल गया.

***

कुछेक साल पहले की बात है. मैंने अपने पापा से पूछा था कि तेलुगु भाषा की लिपि में कितने अल्फाबेट्स हैं. मुझे शक था कि वे 56 हैं या 58. पिताजी गिनती करने लगे और बोल पड़े 58 हैं, उसमें किस बात का कन्फूजन है. मैंने बताया कि आखरी के दो अक्षर असल में दूसरे अक्षरों के ककहरे में आते हैं इसलिए शक था कि वे अक्षरों में गिने जाते हैं या नहीं. इसी बीच जीजाजी आ गए तो उनको भी इसी में घसीट लिया. वो भी बोले हाँ 58 ही हैं. मैंने कहा अंग्रेजी में तो 26 ही हैं ना. दोनों ने सहमति जताई हाँ.

घर के भीतर से भाँजा निकल कर आया...मामा आप ये क्या बोल रहे हैं. किसी भी भाषा में अल्फाबेट तो एक ही होता है. आप तेलुगु में 58, अंग्रेजी मे 26 क्या बोल रहे हैं. मैंने उसे समझाने की कोशिश की कि बेटा – आप जो कह रहे हो वह सेट ऑफ अल्फाबेट है जो एक होता है – अल्फाबेट्स तो 58 और 26 ही हैं. उनके पापा और मेरे पापा दोनों ने मेरी बात पर सहमति जताई. बल्कि जीजाजी ने उसे डाँट भी दिया – कि क्या बक रहा है.

भाँजा इस पर भी सहमा नहीं – बोला आप तीनों गलत हैं. अल्फाबेट यानी सेट ऑफ लेटर्स – लेटर्स 58 और 26 हैं लेकिन अल्फाबेट एक ही होता है. बात बिगड़ गई .. बच्चा तीन बूढ़ों से भिड़ गया. अंततः हल तो चाहिए था .. हमने ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी मँगाई. बच्चा खुशी - खुशी ले आया.. मैंने देखा – कि अल्फाबेट का मतलब – सेट ऑफ लेटर्स इन एनी लेंग्वेज ही लिखा था.

मैंने बाकी दोनों को भी इससे अवगत कराया और बच्चे से सीखने की बात को स्वीकारते हुए उसे धन्यवाद भी  दिया.

***

ऐसी छोटी छोटी बातें सीखने के मौके गँवाने नहीं चाहिए. बात छोटी हो सकती है पर महत्वपूर्ण भी तो हो सकती है. इसलिए बिना यथार्थ जाने क्रोध करना या  झिड़क देना कभी - कभी अन्याय हो जाता है. यदि बच्चे के साथ ऐसा हुआ तो अगली बार आपको गलती करते देख भी उसे अनदेखा कर देंगे. आगे वह इन बातों को सुनकर भी अनदेखा कर देगा और लोग सीखने का मौका खोते रहेंगे.

***

हम सब एक दोस्त की शादी में जा रहे थे, उम्र मस्ती वाली थी तो सब अपनी अपनी गाड़ियों में अपनी - अपनी तरह से, कोई अकेले तो कोई गुट में चले जा रहे थे. किसी किसी में तो होड़ लगी मेरी गाड़ी 80 किमी पर चल रही है तो कोई कहे अरे यार मैं तो 90 पर जा रहा हूँ. इसी बीच एक की कार ने हमें पार किया. ऐसा लगा माने वह 100 की रफ्तार से चल रहा है. उस वक्त मैने अपनी मोटरसाईकल की रफ्तार देखी.. 95 किमी प्रति घंटा. मैं चौंका कि साहबान को पता भी है कि गाड़ी की चाल क्या है?  हमने ठान ली कि उन्हें बताना पड़ेगा—शायद कहीं कुछ गड़बड़ है. फिर क्या था अगर तुम ठान लो, तारे गगन के तोड़ सकते हो... गाड़ी की रफ्तार बढ़ती गई. जब तक ऐसा महसूस न हुआ कि हममें और तेज तर्रार कार के बीच का फासला एक सा रह रहा है तब तक बढ़ाई. तब हमारी रफ्तार 105 किमी थी. अब बात थी उन तक पहुँचने का तो हमने गति और बढ़ाई और बगल में पहुँचकर उनके धीमे करने का इशारा किया. जब गति कम हुई तो उन्हें बताया कि आपकी गाड़ी तो 105 पर चल रही है तो वे कहने लगे. क्या मजाक करते हो यार मैं तो 60 की स्पीड में चल रहा था. हमने उनसे गाड़ी की प्रस्तुत गति बताने को कहा – वे बोले यार मेरी गाड़ी का स्पीड़ोमीटर काम नहीं करता है. हमने बताया कि अब हम 70 किमी की गति पर हैं जबकि हमने 105 की गति पर आपको सूचित किया था कि गति कम करें. तब जेहन में खटका हुआ कि स्पीडोमीटर का फायदा हम कैसे उठाते हैं यदि काम नहीं कर रहा तो गाड़ी 105 की गति पर भी 60-70 की गति लगती है क्योंकि हम मस्ती में होते हैं. शाशे बंद होने पर कार की गति का सही अंदाजा नहीं हो पाता. ध्यान रहे कि गाड़ी के सारे मीटर सलामत रहें व काम करते रहें.

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बहुत पुरानी बात है 90 के दशक के शुरुआत की शायद. मेरे मौसी के के बेटी की शादी थी तिरुपति में. वहां सारे मामा भी आए हुए थे. एक मामा से मेरा पुराना हिसाब बाकी थी. उनने मुझसे कुछ ऐसी बात कह दी कि हजम ही नहीं हो पा रहा था. मैंने अपने अभिभावकों को भी इसकी सूचना दे दी थी और कह भी दिया था कि इस बीच में आप पड़ गए तो मेरी जबान को दोष मत देना. सभी को मेरी प्रतिक्रिया उचित लगी.

शादी के घर पहुँचकर जब उस खास मामा से मुलाकात हुई तो बात खुल ही गई. कुछ ही देर में माहौल गर्म होने लगा. पास बैठे अन्य लोगों को लगा होगा कि अब कुछ खास होने वाला ही है.

बात जब ज्यादा बिगड़ती नजर आई तो मैनें कहा – मामाजी हम न मेरे घर में हैं न आपके. हम दोनों किसी तीसरे के घर न्यौते पर आए हैं. हमें अपने तर्क - कुतर्क करने का अधिकार तो है लेकिन किसी के फंक्शन का माहौल बिगाड़ने का हक न आपको है न मुझे. इसलिए यह अनुचित होगा कि हम अब यहाँ बात को आगे बढ़ाएं . या तो हम बात को यहीं रोक दें या फिर बाहर कहीं जाकर अपने तर्क – कुतर्क करें और निपटान के बाद वापस यहाँ आ झाएं ताकि उनके फंक्शन में किसी भी तरह की रुकावट या मुश्किलात न आए.

मामाजी और अन्य पास बैठे बड़ों को भी मेरी बात समझ में आई और सबने साथ दिया. हम दोनों चुप हो गए. मसला उसके बाद आज तक कभी नहीं उछला दोनों शांत हैं. कहा जा सकता है कि मामला दब चुका है.

एम.आर. अयंगर.