मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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रविवार, 15 जुलाई 2018

हिंदी उच्चारण में सहयोग दें.



हिंदी उच्चारण में सहयोग दें.

                      मेरा लेख "हिंदी उच्चारण में सहयोग दें."  
                पूर्वी संभाग, कोलकाता,  
                इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की            
                गृहपत्रिका "पहल" के आठवें संस्करण में 
                प्रकाशित हुआ है. 



                              आपने इसे ब्लॉग पर पढा ही 
                होगा. 

                पुनः आनंद लें. 


                लिंक दे रहा हूँ.








हिंदी उच्चारण में सहयोग कीजिए
(07.07.14 प्रेषित एवं 08.07.14 को हिंदी कुंज में प्रकाशित)

हर अभिभावक चाहेगा और उसे चाहना भी चाहिए कि उसके दिल का टुकड़ा आसमान की ऊंचाइयों को छुए. यदि उस मुकाम के लिए उसे हिंदी सीखनी या सिखानी पड़े तो लक्ष्य प्राप्ति के लिए वह हिंदी सीखेगा भी और सिखाएगा भी. अपने बच्चे को हिंदी के स्कूलों में भी पढ़ाएगा. तथ्यों की मेरी जानकारी के तहत भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है भाषा निरपेक्ष नहीं. इसलिए यहाँ आप किसी को भीकोई भी धर्म अपनाने से रोक नहीं सकतेलेकिन भाषा के मामले में ऐसा नहीं है और भारतीयों को हिंदी सीखने लिए कहा जा सकता है. मेरी समझ में केवल इतना ही आता है कि राजनीतिक समीकरणों के लिए हमने हिंदी की यह हालत बना दी है.

हिंदी सीखने में थोड़ी कुछ कठिनाइयाँ हैं जैसे उच्चारण और लिंग भेद. जिनमें उच्चारण पर मैं यहाँ विचार करना चाहूंगा. विभिन्न भाषा भाषी हिंदी का उच्चारण सही तरीके से नहीं कर पाते. हिंदी के जानकारों को चाहिए कि उन्हें सही उच्चारण से अवगत कराएंन कि उन पर हँसें. कई बार तो ऐसा समझ में आया है कि गलत उच्चारण के तर्कसंगत कारण हैं जिनका मैं यहाँ उल्लेख करना चाहूंगा.

दक्षिण भारतीय  “खाना खाया” का उच्चारण “काना काया” के रूप में करते हैं. वह इसलिए कि तामिल वर्णमाला में प्रत्येक वर्ग में दो ही अक्षर होते हैं जैसे कङ. वहाँ ख, ग, घ अक्षर नहीं होते. शब्दों के बीच में लिखने के लिए तीसरे अक्षर (ग) हेतु प्रावधान किया हुआ है.  इसालिए कमला व गमला शब्द कि लिपि तामिल में एक जैसी होगी. वैसे ही कागज व गागर में प्रथम दो अक्षरों की लिपि एक ही होगी. लेकिन जब उसे पढ़ा जाएगा तो दोनों को कागज और कागर पढ़ा जाएगा. इसलिए तमिल भाषा अन्य भाषाओं के सापेक्ष कठिन भी है. वे गजेंद्र को कजेंद्र कहेंगे और लिखेंगे भी. कभी सारा दक्षिण मद्रास हुआ करता था, सो यह कमिय़ाँ (खूबियाँ) कम – ज्यादा पर सारे दक्षिण में मिलेंगी. कर्नाटक व आँध्र वासियों के साथ यह संभावना कम होती है. तमिलनाड़ू के अलावा बाकियों को हिंदी से लगाव भले न हो पर नफरत तो नहीं है. तमिल में भी केवल शायद इसलिए कि हिंदी, तमिल को पछाड़कर राजभाषा का दर्जा पाई है. यहाँ भी यह राजनीतिक कारणों से ज्यादा पनपी है अन्यथा लोगों को कारण भी मालूम न हो.



https://laxmirangam.blogspot.com/2014/07/blog-post.html