मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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गुरुवार, 24 नवंबर 2016

उदास न हो...



उदास न हो.

पिछली बातों से क्यों  परेशां हो,
बीती बातों से दिल उदास न हो,
भले ही जिंदगी में कोई आस न हो
बीते कल की सड़ी भड़ास लिए,
आता कल तो कभी खराब न हो।
बीती बातों से दिल उदास न हो।

रात काली हो, स्याह हो कितनी
एक स्वर्णिम  सुबह  तो आएगी
रात को कोसती रही तुम  जो,
सुबह की स्वर्णिम छटा भी जाएगी।
स्याह रातों से यूँ  हताश न हो,
बीती बातों से दिल उदास न हो।

मनको मत बनाओ डिब्बा कचरे का,
उसे भी रोज़ खाली करती हो,
धोती हो रोज नहीं तो दूसरे दिन
मन को खाली नहीं क्यों करती हो।
इन तुच्छ बातों  से निराश न हो
बीती बातों से दिल उदास न हो।

गर नहीं खाली करोगी महकेगा,
पूरा आहाता बदबू-मय होगा,
एक मन को खाली करने  से,
खुद के संग सारा घर भी चहकेगा।
मन को तू मार के संत्रास न हो,
बीती बातों से दिल उदास न हो

सोचती हो हमेशा दूजे का, कुछ 
तो अपने लिए भी सोचो तुम,
त्यागकर 'स्व' को तुम स्वजन के लिए,
सोच किसको जताना चाहो तुम।
भूलो जाओ खुद अपनी प्यास न हो,
बीती बातों से दिल उदास न हो।

आज का यह जमाना गैर सा है,
पंछी खाकर के दाना उड़ जाएं,
बूढ़े मां बाप की फिकर है कहां,
हसीं रात की बाहों में वो सुकूं पाएं।
इनको बसाने का कुछ प्रयास  न हो,
बीती बातों से दिल उदास न हो।

मेरी मानो तो एक हँसी जीवन
खुद भी अपने लिए  सँजो लो तुम,
दूसरों के लिए  तो करती हो,
कुछ तो खुद के लिए भी कर लो तुम। 
आते कल यूँ कभी खलास न हों
बीती बातों से दिल उदास न हो।।
बीती बातों से दिल उदास न हो।
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