श्रीमती सुस्मिता देव द्वारा
माड़भूषि रंगराज अयंगर की पुस्तक
गुलदस्ता की समीक्षा
आज मुझे “गुलदस्ता” नामक पुस्तक की समीक्षा करने का अवसर मिला। यह पुस्तक श्री माड़भूषि
रंगराज अयंगर जी द्वारा लिखित है। जिन्होंने एक से बढ़कर एक पुस्तकों के द्वारा
हिंदी लेखन जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। अब तक उनकी पाँच पुस्तकें प्रकाशित
हो चुकी हैं। उनकी यह पाँचवीं पुस्तक “गुलदस्ता” विभिन्न विषयों पर लिखित लेखों का संकलन
है। यह लेख विशेषतः पुस्तक प्रकाशन तक से संबंधित उप - विषयों पर है, जो नए लेखक –
लेखिकाओं का मार्ग दर्शन करती है। कुछ लेख समाज की जागरूकता पर भी आधारित हैं।
इस पुस्तक में कुल बारह लेख हैं, जो “प्रूफ रीडिंग” से लेकर “प्रकाशन” तक का संपूर्ण ज्ञान प्रदान करती है। पुस्तक का कवर अत्यन्त आकर्षक है तथा प्रिंट का फॉण्ट भी आसानी से पढ़ने योग्य है।यदि पुस्तक की भाषा की बात करेंतो वह अत्यन्त सरल है। दिन – प्रतिदिन बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त होने वाले अंग्रेजी शब्दों का उपयोग भी बखूबी किया गया है। “प्रकाशन का गणित” नामक अध्याय में दिए गए गणना से इस विषय को गहराई से जानने की जिज्ञासा बनी रहती है।
पुस्तक में कई स्थानों पर प्रयोग किए गए व्यंग्य या कहें तो हास्य उपकरण पाठक के रुचि को बनाए रखने में समर्थ है। जैसे संप्रेषण और संवाद नामक लेख में अंग्रेजी – हिंदी वाक्यों के उदाहरणों को निपुणता से प्रयोग किया गया है।
लेखक ने सामाजिक विषयों पर भी पाठकों का ध्यान आकर्षित करने की प्रचेष्टा की है। इसमें उन्होंने आजकल के युवा वर्ग की मनोस्थिति की विवेचना भी किया है।
अंत में “जागो मानव जागो” नामक लेख से उन्होंने पाठक वर्ग को संदेश दिया है कि वह पर्यावरण , जीव जंतुओं तथा पक्षियों का विशेषतः ध्यान रखें। उन्हें सूर्य को प्रकोप से बचाने के लिए यथा संभव प्रयास करें।
अब मैं यह कहते हुए अपने शब्दों को विराम देती हूँ कि यह एक अवश्य पढ़ने वाली पुस्तक है।
धन्यवाद,
सुस्मिता देव
13.10. 2020
It's really very inspiring. Keep writing such more books which will be beneficial for the new writers as well the readers.
जवाब देंहटाएंSusmita Deb
Lot many thanks Susmita ji for showering appreciations. Regards.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर व सारगर्भित समीक्षा जिसमें गैरजरूरी विस्तार भी नहीं और कुछ छूटा भी नहीं।
जवाब देंहटाएंमीनाजी आभार।
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