एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग
सबसे पहली बात:
“प्रूफ रीडर का काम पुस्तक में परिवर्तन
करना नहीं है, केवल
सुझाव देने हैं कि पुस्तक में क्या कमियां हैं और उनका निराकरण कैसे किया जाए.
अच्छे प्रूफ रीडर पुस्तक की उत्कृष्टता बढ़ाने के लिए भी सुझाव दे सकते हैं.”
प्रूफ रीडर को पुस्तक आवरण के ऊपरी बायें छोर से (left top corner of
front cover) से पृष्ठ
आवरण के निचले दाएँ छोर तक (right bottom corner of back page) तक पूरा पढ़ना है. इसे ही पूरी पुस्तक
कहते हैं.
आभार, समर्पण, भूमिका, मेरी बात, पाठकों से, प्राक्कथन, दो शब्द, संदर्भ टीका टिप्पणी इत्यादि
नामों से दिए सभी संदेश भी किताब के ही अंश माने जाते हैं.
वैसे ही बैक कवर पर लिखी बातें, प्रकाशक के बारे में, लेखक परिचय, लेखक की
अन्य रचनाएं, संदर्भ
कुछ भी छोड़ा नहीं जा सकता.
सबसे पहले कवर front and back देखना है , कैसा लग रहा है. पुस्तक का नाम लेखक का
नाम साफ दिख रहा है या नहीं. यदि नहीं तो सुझाना है कि इस कमी का निवारण कैसे हो.
कवर पर के चित्र, अंकन और
रंगों पर भी सुझाव दिया जा सकता है. कवर पर के अंकन का अंदर के विषय से मेल रखना
एक अच्छा चयन माना जाता है. शाँत विषय पर भड़काऊ जिल्द सर्वथा अनुचित है.
फिर देखिए पुस्तक की साइज ठीक है ? कहीं 5*7 इंच में 700 पेज की तो नहीं हो रही ? यह भी प्रूफरीडर का काम है. लंबी चौड़ी
पर पतली तो नहीं. यह देखते हुए सुझाव देना है कि सही क्या होगा आपकी राय मे. यदि justify कर पाएँ कारण देकर तो और अच्छा.
पुस्तक की समीक्षा या पूर्वमूल्याँकन में पुस्तक दी जाती है. अन्यथा साइज
बताया जाना चाहिए. जरूरत पर पूछा जा सकता है. पूर्व मूल्यांकन रिव्यू है. यहाँ
बेहतरी की उम्मीद रहती है. समीक्षा प्रकाशन के बाद होती है, वहाँ बेहतरी अगले संस्करण में ही हो
पाती है.
आपको निश्चित करना है कि पुस्तक में किसी भी जगह ऐसे किसी लेख या रचना का
संदर्भ न हो जिसके बारे, पुस्तक में होने की बात कही गई है पर वह है नहीं.
क्रम सूची का क्रम और पृष्ठ संख्या पर विशेष ध्यान होना चाहिए.
पुस्तक की उत्कृष्टता के लिए हर नई रचना नए पृष्ठ पर शुरू होनी चाहिए. कुछ
लेखक नई रचना दायीं पृष्ठ से ही शुरू करना पसंद करते हैं. ऐसे में पृष्ठ बढ़ते है
और लागत भी, जिससे पुस्तक की कीमत बढ़ जाती है.
खर्च को कंजूसी की हद तक कम करने के लिए रचनाएं आधे पृष्ठ पर भी शुरू की
जाती हैं, जो किसी
भी तरह से तर्कसंगत नहीं लगता. पर रचनाकार के पास रुकने का समय नहीं है और न ही
पैसों की उम्मीद. मजबूरी ऐसा भी करवाती है. जैसे घर के बुजुर्ग मृत्युशय्या पर हैं
और उनकी तमन्ना है कि पोते की पुस्तक देखकर जाएँ, जो समय ले रही है. यह मजबूरी ही है.
मुखपृष्ठ पर और भीतर रचनाओं के साथ फोटो हों तो उनका औचित्य भी प्रूफरीडिंग
के दायरे में आता है. संभवतः चित्र विषय वस्तु से मेल खाता हो. पाठक वर्ग जिनके
लिए पुस्तक लिखी गई है, उनके समझ की हो. सबसे मुख्य कि कोई अश्लीलता या भड़काऊ अंश न हो. जैसे
राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान न हो इत्यादि. कानून के दायरे में हो. अनैतिक मूल्य न
दर्शाता हो.
इन सबके बाद प्रथम पृष्ठ पर रचना व रचनाकार का नाम साफ सुथरे अक्षरों में
हो. प्रकाशक संबंधी जानकारी इसमें बाधक न बने इसलिए इस पृष्ठ पर उसे जगह न ही दिया
जाए तो बेहतर समझें.
फिर आएँ सूची पर. अपनी संतुष्टि करें कि पुस्तक की सारी रचनाएं इसी क्रम
में, इन्हीं
पृष्ठों पर हैं. मेरी पुस्तक दशा और दिशा में सूची का क्रम भीतरी क्रम से अलग हो
गया था. फिर उसे सही कराया गया.
अब आती हैं रचनाएं. एक - एक रचना पढ़ें. विषय की क्रमबद्धता, शब्द चयन, भाषा का औचित्य और प्रवाह, फिर व्याकरण
मुख्य मुद्दे होते हैं. विराम चिह्नों का सही प्रयोग, शब्दों के हिज्जे और वर्तनी
भी जाँच के दायरे में आते हैं.
कभी - कभी सूची में भी विषय की क्रमबद्धता देखनी पड़ती है. जैसे व्याकरण की
पुस्तक में सर्वनाम, संज्ञा से पहले नहीं आ सकता.
रचनाओं में फॉर्मेटिंग का बहुत झमेला रहता है. पृष्ठों पर चहुँ ओर का
मार्जिन, कविता में दायाँ, बायाँ या मध्य एलाइनमेंट पर ध्यान दिया जाना चाहिए
जिसमें पृष्ठ की सुंदरता भी बनी रहे और यदि हों तो चित्र अनुचित जगह न घेरें. गद्य
में बायाँ एलाइनमेंट के बदले जस्टिफाई ज्यादा उचित होता है.
पुस्तक की भाषा के बारे भी सुझाव तो दिया जा सकता है. बात की जा सकती है.
यदि लेखक की क्षमता वही हो, तो कोई
क्या करे. पर मंजूर हो तो रीडर कायापलट भी करवाने की सोच सकता है.
हो सकता है कि वह भाषा किसी विशेष कारणवश लिखी गई हो जो बात करने पर रीडर
के समझ आ जाए. भाषा में
साहित्यिक महत्ता भी कभी - कभी चिंता का कारण बनती है. रचनाकार की खासियत होनी चाहिए कि लेख, कविता या कहानी से उसकी उस विषय पर पकड़
झलकनी चाहिए. इसके लिए उचित भाषा का प्रयोग जरूरी है. शायद, संभवतः जैसे शब्द रचनाकार की पकड़ पर
सवाल उठाते हैं.
पुस्तक पठन के साथ उजागर कमियों को तालिका में प्रस्तुत किया जाना चाहिए.
जिसमें पृष्ठ संख्या, पेरा, छंद / दोहा पदबंद संख्या, लाइन संख्या, ना-सही या गलत - शब्द, वाक्यांश, वाक्य और सही जो होना चाहिए वे सब होने
चाहिए.
पूरी पुस्तक या उसके एक बड़े खंड के लिए सुझाव तालिका के ऊपर, नीचे या अलग पृष्ठ पर टाइप कर दिये जा
सकते हैं. यदि सुझाव कागज पर भेजे जा रहे हों, सुघड़ पठनीय हों और हर पृष्ठाँत में प्रूफरीडर
के हस्ताक्षर नाम व दिनांक के साथ होने चाहिए.
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