मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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सोमवार, 11 मार्च 2013

कुछ - करो !!!!!


कुछ - करो !!!!!

जिंदगी भीख में मिलती नहीं, माँगे मेरे मन,
आज जी ले, जो मिली यह जिंदगानी,
मत गँवा इसको, तू ऐसे गीत गाकर,
कुछ करो ऐसा - कि जागे यह जवानी.

इस धरा पर कुछ तो ऐसा काम कर लो,
याद करके लोग कुछ गुणगान कर लें,
अटकलें तो आएँगी, इनको लाँघना तुम,
यह तुम्हारी है परीक्षा जान लो तुम.

अवतार कर भी राम ने , क्या नहीं वनवास काटा ?
और पाँडवों ने भोगा नहीं अज्ञातवासा ?
उस राम ने ही सीता परीक्षा माँग ली थी

किस खेत की मूली हो कि,
झोलियाँ भर जाएँगी फूलों से तेरी,
बिन कँटीली झाड़ियों को झेलकर भी?

अटकलों को लाँघने को खेल समझो,
जीत जो लोगे उन्हें, तो काम आओगे किसी के.

याद कर लें लोग तो गुणगान करके,
इस धरा पर कुछ तो ऐसा काम कर ले,

जिंदगी यह भीख में मिलती नहीं मन,
आज जी ले, जो मिली यह जिंदगानी,
मत गँवा इसको तू ऐसे गीत गाकर,
कुछ करो ऐसा कि जागे यह जवानी.

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2 टिप्‍पणियां:

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