मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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सोमवार, 10 मार्च 2014

होली मिलन

होली मिलन.




होली मिलन

आज होली है,
होली मिलन है.

इस बार हमने होली में,
एक भी पेड़ नहीं काटा.

खेत में हल जोतने से मिले
ठूंठों को इकट्ठा कर,
होली बनाया.

मुहल्ले वासियों से घर घर का
जलावन  - लकड़ी का कूड़ा,
टूटे - भी किसी तरह के - फर्नीचर,
चौखट, पल्ले, दरवाजे
 या टूटा फूटा पालना,
इत्यादि..... मांग कर इकट्ठा कर लिया.

जिनने भी जो भी बेकार समझा दे दिया
और हमने ले लिया,
इन सबको होली में सजा दिया.
साथ में सजाया,
अपने अपने आपसी मतभेद,
दुश्मनियाँ और बुराईयाँ,

याद किया प्रह्लाद को,
और किया होलिका दहन.

बताशों संग आपस में खुशियाँ बाँटे,
अबीर – गुलाल से माहौल और भी रंगा-रंग किया,

जीवन से कड़वाहट दूर हुई,
मिठास के लिए फिर नई जगह बन गई

वैसे ही अपनी हरकतों से,
और ऊपर वाले की दया से,
हम कुछ ज्यादा ही मीठे हो गए हैं,

अब जिह्वा पर स्वाद की बजाय,
अब जिह्वा की मिठास का,
आनंद ज्यादा आने लगा है.

यह था एक प्रयास,
सुधार और भी संभव है,

इस बार हमने पर्यावरण और वातावरण,
दोनों पर थोडा थोड़ा ध्यान दिया है.
देखें अगली होली तक,
क्या क्या नया सोच पाते हैं.

होली मुबारक.  
होली मिलन मुबारक.
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एम.आर.अयंगर.

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