शनिवार, २ अप्रैल २०११
चेट कॉल
चेट कॉल
यह कुछ बरस पहले की बात है. कहिए आप बीती है.
एक रविवार को दोपहर करीब तान बजे के आसपास हम सब कैरम खेल रहे थे...
तभी मेरे फोन की घंटी बजी.
बात लैंड लाइन की है. वो जमाना मोबाइल का नहीं था.
जैसे मैंने फोन उठाया और ...हलो फरमाया ...
दूसरे छोर से एक सुरीली आवाज आई... आप कौन बोल रहे है?
मुझे सनक चढ़ गई, (फोन करके मुझसे पूछती है ? )...
मैंने पूछा - आपको किससे बात करनी है.
उधर से फिर वही सवाल... आप कौन बोल रहे है?
जब यही बात तीन चार बार हो ली, तब लगा ...
बात बेकाबू होती जा रही है, अब विराम देना चाहिए...
मैंने थोड़ी कड़क दार आवाज में पूछा .. आपको किससे बात करनी है?
शायद अबतक उधर भी ऊब आ गई थी.. ..
आवाज आई.., आपसे ही बात कर लेते हैँ.
मैने कहा... हाँ बेटा बोलो.. क्या बात करनी है...
शायद संबोधन ने अपना काम कर दिया ...
उधर से फोन रख दिया गया...
कभी कभी ऐसे मजेदार वाकए भी हो जाया करते है...
इसे एप्रिल फूल का फूल ही समझ लें चलेगा..