मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

वार


 वार

तुम नजरों ही से बोला करो,
तुम्हारे जुबाँ की फितरत,
कुछ और होती है,
नजरों से बयाँ करने की अदा,
जुबाँ में नहीं मिलती.

जुबाँ से किया हुआ वार,
अश्लीलता की बौछारें लिए आता है,
और नजरों की कटारी का मारा वार भी,
तुम्हारी अदाओं पर मर जाता है.

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

बिछना - बिछाना


बिछना - बिछाना.

जमाना बदल रहा है.
काफी बदल गया है.
लेकिन बिछने की आदत अभी कायम है.
पहले आँखें बिछाते थे,
नजरें बिछाते थे,
फिर कालीने बिछने लगीं ,
लोगों को फख्र महसूस होता था,
लोगों को हर्ष महसूस होता था,
जब किसी प्रतिभावान स्त्री- पुरुष के समक्ष,
साष्टांग प्रणाम करने,
बिछ जाने को,
कतार लगती थी,

अब भी लोगों को फख्र महसूस होता है,
अब भी लोगों को हर्ष महसूस होता है,
लेकिन अब नजारा और है,

कि अब हम न ही बिस्तर बिछाते हैं,
न ही हम कालीनें बिछाते हैं,
न ही नजरे इनायत बिछाई जाती है,
हम बिछाने में विश्वास नहीं करते ....

हम तो खुद ही बिछ जाते हैं.


एम.आर.अयंगर.
09425279174.