मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

मेरा आठवाँ प्रकाशन  / MY Seventh PUBLICATIONS
मेरे प्रकाशन / MY PUBLICATIONS. दाईं तरफ के चित्रों पर क्लिक करके पुस्तक ऑर्डर कर सकते हैंं।

मंगलवार, 22 अक्टूबर 2013

यातायात

यातायात की हालत

अपने नौकरी पेशे के दौरान मुझे भारत के अलग अलग राज्यों के शहरों में रहने का और जाने का  मौका मिला. कुछेक राज्यों में मै अपनी जरूरतों की वजह से गया.

इस दौरान मैंने शहरों के ट्राफिक का भी जायजा लिया. वहाँ की सड़कें, यातायात के साधन, लोगों में यातायात नियमों की जानकारी और उनका अनुपालन.. वगैरह वगैरह.

मुझे मुंबई यातायात के विचार से सर्वोत्तम लगा. यहाँ ट्राफिक की गति तेज है. लोग अपने लेन में चलते हैं और क्रास लेनिंग काफी कम है. लोगों में ट्राफिक पुलिस का भय है. नियमों का उल्लंघन करने की कोई नहीं सोचता. सामान्यतया मुंबई की सड़कें ठीक ही है, इसका मतलब यह नहीं कि पूरी संतुष्टि है. सुधार का काम चलते रहता है और चलना भी चाहिए- यदि सुधार की गति बढ़ सके तो जनता ज्यादा खुश नजर आएगी. अपनी गाड़ी पर नियंत्रण हो, तो मुंबई में वाहन चलाना काफी आसान है. सड़क पर ट्राफिक ज्यादा होने की वजह से सहनशीलता की जरूरत है. शार्ट टेंपर वालों के लिए थोड़ी तकलीफ जरूर है पर घबराने की कोई बात नहीं है.

अपने वाहन को अच्छी खासी हालत में रखना मुंबई वालों की मजबूरी है, अन्यथा सड़क पर किरकिरी कभी न कभी तो झेलनी पड़ेगी. मुंबई की सड़कों पर जल्दबाजी नहीं की जा सकती. जो समय लगना है वह ट्राफिक पर निर्भर करता है. यदि ट्राफिक ज्यादा है और आप घर से समय पर निकल नहीं पाए तो फ्लाईट या ट्रेन छूट ही जाएगी. कुछ किया नहीं जी सकता. हाँ एक रास्ता है यदि आप मुंबई निवासी हैं तो उन गलियों या रास्तों से जाएं जहाँ रेड लाईट कम हों शायद कुछ समय बच निकले. यहाँ की सड़कें अकसर समांतर चलती हैं. इसलिए यहाँ न सही तो अगले मोड़ पर मुड़कर भी आसानी से पहुँचा जा सकता है.

मुंबई की खास समस्या है बारिश. बारिश में कब कहाँ जाम होगा यह मुंबई वासियों को ही पता है. इसलिए प्रवासियों का इन दिनों फ्लाईट छूटना आम बात है. मुंबई के निवासी भी इस पर ज्यादा कुछ तो कर नहीं पाते, लेकिन रास्तों का ज्ञान होने की वजह से दूर के रास्ते से प्लानिंग कर पाते हैं और फ्लाईट चूकने से बच जाते हैं.

सारी समस्याओं के साथ देश की राजधानी दिल्ली का यातायात भी चलता है. यहाँ ट्राफिक नियम के नाम पर कुछ ही नियम हैं जिनके पालन के लिए ट्राफिक पुलिस लगी है. पहला कि आप रेड लाईट पर सिग्नल क्रॉस न करें. दूसरा कि आप पीछे से किसी वाहन या व्यक्ति को ठोकर न मारे. हाँ एक और आजकल स्पीड लिमिट पर भी ध्यान दिया जाने लगा है. स्पीड की वजह से किए गए उल्लंघनों में आपको रास्ते में न रोककर, शालीनता से आपके घर पेनाल्टी का बिल पहुँच जाता है और जब थाने जाते हैं तो आपकी गाड़ी का फोटो नंबर प्लेट के साथ आपको दिखा दी जाती है. गलत पार्किंग की भी दिल्ली में काफी तकलीफ रहती है. गाड़ी टो कर ला जाती है और थाने के चक्कर लगाने पड़ते हैं. बाकी सारे यातायात के नियम दिल्ली में मायने नहीं रखते. यहां ओवरटेकिंग कहीं से भी कर लें,  लेन चेंज जब चाहें कर लें. जल्दी पहुंचने के लिए गति बढ़ालें पर जुर्माना भरने को तैयार रहें. इन सबके बावजूद दिल्ली की ट्राफिक ठीक ही है क्योंकि यहाँ वाहनों की संख्या बहुत ज्यादा है. लोगों को ट्राफिक नियमों की जानकारी है इसलिए हालातों के मद्दे नजर पालन हो जाता है ताकि कोई बडा हादसा न हो और न ही कोई बड़ी मुसीबत में फंसें. राजधानी होने की वजह से यहां की सड़कें काफी बढ़िया हैं . यहाँ सड़कें अक्सर रातों-रात ठीक कर दी जाती हैं. अन्य बड़े शहरों को भी यह तरीका अपनाना चाहिए. दिल्ली कि सड़कें अक्सर रेडियली चलती हैं इसलिए एक मोड़ छूट जाए तो अगले मोड़ पर मुड़कर लौटना आसान काम नहीं है. जानकार लोग खासकर दिल्ली के निवासी, बिना रेड लाईट ( ट्राफिक सिग्नल) वाला रास्ता अपनाते हैं ताकि समय की बचत हो लेकिन प्रवासियों के लिए यह आसान नहीं है और ट्राफिक जाम को झेलना ही पड़ता है.

बरसात के दिनों में दिल्ली में भी जगह जगह पानी भर जाता है और यह ट्राफिक जाम का बहुत बड़ा कारण बन जाता है. ड्रेनेज ( बरसात के पानी का निकास) न तो मुबई में सही है और न ही कोलकता या दिल्ली मे.

उधर दक्षिण में बेंगलूरू को लीजिए- कोई ट्रेफिक नियम है सा प्रतीत ही नहीं होता. लाल बत्ती क्रॉस न करें और सब ठीक है. आज भी बेगलूरू में दुपहिया वाहनों के लिए हेल्मेट जरूरी नहीं है. जगह जगह ट्राफिक के निदेश लिखे गए हैं. साथ ही बी- ट्रैक भी लिखा है. इसका मतलब समझ नहीं आया और न कोई बता पाया. शायद बस-ट्रैक है पर वहाँ नियमित तरह से बसें रुकती या चलती नहीं दिखीं. सड़कें अक्सर ठीक लगीं वैसे समस्याएँ तो हैं पर इतना नहीं कि जिक्र किया जा सके. लोकल समाचार पत्र इन सड़कों की खबरें नित्य प्रति अखबारों में छापकर विभागों का ध्यानाकर्षण करते रहते हैं.

काफी समय से सड़कों के मामले में राजस्थान और गुजरात का बहुत बढ़िया नाम हैं. राजस्थान में सड़कें अच्छी तो हैं पर ज्यादातर सँकरी हैं. ट्राफिक कम है इसलिए परेशानी नहीं है. शहरों में सड़कें अपेक्षानुसार चौड़ी हैं. लोग सीधे-सादे हैं और ट्राफिक नियमों का पालन करते हैं. यहाँ पिछले कई सालों तक बरसात नहीं होती थी इसलिए ज्यादा बारिश होने पर सड़कों की हालत खराब हो जाती है. लेकिन अब वहाँ भी बरसात होती है एवं बरसात में न बिगड़ने वाले सड़क वहाँ भी बनने लगे हैं.

गुजरात में सड़कें बहुत ही बढ़िया थीं और हैं. पहले यो सड़कें बरसात को सह नहीं पाती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है. सड़कें बरसात को सह लेतीं हैं . गुजरात में पैसा बहुत है और ज्यादातर लोग व्यापारी हैं, इसलिए अच्छी सड़कें सब की जरूरत है. सरकार भी इस पर उचित ध्यान देती है.

पिछले 10-12 बरसों से राजस्थान व गुजरात में अच्छी बरसात होने लगी है. इसलिए यहाँ के लोग भी बारिश में टिकने वाली सड़क बनाने की कला सीख गए हैं और अब जो सड़कें बन रहीं हैं वे बरसात को भी बखूबी झेल रही हैं.

दोनों राज्यों में जनता-जनार्दन सीधी सादी है. राजस्थानी तो ज्यादा ही सीधे हैं. लोगों को ट्राफिक नियमों से कोई ज्यादा लेना देना नहीं है. जैसे सब सुखी हों वही तरीका अपना लिया जाता है. अक्सर इससे ही ट्राफिक नियम निभ जाते हैं.

इधर गुजरात का ट्राफिक मस्त है. ट्राफिक नियम क्या है और क्यों हैं शायद इसकी खबर तो शायद  ट्राफिक पुलिस को भी नहीं हैं. जहाँ जिस चैराहे पर पुलिस होगी, वहां ट्राफिक जाम जरूर होगा. अपने आप चलने वाली ट्राफिक बेहतर चल पड़ती है. ट्राफिक पुलिस, आमने सामने की  ट्राफिक को भिड़ाने का पूरा जुगाड़ हैं. दोनों को एक साथ छोड़ देती है और इससे टकराव बढ़ सकते हैं . यह तो चौपहिया ट्राफिक को अपने वाहन और जान की परवाह है कि हादसे कम ही होते है. दुपहिया वाहनों की ट्रेफिक का तो यहाँ भगवान ही मालिक है.

यहाँ गुजरात की खासियत कुछ और है. अभी अभी ट्राफिक पुलिस चौराहों पर ड्यूटी देने लगी है इस लिए उन्हें हालातों को समझने में समय लगेगा और उसके बाद ही किसी प्रकार का ट्राफिक कंट्रोल के बारे में सोचा जा सकेगा.

यहाँ ट्राफिक में दुपहियों का ज्यादा हक है. वे जब चाहें जैसा चाहें वाहन चलाते हैं . जान की किसी को परवाह नहीं होती. यहाँ भी हेलमेट पहनना दुपहिया वाहन चालकों के शान के खिलाफ है. कई बार सुना गया है कि जॉय राईड के दौरान ब्रेक लगाने पर तन की जगह हेलमेट टकराते हैं जिससे जॉय राईड का मजा जाया हो जाता है. यह हेलमेट नहीं लगाने के प्रमुख कारण की तरह उभरा है. ऐसी मानसिकता की क्या व्याख्या करें.

बंगाल का प्रमुख शहर कोलकता में ट्राफिक तो बेशुमार है, सड़कें कितनी भी चौड़ी हो जाएं ट्रेफिक नहीं समाएगी. ट्राफिक जाम रोज होता है और लोगों की ट्रेन व फ्लाईट रोजाना छूटते रहते हैं. मंजिल पर जाने की प्लानिंग में ट्राफिक जाम का समय भी रखना पड़ता है. लोकल ट्रेनों पर जनता को ज्यादा भरोसा है – हालांकि ये भी कभी कभी जाम का शिकार हो जाती हैं.

उधर असम और मेघालय में ट्राफिक कॉफी कम है. और वहाँ की सड़कें वहां की बारिश के मद्देनजर काफी बढ़िया हैं. पहाड़ी और तराईयों की वजह से वाहनों की रफ्तार भी काफी कम रहती है.

मद्रास (चेन्नई) में ट्राफिक बहुत है लेकिन यातायात के साधन भी समुचित और सही हैं. सड़कें भी चौड़ी और अच्छी हैं. इसलिए ट्राफिक जाम की  स्थिति बिलकुल कम हैं. अक्सर चौराहों पर ट्राफिक लाईट काम करते हैं. जहाँ कहीं लाईट की तकलीफ है वहाँ ट्राफिक पुलिस बखूबी सँभाल लेती है. यहाँ की जनता साधारणतः ईश्वर से डर कर रहती है. गलती की सजा जरूर मिलेगी ऐसा मानती हैं. इसलिए यहाँ नियमों का उल्लंघन और आदेशों की अवहेलना बहुतकम होती है. जनता पुलिस से डरती है और लॉ एंड ऑर्डर साधारणतः बरकरार रहता है. अपवाद तो हर जगह होते हैं सो यहां भी हैं.

बड़े शहरों की एक खास बीमारी  है - नेताओं और विशिष्ट अतिथियों के आवागमन. इनके लिए आज भी आम जनता के लिए सड़क बंद कर दिए जाते हैं. आवागमन अवरुद्ध हो जाता है. कोई जनसाधारण की तकलीफों का संज्ञान भी नहीं लेता. इस वक्त एम्बुलेंस भी रुके रहते हैं. अग्नि शमन यंत्रों को इस हाल में रुकते तो नहीं देखा, लेकिन उन्हें रास्ता दिया जाता है ऐसा भी नहीं देखा. अतिशयोक्ति नही कि ऐसे में एम्बुलेंस के कई सीरियस मरीज जान से हाथ धो बैठते होंगे.


साधारणतया एम्बुलेंस और फायरब्रिगेड को ट्रेफिक नियमों में कुछ प्रथमिकता व छूट होती है जब वे ड्यूटी पर हों. जन साधारण से आशा की जाती है कि वे इन दोनों तरह की गाड़ियों को विशेष प्रथमिकता दें और जान और माल की सुरक्षा सुनिश्चित करें. संभवतः अपनी सवारी सड़क के किनारे लगा कर इन्हें रास्ता दें. साथ ही इन दोनों तरह की वाहनों के चालकों से अनुरोध हा कि जब विशिष्ट ड़्यूटी पर न हों तो ब्लो हॉर्न न बजाएं.

आम राय यही है कि जब दो वाहन टकरा जाते हैं तब बड़े वाहन का चालक ही जिम्मेदार होता है. परिस्थितियाँ कुछ भी हों फर्क नहीं पड़ता दोष तो बड़ी गाड़ी के चालक का ही माना जाता है. दूसरा यह कि मुख्य मार्ग में चलने वाली गाड़ी को प्राथमिकता नहीं दी जाती क्योंकि सहायक मार्ग पर चलने वाली गाड़ियां लोकल लोगों की होती है और टकराव की स्थिति में लोकल लोगों के पास बाहुबल ज्यादा हो जाता है. यह परिस्थिति सारे भारत में पाई जाती है.

यह लेख केवल जानकारी के लिए है. किसी आलेचना के लिए नहीं. यदि कोई अधिकारी, संगठन इस तरफ ध्यान दे सकें तो काफी सुधार संभव है.

एम.आर.अयंगर.
08462021340.










कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your comment. I will soon read and respond. Kindly bear with me.