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बुधवार, 20 अक्टूबर 2021

अभिवादन

 


अभिवादन


सामान्य भाषा में अभिवादन को नमस्ते या नमस्कार कहा जा सकता है। इसे वंदन भी कहते हैं। नमस्ते, नमस्कार और प्रणाम सभी वंदन के ही रूप हैं। नमस्कार करते वक्त नमो नमः का उच्चारण किया जाता है। नमः का अर्थ है नमन । दोनो हाथों के पंजों को जोड़कर, नतमस्तक होकर किया गया वंदन ही नमस्कार है। 

सामान्यतः दोनों होथ जोड़कर, नतमस्तक होकर अभिवादन किया जाता है। इससे अगले व्यक्ति की गुरुता को स्वीकार करने की भावना जागती है और संप्रेषित होती है। वैसे कुछ लोग एक हाथ हिला कर भी अभिवादन करते हैं किंतु यह औपचारिक नहीं होता। इससे परस्पर सद्भाव का विचार प्रेषित नहीं होता। इसे अनौपचारिक वंदन भी कहते हैं।

श्रद्धा पूर्वक किया गया नमस्कार अहंकार को मिटाता है। लोगों के प्रति श्रद्धा व आदर का भाव दर्शाता है। इसे मानसिक हवन के समतुल्य माना गया है। नमस्कार करते समय हाथ में कोई वस्तु नहीं होनी चाहिए। इसे अश्रद्धा समझा जाता है। नमस्कार करते वक्त दो सेकंड के लिए आँखें मूंदने से मन मस्तिष्क पुनःजागृत होता है। नमस्कार को तारक मंत्र माना गया है।

नमस्ते-नमस्कार शब्दों का प्रयोग में जीवन में नित-दिन करते रहते हैं। नमस्ते-नमस्कार के बहुत रूप हैं और सबका अपना आध्यात्मिक महत्व है। गूढ़ में जाएँ तो पाएँगे कि किसी को नमस्कार करते समय हम मन से यह मानते हैं कि – 

आप बड़े हैं, मैं छोटा हूँ। मैं अपना मैं” / “अहम् त्यागकर आपकी दासता स्वीकार करता हूँ। किंतु कालांतर में यह केवल दैवीय संदर्भ तक ही सीमित हो गया है।

नम: + ते = नमस्ते

मतलब आपको (तुमको) नमन करता हूँ। यहाँ आप एकवचन है। इसलिए नमस्ते एक ही व्यक्ति को किया जाता है। जब एक से ज्यादा व्यक्ति हों तो हर व्यक्ति को अलग - अलग नमस्ते करना चाहिए।  दो लोग हों तो नमोवाम और तीन या अधिक लोग हों तो नमोवह कहना चाहिए। प्रत्यक्ष या कहें रूबरू होने पर ही नमस्ते का प्रयोग होना चाहिए।

नमस्ते प्रत्यक्ष रूप से सब लोगों यानी छोटों. बड़ों और समतुल्योंको भी, अलग-अलग को किया जा सकता है।

नमः + + करः = नमस्कारः

इसमें हाथ जोड़े जाते हैं इसलिए यह एक क्रिया भी है।

इसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

नमस्कार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में समान अवस्था वालों को किया जाता है।

अपने से बड़ों को – माता-पिता , गुरु, आध्यात्मिक गुरु और देवताओँ को प्रणाम किया जाता है।


नमस्कार के प्रकार : -  काया, वाचा, मनसा तीन मुख्य प्रकार होते हैं।

 

1.  मानस नमस्कार बाण – युद्ध की स्थितियों में विपक्ष में खड़े गुरुजनों को उनके कदमों के पास शर-संधान कर नमस्कृत करने की परंपरा है । इसे बाण-नमस्कार कहते हैं। महाबली भीष्म ने युद्ध में गुरु परशुराम को और महाभारत में अर्जुन ने भीष्म पितामह को चरणों के निकट शर-संधान करके ही अभिवादन किया था। मानस नमस्कार में परोक्ष रूप से मन ही मन भी प्रणाम किया जा सकता है।

2.  वाचा नमों नमःका उच्चारण करते हुए – वचन से नमो नमः, नमस्कार, नमस्ते कहकर किया हुआ वंदन, सबसे सरल और साधारण अभिवादन कहलाता है। शारीरिक नमस्कारों के साथ भी वचन से नमस्कार करने की प्रथा है। इससे नमस्कार की गुणवत्ता बढ़ती है।

   3.   शारीरिक एकाँग नमस्कार – मात्र सर झुकाकर या हाथ हिलाकर किया गया अभिवादन                 एकाँग नमस्कार कहलाता है। इसे अनौपचारिक वंदन माना गया है। इसमें वंदनीय के प्रति                सद्भाव या श्रद्धा का भाव प्रतीत नहीं होता।

    4.  शारीरिक त्रयाँग नमस्कार : दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर लगाकर नत मस्तक होकर किया             गया नमस्कार त्रयाँग नमस्कार कहलाता है। नित प्रतिदिन बड़े बुजुर्गों को और गुरुओं के                 सम्मुख होने पर इस तरह से अभिनंदन करते हैं।

   5.  शारीरिक पंचाँग नमस्कार ( प्रणाम) – महिलाओं के लिए पंचाँग प्रणाम का विधान है। यह               नमस्कार दोनों हाथ के पंजे, कोहनियाँ, सिर और घुटने और पैरों के पंजों को धरती पर टिकाकर         किया जाता है।

   6.  शारीरिक षष्टाँग (प्रणाम) नमस्कार – यह कोई मान्य नमस्कार नहीं है। दोनों हाथ के पंजे,                कोहनियाँ, सिर, वक्षस्थल, घुटने और  पैरों के पंजों को धरती पर टिकाकर किया जाता है।

   7.  शारीरिक साष्टाँग (दंडवत् प्रणाम) नमस्कार – विधान पूर्वक देवताओं के विग्रहों को, आध्यात्मिक         गुरुओं और सन्यासियों  को इस तरह से नमस्कार किया जाता है।  इसमें सिर, दोनों भुजाएँ               (पंजे, कोहनियाँ और कंधे), आँख, वक्षस्थल, जंघे और दोनों पैर (पंजे और घुटने) धरती को छूने         चाहिए। इनके साथ मन और बुद्धि को एकाग्र कर ईश्वर या आध्यात्मिक गुरु के शरणागत होने            को अत्युत्तम नमस्कार माना गया है। इसे ही साष्टाँग प्रणाम या दंडवत्  प्रणाम कहते हैं। 

सूर्य नमस्कार में कहा गया है कि – 

उरसा, शिरसा, दृष्टया, मनसा, वचसा तथा

पदभ्याम् , कराभ्याम् ,जानुभ्याम् , प्रणामो अष्टाँग उच्यते।

 

वक्षस्थल, सिर,नयन, मन, वचन,

पैर,जंघा और हाथ –

इन आठों अंगों को झुकाकर धरती को स्पर्श करते हुए किया गया नमस्कार स – अष्टाँग (साष्टाँग) नमस्कार कहलाता है।

 

8.  पाद नमस्कार – नमस्कार करते समय पैर छूकर किए गए नमस्कार को पद य पाद नमस्कार कहते हैं। साधारणतः प्रणाम करते वक्त पैरों को स्पर्श नहीं किया जाता। ऐसी मान्यता है कि जब तक अगले व्यक्ति से आप पूर्णतः परिचित न हों या वह आध्यात्मिक गुरु न हों उनके चरण स्पर्श करते हुए प्रणाम नहीं करना चाहिए।

किंतु इन दिनों चापलूसी के कारण राजनीतिज्ञों के चरणस्पर्श किए जाते हैं।

 

9.  व्यस्त-हस्तं नमस्कार – इसमें दाहिने हाथ को अगले के बाएं पैर के पास और बाएं हाथ को अगले के दाहिने पैर के पास (बिना छुए) नमस्कार किया जाता है। यह नमस्कार के सारी विधाओं में किया जा सकता है। अक्सर पहुँचे हुए आध्यात्मिक गुरुओं को, पीठाधीशों को ही ऐसा नमस्कार किया जाता है। व्यस्त-हस्तं साष्टाँग नमस्कार इसका सर्वोत्तम रूप है।


शारीरिक नमस्कार के निम्न प्रचलित रूप हैं – (यह सब अनौपचारिक अभिवादन माने जाते हैं।)

 

1.      सिर झुकाना।

2.      हाथ जोड़ना।

3.      ऊपर के दोनों का युग्मन।

4.      ऊपर के किसी एक, दो  या तीनों के साथ घुटने झुकाना।

 

सद्भावना और मानसिक एकाग्रता से किए गए नमस्कार-प्रणाम के लाभ –

 

1.      आपकी सकारात्मकता और मानसिक निर्मलता में वृद्धि होती है।

2.      दूसरों के मन में आपके प्रति सद्भावना का विकास होता है।

3.      दूसरों के प्रति नम्रता बढ़ती है।

4.      अपना मैंया अहम् त्यागने में आसानी होती है।

5.      दूसरों के प्रति आदर और श्रद्धा जागती है और उनको श्रेष्ठ समझकर ज्ञान प्राप्त करने में आसानी होती है।

6.      आध्यात्मिक गुरुओं को समक्ष या  मंदिरों में ईश्वर के प्रति दासता स्वीकार करने का बोध होता है। इससे गुरु और  देवता के प्रति कृतज्ञता और शरणागत होने का भाव जागृत होता है।

7.      मन मस्तिक शांत होता है।

 

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यह लेख पूरी तरह से मौलिक नहीं है। इसमें कुछ अंश हैदराबाद, तेलंगाना से प्रकाशित तेलुगु दैनिक अखबार  ई नाडु के 14 सितंबर 2020 के अंक के लेख से साभार उद्धृत है। लेख डॉ.दामेर वेंकट सूर्याराव द्वारा रचित है। अखबार में उनका पता या संपर्क नही दिया गया है। लेख सूचनाप्रद होने को कारण इसे जन साधारण तक पहुँचाने के लिए उद्धृत अंश का हिंदी में अनुवाद किया गया है।

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30 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. 🙏 आप जैसों की टिप्पणियों से उत्साह मिलता है सर। सहृदय आभार।

      हटाएं
  2. आदरणीय अयंगर जी, आपने डॉक्टर दामेर वेंकट सूर्याराव जी द्वारा लिखे लेख को, हिंदी पाठकों के लिए तेलुगु से हिन्दी में अनुवाद करने में जो रूचि दिखाई वह अत्यंत सराहनीय है। अभिवादन यूं तो एक वैश्विक संस्कार है पर भारतीय संस्कृति में इसका विशेष महत्व हैअभिवादन के प्रकार विस्तृत रूप में जाने,
    जानकर अच्छा लगा। यूं तो बदली और पाश्चात्यकरण से आच्छादित संस्कृति में अभिवादन मौखिक रूप में ही रह गया है।
    पर फिर भी इसका अस्तित्व सदैव बना रहेगा। ये परिचय का प्रथम संस्कार है। श्रम साध्य लेख के लिए हार्दिक आभारऔर शुभकामनाएं 🙏🙏🌷🌷

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    1. रेणु जी,
      सादर नमस्कार।
      पहले यह बतलाना चाहूँगा कि पूरा लेख अनूदित नहीं है इसका कुछ अंश मात्र है।
      मेरी जानकारी में श्रम कसे तब कहना उचित होगा जब अनमने या मजबूरी में काम करते हैं। शौक से किए गए काम को मनोरंजन कहना ज्यादा उचित लग रहा है।
      लेख पर आपकी सराहनीय टिप्पणी उत्साह वर्धन करती है।
      आभार।

      हटाएं
  3. आप बड़े हैं, मैं छोटा हूँ। मैं अपना “मैं” / “अहम्” त्यागकर आपकी दासता स्वीकार करता हूँ। किंतु कालांतर में यह केवल दैवीय संदर्भ तक ही सीमित हो गया है।

    ये पंक्तियां मन को छू गई १👌👌👌🙏🌷🌷🌷

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    1. हाँ, सच्चाई तो यही है। कि वंदन का अर्थ और इसकी महत्ता का जबरदस्त ह्रास हुआ है।
      पिताजी के सामने बैठकर बात नहीं करते थे। गुरुओं के बगल से सायकिल चला कर नहीं जाते थे।
      आज भी भैया को जवाब नहीं दे पाते हैं।
      अब गुरू पिट रहे हैं। अभिभावकों का घरनिकाला हो रहा है और बहुत कुछ है। कहाँ तक जिक्र करें।
      मैंने दादाजी के समक्ष लोगों को दंडवत प्रणाम करते देखा है। आज कभी-कभार मंदिरों में ही दिखता है।
      धन्यवाद।

      हटाएं
  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 21 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    उत्तर
    1. रवींद्र जी,
      आपने लेख को इस लायक समझा इसके लिए बहुत -बहुत आभार।

      हटाएं
  5. सुजाता जी,
    आपका आभार कि आपने अपने विचार प्रेषित किए।

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  6. Apne bahut hi goorh baat kahi hai. Dhanyavaad 🙏🏼🙏🏼🙏🏼

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Mam Susmita,
      Your understanding the article in right perspective is welcome and appreciated.
      I heartily thank you for your expression of the views on the article

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  7. सादर नमन आ0
    अति उत्तम विस्तृत जानकारी मिली आपसे

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनितासुधीर जी,
      नमस्कार।
      शुक्रिया कि आपने लेख पसंद आने की सूचना प्रेषित किया।
      ब्लॉग पर आने का आभार।

      हटाएं
  8. श्रद्धा पूर्वक किया गया नमस्कार अहंकार को मिटाता है। लोगों के प्रति श्रद्धा व आदर का भाव दर्शाता है।
    इसीलिए तो कहा गया है कि-
    एक प्रणाम से परिणाम बदल जाते हैं
    महत्वपूर्ण जानकारियों से भरा बहुत ही उम्दा और बेहतरीन लेख आदरणीय सर🙏
    जितनी तारीफ की जाए कम है सच में बहुत ही उम्दा👌

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  9. मनीषा जी,
    आपका ब्लॉग पर आना और लेख पर अपने विचार प्रकट करना मेरे लिए एक सुखद अनुभूति है।
    आपने ब्लॉग-लेख की प्रशंसा की इसके लिए हृदयपूर्वक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  10. धन्यवाद नीता जी।
    खुशी हुई कि आपको लेख पसंद आया।
    आभार।

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  11. बहुत बढ़िया,बहुत ही अद्भुत विश्लेषण नमस्कार का Firstgyan

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  12. M/s Firstgyan.
    आपकी टिप्पणी पढ़कर खुशी हुई । खासतौर पर यह जानकर कि आपको लेख अच्छा लगा और आपने इसे व्यक्त करना उचित समझा।
    प्रोत्साहित करने वाली इस टिप्पणी के लिए आपका आभार और धन्यवाद।
    सादर,
    अयंगर।

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  13. अरबाज जी,
    आपको यदि ब्लॉग पसंद आया हो तो इसमें शामिल हो जाइए। ईमेल से भी फॉलो कर लीजिए।
    आपका बहुत बहुत आभार।

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  14. बहुत ही बढ़िया पोस्ट है आज मुझे सच में कुछ नया जानने को मिला।

    जवाब देंहटाएं
  15. ललित जी,
    आपकी टिप्पणी से दिल आनंदित हो गया।
    खास तौर पर इसलिए कि आज मैं किसी के कुछ काम आया।
    आपका बहुत बहुत आभार।
    आप ब्लॉग पर आकर ऐसी दिलासा देते रहें तो कलत की ताकत में बढोत्तरी होने की संभावना बढ़ जाएगी।
    सादर धन्यवाद।

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  16. बहोत बढ़िया पोस्ट है। तथ्य से भरा हुआ है

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    उत्तर
    1. रिधिका जी, नमस्कार।
      आपको पोस्ट सही लगी, खुशी हुई।
      इसकी सूचना के लिए आभार।

      हटाएं

Thanks for your comment. I will soon read and respond. Kindly bear with me.