मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

ठोकर न मारें..


ठोकर न मारें

दिखाकर रोशनी, दृष्टिहीनों को,
और प्रदीप्यमान सूरज को,
रोशनी का तो अपमान मत कीजिए !!!

और न ही कीजिए अपमान,
सूरज का और दृष्टिहीनों का.

इसलिए डालिए रोशनी उनपर,
जिन्हें कुछ दृष्टिगोचर हो,
ताकि सम्मान हो रोशनी का,
और देखने वालों का आदर.

एक बुजुर्ग,
जिनकी दृष्टि खो टुकी थी,
हाथ में लालटेन लेकर,
गाँव के अभ्यस्त पथ से जा रहे थे,

एक नवागंतुक ने पूछा,
बाबा, माफ करना,
दृष्टिविहीन आपके लिए, इस
लालटेन का क्या प्रयोजन है ?

बाबा ने आवाज की तरफ,
मुंह फेरा और बोले –

बेटा तुम ठीक कहते हो.
मेरे लिए यह लालटेन अनुपयोगी है,
फिर भी यह मेरे लिए जरूरी है.

ताकि राह चलते लोग,
कम से कम इस लालटोन की,
रोशनी में देखकर,
मुझ जैसे  बुजुर्ग को—
ठोकर न मारें.

1 टिप्पणी:

  1. संवेदनशील एवं बेहद भावपूर्ण रचना..समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_13.html

    जवाब देंहटाएं

Thanks for your comment. I will soon read and respond. Kindly bear with me.