मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

परिकल्पना

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

धारणाएं


धारणाएं

तुम मुझे अपना प्रिय मत बनाओ,
मानता हूँ, जानता हूँ,
तुम मेरी आदतों से, व्यवहार से,
प्रभावित हो रहे हो,
मेरी विचार धारा
तुम पर असर कर रही है,

शायद यह तुम्हारी सोच विचार से,
मेल खाती है।
फिर भी मेरी सुनो,
मेरा सहयोग तुम्हें कष्टतर होगा,
यह विचारधारा इस समाज में,
इस वातावरण में, इन लोगों में
सम्मति नहीं पाती।

लोग सच बोलने की आदत को,
अब नकारते हौं,
स्वेच्छा इन्हें नापसंद है।
हाँ जी - हाँ जी का स्वर,
सम्यक हो गया है,
लोग इसे सुनने के आदी हो गए हैं।

इस राह से बिछ्ड़े लोगों को आज,
इनके समाज में,
स्थान नहीं है,


यह बात और है कि इनके अलावा,
इस समाज की कोई और
अहमियत भी नहीं है,

मैं इस समाज की परवाह नहीं करता,
मेरी विचार धारा, मेरी धारणाएँ,
मुझे इस समाज से ज्यादा प्रिय हैं।
इनका बिछोह मुझे मंजूर नहीं है,
इसीलिए इस समाज को छोड़,
मैं अपनी धारणाओं के साथ बँधा हूँ...,
बँधा रहना चाहता हूँ,
क्योंकि इसी में मुझे खुशी होती है
संतोष होता है।
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खामोश.....

खामोश
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है अगर ताकत कलम में,
तो चढ़ा लो त्योरियाँ,
आज फिर बजने लगी हैं,
रचनाओं से रणभेरियाँ।

आज गीतों में नया,
जोश पाया जाएगा,
चीखता फिरता था कल जो,
खामोश पाया जाएगा,
देखिए हर दिल को अब,
संतोष पाया जाएगा,
गर हो जरुरत, मौत को भी,
आगोश लाया जाएगा।

जोश सन् 47 का फिर से,
आज पाएँगे यहाँ,
लौटकर सोने की चिड़िया,
कहलाएगा अपना जहाँ।
लूटने इस स्वर्ण को कोई,
गजनी बनकर देख ले,
खाक में मिल जाएगा,
मिट जाएगा,नाम-औ-निशाँ।
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