मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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गुरुवार, 1 सितंबर 2022

निराशा

निराशा


यदि यह दोस्त नहीं 

तो कोई बात नहीं, 

कोई और होगा।

और नहीं तो 'और' होगा।

पर कोई तो होगा।


यदि कोई न मिला तो कारण ?

वह ही होगा, 

कमी कहीं उसमें ही होगी ,

उसे ही खोजना पड़ेगा।


कोई दोस्त होता तो वह बताता,

कमीं कहाँ है,

पर यहाँ तो समस्या ही 

दोस्त न होने की है।


दुनिया इतनी बड़ी है कि यहाँ, 

हर किसी को मानसिक साथी 

मिल ही जाता है।


यदि किसी को न मिले तो 

दुनिया बदलने की मत सोचो,

संभव नहीं है , 


यहाँ तरह तरह के लोग हैं ,

कितनों को बदलोगे?


खुद को बदलने की सोचो,

सबसे आसान तरीका है।

परेशान होने और निराश 

होने से समस्या का 

समाधान नहीं होता।


यदि परेशान हो तो सोचो,

निराश हो तो सोचो,

क्यों परेशान हूँ?

क्यों निराश हूँ?


इससे पार पाने के लिए 

क्या कर सकता हूँ?

क्या कर रहा हूँ ?

क्यों नहीं कर रहा हूँ?

मैं निराश क्यों हूँ?


क्या?

श्वास लेने के लिए,

हवा नहीं मिल रही?

चलने-बैठने-सोने के लिए 

जमीं नहीं है?

जब प्यास लगती है तो 

पीने को पानी नहीं मिल रहा?

जब भूख लगती है तो 

भोजन नहीं मिल रहा?


इनमें से कोई जवाब यदि हाँ है

तो जीवन खतरे में 

पड़ सकता है।

तब परेशानी और निराशा 

दोनों जायज हैं।

वरना निराशा की कोई,

वजह नहीं बनती। 


बाकी किसी के भी बिना 

जिया तो जा सकता है।

यह हमारी मानसिक लकवा की

स्थिति है कि 

हम निराश हो जाते हैं, 

हर छोटी सी बात पर 

छोटी सी असफलता पर।

इससे उबरिए। 

पूछिए अपने आप से 

मैं निराश क्यों हूँ? और 

खोजिए समाधान। 

निराशा दूर हो ही जाएगी।

-------------- 😊

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सीधा सा सच लेकिन कहां समझ में आता है?

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    उत्तर
    1. सही हर।समझने की कोशिश भी तो कोई करताही नहीं ना।🙏

      हटाएं
  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 02 सितंबर 2022 को 'रोता ही रहता है मेरे घर का नल' (चर्चा अंक 4540) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद रवीन्द्र जी,
      आपने मेरे री रचना को चर्चा मंच के लिए उचित समझा और चयन किया।
      आपका आभार।

      हटाएं
  3. सदा खुश रहने के लिए खुद को ही दोस्त बनाना पड़ता है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनिता जी,
      आपके सुझाव ने तो कविता मे ं चारचाँद लगा दिए।
      आभार

      हटाएं
  4. बहुत अच्छी प्रेरक रचना
    हम बदलेंगे युग बदलेगा

    जवाब देंहटाएं
  5. अंतस को छूते भाव।

    यहाँ तरह तरह के लोग हैं ,
    कितनों को बदलोगे?
    खुद को बदलने की सोच... वाह!बहुत बढ़िया कहा सर 👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनिता सैनी जी,
      नमस्कार ।और धन्यवाद कि आपने पोस्ट को सराहा।
      आपने पोस्ट के मर्म को मंतव्य को सही तरह समझा और उस पर अपनी प्रस्तुति दिया।
      सादर आभार।

      हटाएं

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