मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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गुरुवार, 31 मार्च 2011

छींटाकशी-2

छींटाकशी -2

बोलिए हिंदी सरल है,
इसको सभी अपनाइए,
खुद जटिल हिंदी के परचे,
आप बाँटे जाइए.
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दो बूंद नयनों से गिरा,
दुख दर्द सारा धो लिया,
वरदान क्यों माँगे न कोई,
जब जी में आया रो लिया.
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झुंझला के तुमने जैसे,
झिड़का था एक बार,
फिर एक बार वैसा ही अपना,
मुखड़ा सँवार लो.
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कैसे सुनाई दे मुझे,
जो जुबाँ तेरी कह रही,
शोरगुल जो कर रहे,
तेरे ये दो चंचल नयन.
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इशारों के तुम्हारे भी,
अदा यूँ हसीन होती है,
मत छूना मुझे,
मुझको बड़ी तकलाफ होती है,
अगर आदम ने हव्वा से,
कहा होता कि मत छूना,
न होता सार जीवन का,
न यह संसार ही होता.
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