मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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शनिवार, 2 नवंबर 2013

सिंदूर मेरे...


सिंदूर मेरे

वक्रताओँ से उभर कर,
माँग की सूनी डगर पर,
लटों की लहरों पे चलकर,
नयन-झीलों में उतरकर,
पा सको दिल में जगह गर,
चमकोगे मेरे भाल पर,
सिंदूर बनकर.

अधर पर मुस्कान बनकर,
नयन में आह्वान बनकर,
मन में पीठासीन होकर,
जीत कर मेरे हृदय को,
हो जो हृदयासीन तो फिर,
चमकोगे मेरे भाल पर,
सिंदूर बनकर.
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एम.आर.अयंगर.

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