छुपन - छुपाई
झरोखे से माठी सुगंध आ रही है,
तुम यहीं पास मेरे कहीं पर छुपी हो,
रोशनी ये मद्धिम कहे जा रही है,
चेहरे को घूंघट से ढँक कर खड़ी हो,
उस दिन ग्रहण सूर्य का जब हुआ था,
तो ऐसा ही शीतल सुगंधित समाँ था,
चाँद पूनम का जब ओट बादल छुपा था,
उजाला भी मद्धम इसी तरह का था,
सताती हो ऐसे तुम अल्हड़ बड़ी हो,
दूर पर ही सही, पर क्यों छुप कर खड़ी हो?
एम.आर.अयंगर.
बहुत ही सुन्दर एवं सरस प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंकमेन्ट वेरिफिकेशन से क्या लाभ है,टिप्पडी करने में पाठकों को परेशानी होती है.
जवाब देंहटाएंकिसी समय नए वक्त पर वेरिफिकेशन लगाया था -- जानने के लिए कि यह होता क्या है. पहली बार शिकायत आई है. हटाने का प्रयास किया है.. शायद हट गया होगा अन्यथा फिर से हटाने की कोशिश की जाएगी.
सतर्कता के लिए धन्यवाद एवं टिप्पणी पर आभार.
अयंगर.