*एहसान*
बता-बता के किया हमने
तुम पर एहसान दोबारा
हम समझ न पाए थे ,
ये था खुद का अपमान हमारा।
फिर तुम तो सुबह उठने को भी
एक काम कहोगे।
भोजन से निपटने को ,
तन पर एहसान कहोगे।
यह किस तरह की खुदगर्जी
छाई है मनुज पर,
बेटा पूछता है माँ से,
तेरे क्या एहसान है मुझ पर?
इस खुदगर्जी में मनुज, तुम
कितना और गिरोगे?
बुढ़ापे में छत-रोटी देकर
माँ-बाप पर एहसान करोगे ?
दो चार कदम चलना भी
कोई चलना है यारों
अपनों की मदद करना भी,
कोई एहसान है यारों?
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