मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

ललकार



   ललकार

भोर सवेरे हिम मोती से,
सँवर रही है धरती,
लगा, रात भर ललकारे थी,
धरती नीलाम्बर को,
"देख, तुम्हारे तारों से भी,
ज्यादा तारे पास मेरे,
हर कण पर मोती जड़वाए,
लहराते हैं घास मेरे"

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