गुरु पूर्णिमा 2022 – हिंदी भाषा
(सुझाव और विमर्श)
कुछ समय पहले इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन में कार्यरत में एक साथी हैदराबाद आया था। मुलाकात के लिए उसने मुझे अपने ससुराल में लंच के लिए बुलाया। वहाँ जाकर जाना कि उनका ससुर मेरे बचपन के साथी (मेरे पिताजी के बचपन के साथी का बेटा) का चचेरा भाई है। वहाँ से मेरे दोस्त के परिवार वालों की खबर मिली। कुछ दिन बाद मैं मेरे उस दोस्त की बहन के घर गया जो खुद मेरी बहन की क्लासमेट भी थी। वहाँ उसने अपने स्कूली साथियों से बात कराया जिन्हें मैं बचपन से जानता था। उनमें से एक मेरी स्कूली साथी की बहन निकली। उसको अपना मोबाइल नंबर देकर कहा कि बहन को आपत्ति न हो तो कहना मुझे फोन करे। फोन आया, बातें हुई तो जाना कि हमारी पाँचवीं कक्षा की क्लास टीचर श्रीमती कृष्णवेणी जी हैदराबाद में ही कहीं रहती हैं और उसके बहन के पास उनका फोन नंबर भी है। फिर क्या था खोज खबर शुरु हुई। दो महीने बाद इंतजार के बाद टीचर का फोन नंबर मिला। उनको संदेश भेजा , अपना परिचय दिया। बचपन के फोटो भेजे । तब जाकर उनको मेरी याद आई और उन्होंने पहचाना। मेरी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
इन्हीं दिनों मेरी सातवीं पुस्तक हिंदी भाषा (सुझाव और विमर्श) की तैयारी चल रही थी। मन में आया कि क्यों न यह पुस्तक मेरी शिक्षिका को ही समर्पित की जाए। मैंने मेडम से स्वीकृति माँगी जो उन्होंने सहर्ष दिया। साथ यह भी बताया कि वे एक दो महीने में नए घर में जा रही हैं, उसके बाद ही उनसे मुलाकात हो सकती है। जून 2022 के अंतिम सप्ताह में मेडम ने फोन कर सूचित किया कि वे नए घर में आ चुकी हैं और मैं मुलाकात कर सकता हूँ, साथ में उन्होंने पता भी बताया। तय दिन उनसे मुलाकात हुई। मेरे बचपन के बारे में बहुत सी बातें हुईं. क्लास के अन्य छात्र छात्राओं के बारे में भी बात हुई। फिर उन्होंने बताया कि 11 जुलाई 2022 को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर (इस बार गुरु पूर्णिमा 13 जुलाई 22 को पड़ रही थी ) AIM for Seva Boys Hostel Machcha Bolaram में एक समारोह आयोजित किया जा रहा है। यदि मुझे एतराज न हो तो मैं अपनी पुस्तक का समर्पण भी वहीं कर सकता हूँ, अन्यथा 13 जुलाई की शाम मेडम के घर पर कर सकता हूँ।
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11 जुलाई 2022 शाम तयशुदा समय 5:00 बजे AIM FOR SEVA Boys Hostel
पहुँचा। नागपुर से बहन भी आई हुई थी तो उसे भी साथ ले गया। वहाँ आयोजन की पूरी
तैयारी थी। शिक्षिका के अलावा उनके दो गुरु भी आए हुए थे। काफी लोग भी आए हुए थे
जिसमें महिला और पुरुषों के अलावा बच्चे भी थे।
सभा का प्रारंभ छोटे गुरुजी द्वारा व्यास महिमा के साथ प्रारंभ हुआ। तत्पश्चात आगंतुक सभासदों ने विभिन्न ग्रंथों से काव्यपाठ किया। किसी ने गीता के श्लोक पढ़कर व्याख्य़ा की, तो किसी ने वेदों से काव्यपाठ किया और व्याख्या किया। इसी बीच दो छोटी 10 -12 साल की बच्चियों ने वेद पाठ किया जो सराहनीय था।
आयोजन के बीच मुझे भी मौका दिया गया और बताया गया कि अभी केवल गुरु पूर्णिमा के अवसर पर ही कुछ बोलना है, पुस्तक समर्पण का काम अंत में हो सकता है। मैंने प्रथम गुरु माताजी को प्रणाम करते हुए अपनी बात रखी। करीब 7-8 मिनट कथन के बाद जब मैं अपनी जगह को प्रस्तुत हुआ तो बड़े गुरुजी का आदेश हुआ कि में अपनी पुस्तक का समर्पण कार्यक्रम भी अभी ही कर लूँ।
आज्ञापालन करते हुए मैंने पहले गुरुओं का सत्कार करने के लिए शॉल लेकर जैसे ही बड़े गुरुजी के पास पहुँचा तो उन्होंने आपत्ति की और कहा कि पहले अपनी शिक्षिका का आदर करें। इधर शिक्षिका थीं कि उनके गुरुजी के रहते, गुरुजी के सम्मान के बिना अपना सम्मान कराने में हिचक रहीं थी। मैं दुविधा में पड़ गया। इतने में हालात को सँभालते हुए छोटे गुरुजी ने शिक्षिका से कहा कि जब गुरुजी कह रहे हैं तो वैसे ही करने दीजिए । बड़े गुरुजी ने तब सफाई पेश किया कि यह हम लोगों से शिक्षिका के द्वारा ही परिचित हैं इसलिए उन्हें पहले अपनी शिक्षिका का आदर करना चाहिए।
मैंने पहले अपनी शिक्षिका को शॉल ओढ़ाकर प्रणाम कर आदर किया। फिर बारी-बारी से दोनों गुरुओं का भी आदर सत्कार किया। तत्पश्चात शिक्षिका को समर्पण स्वरूप गिफ्ट पैक में लिपटी एक पुस्तक भेंट किया और साथ में गुरुओं को भी एक-एक प्रति भेंट किया। मेडम के पुस्तक खोलकर अनावरण करने पर सबों ने एक फोटो की इच्छा जाहिर किया। तीनों के साथ मैं भी एक पुस्तक दिखाते हुए साथ हो लिया। इस फोटो में ऐसा लगने लगा कि पुस्तक के अनावरण और विमोचन का समाँ है।
मेरी पुस्तक समर्पण पर बड़े गुरुजी बहुत ही प्रसन्न हुए । उन्होंने भूरी-भूरी प्रशंसा की कि 1965-66 में पाँचवीं कक्षा की क्लासटीचर को खोजकर 56-57 साल बाद 2022 में उनको पुस्तक समर्पित करना और पादाभिवंदन करना कोई अपूर्व गुरुभक्ति वाला छात्र ही कर सकता है। मैं इनकी गुरुभक्ति और श्रद्धा को प्रणाम करता हूँ। वे इतने पर ही नहीं रुके और मुझे जबरदस्ती बिठाकर शॉल ओढ़ाकर प्रणाम करने लगे। मैंने जी भर कर ऐतराज जताया कि आप तो मेरी शिक्षिका के गुरुजी हैं आपका इस तरह मुझे प्रणाम करना एकदम अनुचित है। पर वे फिर भी नहीं माने। कहने लगे मैं आपके तन को नहीं आपकी गुरुभक्ति और श्रद्दा को प्रणाम करता हूँ। उनकी इस बात पर पूरा सभागार तालियों से गूँज उठा।
इस तरह पुस्तक समर्पण का यह अवसर पुस्तक विमोचन व अनावरण के रूप में तबदील हो गया।
इसके बाद कार्यक्रम आगे बढ़ाते हुए अन्य सभासदों ने गुरु के प्रति कुछ शब्द कहे, कुछ ने गीता और उपनिषद से श्लोक पढ़कर व्याख्या किया।
इन सबके बाद गुरुजी ने सभासदों को गुरु-महिमा पर व्याख्यान दिया और बताया कि गुरु की जरूरत ही क्या है और गुरु के न होने से क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं या किस – किस लाभ से वंचित हो सकते हैं ?
समापन की ओर बढ़ते हुए सभी सभासदों ने गुरुओं की स्तुति किया । प्रणाम तथा आरती के साथ सभा का समापन हुआ।
सभा के उपरांत भोजन का भी आयोजन था। उसी दौरान कुछ लोगों ने पुस्तक लेना चाहा किंतु मेरे हाथ में एक ही प्रति थी । एक महिला ने तुरंत ही कीमत देते हुए पुस्तक पकड़ लिया । एक अन्य सज्जन भी पुस्तक चाह रहे थे किंतु मेरे पास नहीं होने से उनको निराशा हुई। बरसात में मुझे ओला / उबेर परिवहन नहीं मिलने पर निराश देखकर वे मुझे घर तक छोड़ने को तत्पर हुए। घर पर छोड़ते हुए उन सज्जन ने पुस्तक ले जाने की मंशा जाहिर की और हाथों-हाथ मूल्य चुकाकर पुस्तक अपनी कर गए।
इस तरह 11 जुलाई 2022 का दिन मेरे लिए अद्भुत रहा। पहली बार मेरी पुस्तक का समर्पण किसी आयोजन में हुआ और मेरी किस्मत कि इसी आयोजन ने एक अनावरण और विमोचन का रूप ले लिया।
मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं अपनी किस्मत, शिक्षिका और आयोजकों का किन शब्दों में अभार व्यक्त करूँ।
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.7.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4497 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
धन्यवाद विर्क जी कि आपने. इसे अपने मंच के लिए उचि समझा। आभार।
हटाएंआदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंगुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर आपकी नव प्रकाशित पुस्तक " हिंदी भाषा ( सुझाव और विमर्श ) " का आपके द्वारा अपनी शिक्षिका को समर्पित किए जाने एवं उसके विमोचित होने की आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। आपकी लेखनी को निश्चित ही आपके गुरुजनों का आशीष प्राप्त है और होना भी चाहिए। आपकी गुरुभक्ति के कारण आप इसके अधिकारी हैं। आज इस युग में जहाँ मूल्यों एवं संस्कारों पर इतनी चर्चा होने के बाद भी जब लोग अपने माता-पिता एवं गुरुजनों का उचित आदर करने से चूक जाते हैं तो यह देखकर बड़ा कष्ट होता है। स्वयं नारायण भी इन्हें अपने से उच्च स्तर पर विराजित करते हैं और हम मनुष्य इन्हें अक्सर भुला देते हैं। यह हमारे समाज के लिए घोर लज्जा का विषय होना चाहिए पर होता इसके विपरीत है। आपके द्वारा अपनी शिक्षिका का इतना सुंदर सत्कार किया जाना मेरे लिए आनंद का विषय है क्योंकि इससे अन्य लोग भी प्रभावित होकर गुरु-शिष्य परंपरा को निभाने का प्रयत्न करेंगे। यदि माता-पिता हमारी सृष्टि हैं तो गुरु हमारी दृष्टि हैं। गुरु के मार्गदर्शन के बिना लक्ष्य तक पहुँचना असंभव है।
आपको मिले इस सौभाग्य एवं आपकी पुस्तक विमोचन हेतु पुनः हार्दिक बधाई प्रेषित करती हूँ साथ ही आपको,आपकी साहित्य सेवा को एवं आपकी गुरुभक्ति को नमन-वंदन करती हूँ।
सुप्रभात 🙏
आँचल पांडे जी
हटाएंसबसे पहले आपकी बधाई और शुभकामनाओं पूर्ण संदेश के लिए साधुवाद।
आपने युग की बात की है। मैं भी इसी युग का हूँ जिसकी आप बात कर रहीं हैं। यह युग का नहीं पीढ़ियों का फर्क है।समाज के बदलाव को रोकना टेढ़ीखीर है। इस पर कोई अकेला कुछ नहीं कर सकता। पुराने पसंदीदा रिवाजों को अपनाने वाला अलग थलग एकाकी पड़ जाता है। हाँ , मैं खुद भी खुद को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि गुरुओं का सान्निध्य और आशीर्वाद हमेशा साथ रहा है।
आपकी टिप्पणी हेतु आभार🙏।
आपकी नई प्रकाशित पुस्तक " हिंदी भाषा ( सुझाव और विमर्श ) " के विमोचन की आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंभाव भीना वर्णन।
पुनः अनंत बधाईयाँ।
मन की वीणा (सुश्री कुसुम कोठारी जी)
हटाएंसुप्रभातम्
आपकी टिप्पणी यदा कदा ही मिलती है और जब भी आती है खुशियाँ लाती है।
बधाई और शुभकामनाओं हेतु आभार।।
आपको मेरा बखान-वर्णन अच्छा लगा तद्हेतु साधुवाद।