ललकार
भोर सवेरे हिम मोती से,
सँवर रही है धरती,
लगा, रात भर ललकारे थी,
धरती नीलाम्बर को,
"देख, तुम्हारे तारों से भी,
ज्यादा तारे पास मेरे,
हर कण पर मोती जड़वाए,
लहराते हैं घास मेरे"
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